लता मंगेशकर के नाम पर संगीत महाविद्यालय

भारतीय शिक्षण परंपरा में संगीत से संस्कार तथा संस्कार से संस्कृति को सहेजने का कार्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है

Update: 2022-03-08 19:06 GMT

भारतीय शिक्षण परंपरा में संगीत से संस्कार तथा संस्कार से संस्कृति को सहेजने का कार्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है। बीसवीं शताब्दी में भारतीय शास्त्रीय संगीत शिक्षण-प्रशिक्षण घराना परंपरा से निकल कर संस्थागत शिक्षण पद्धति में शामिल हुआ। बीसवीं शताब्दी के मध्य तक संगीत की शिक्षा राजसी खानदानों, विशिष्ट व्यक्तियों तथा संगीतज्ञों की अपनी संतानों तक सीमित थी। आम व्यक्ति संगीत नहीं सीख सकता था। भारतवर्ष में सर्वप्रथम सन् 1886 में बड़ौदा में उस्ताद मौला बख्श तथा पंडित आदित्य राम द्वारा सामूहिक रूप से संगीत शिक्षा देने का प्रयास किया गया। अविभाज्य भारत में 5 मई सन् 1901 को पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर द्वारा लाहौर में गंधर्व संगीत महाविद्यालय की स्थापना की गई। यह एक ऐसा संगीत महाविद्यालय था जो कि किसी राज्याश्रय से नहीं बल्कि जनता के सहयोग और दान-दक्षिणा से संचालित होता था। इस संस्थान में पारंपरिक रूप से बिना राज्य की सहायता से गुरु और शिष्य एक ही स्थान पर रहकर संगीत साधना करते थे। सन् 1908 में बम्बई में दूसरे गंधर्व महाविद्यालय तथा 1931 में अहमदाबाद में गंधर्व संगीत महाविद्यालय मंडल की स्थापना की गई। सन् 1950 तक इसे एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत कर भारतवर्ष में गंधर्व संगीत मंडल के लगभग 50 विद्यालय खुल चुके थे। आज भी गंधर्व संगीत मंडल से पंजीकृत संगीत शिक्षार्थियों की संख्या लगभग एक लाख से ऊपर है। इसी बीच सन् 1926 में एक और संगीत सुधारक पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने लखनऊ में मैरिस कॉलेज ऑफ म्यूजि़क की स्थापना की जो अब भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के नाम से एक प्रतिष्ठित संगीत संस्थान है। 10 जनवरी 1918 को पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने माधव संगीत विद्यालय ग्वालियर की स्थापना की। उन्नीसवीं शताब्दी तक संगीत को समाज में बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था। महिलाओं के लिए संगीत शिक्षा तो न के बराबर थी। संगीत को घिनौनी तथा पतित अवस्था से बाहर लाने, शिक्षण-प्रशिक्षण तथा समाज में प्रचार-प्रसार करने के लिए विष्णु दिगंबर पलुस्कर तथा पंडित विष्णु नारायण भातखंडे का योगदान अविस्मरणीय है। आज संगीत गुरुकुल तथा घराना परंपरा से निकल कर संस्थागत शिक्षण प्रणाली में भी स्थापित हो चुका है। भारतीय संगीत की परंपरा को आगे बढ़ाने तथा शीर्ष पर स्थापित करने के लिए अनेक संगीतज्ञों, वाग्येयकारों, रचनाकारों, गायकों, वादकों ने अपनी आहुति दी है।

जीवन में श्रेष्ठ कार्य करने वाले महापुरुषों को हमेशा याद रखने के लिए किसी स्मारक, मार्ग, नगर या संस्थान को उनका नाम दिया जाता रहा है ताकि उन्हें क्षेत्र विशेष में उनके योगदान के लिए किसी न किसी बहाने से सदियों तक स्मृतियों में सहेजा जा सके। अब हिमाचल प्रदेश में स्वर साम्राज्ञी, भारत रत्न स्वर्गीय लता मंगेशकर की पावन स्मृति में संगीत महाविद्यालय खोला जाएगा। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सत्र 2022-23 के बजट भाषण में भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर को संगीत जगत में उनके योगदान को हमेशा याद रखने के लिए इसकी घोषणा की। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि अब प्रदेश में लोक संगीत के क्षेत्र को बढ़ावा देने तथा उत्कृष्ट कार्य करने वाले संगीतज्ञों को सम्मानित करने के लिए भी 'लता मंगेशकर स्मृति राज्य सम्मान' शुरू किया जाएगा। हिमाचल प्रदेश में स्वतंत्रता प्राप्ति तक संगीत शिक्षण न के बराबर था। कुछ निजी संस्थानों तथा संगीत केंद्रों के माध्यम से संगीत शिक्षण प्रदान किया जाता था। इस दिशा में 1926 में स्थापित प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद तथा 1956 में स्थापित प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ जैसे संस्थानों के माध्यम से संगीत शिक्षा देकर संगीत उपाधियां प्रदान की जाती रही हैं। तत्पश्चात पंजाब विश्वविद्यालय के अधीन एक या दो महाविद्यालयों के माध्यम से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दी जाती थी। 22 जुलाई, 1970 को हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्थापना के पश्चात वर्ष 1971 में संगीत विभाग की स्थापना हुई जिसमें संगीत केवल लड़कियों के लिए उपलब्ध था। 1973 में लड़कों को भी हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में संगीत सीखने की अनुमति प्रदान की गई। वर्तमान में संगीत शिक्षा के लिए लोगों का दृष्टिकोण बदला है। हिमाचल प्रदेश में लगभग प्रत्येक महाविद्यालय में संगीत की शिक्षा दी जा रही है। वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में संगीत शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं है तथा माध्यमिक एवं प्राथमिक स्तर पर सरकार संगीत शिक्षण देने का विचार कर रही है। प्रदेश में अपना ललित कला महाविद्यालय स्थापित हो चुका है तथा सत्र 2022-23 के बजट में प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने प्रदेश में लता मंगेशकर संगीत महाविद्यालय खोलने की घोषणा की है। निश्चित रूप से संगीत शिक्षा तथा एक महान गायिका को सदैव स्मृतियों में सहेजने के लिए यह एक सराहनीय कदम है।
आज पूरे विश्व में संगीत का बोलबाला है। पाश्चात्य संगीत, यूनानी, अफ्रीकन, यूरोपियन संगीत, अरेबिक संगीत की दुनिया में भारतवर्ष के कर्नाटकी संगीत तथा उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत का डंका भी बज रहा है। भारतीय शास्त्रीय गायन-वादन, उप-शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, फिल्मी संगीत पूरी दुनिया में छाया हुआ है। 28 सितंबर 1929 को एक प्रसिद्ध एवं कुशल रंगमंचीय गायक दीनानाथ मंगेशकर के घर जन्मी सबसे बड़ी बेटी लता मंगेशकर ने अपना पूर्ण जीवन संगीत को समर्पित कर 25 भाषाओं में 50000 से अधिक गाने गाए। मंगेशकर परिवार में लता मंगेशकर के अतिरिक्त मीना मंगेशकर, आशा भोंसले, उषा मंगेशकर और हृदयनाथ मंगेशकर ने भारतीय संगीत में अद्वितीय योगदान दिया है। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अपना पूरा जीवन संगीत साधना करते फिल्म गायन के लिए लगा दिया। साक्षात् मां सरस्वती की पुत्री लता मंगेशकर ने अपना जीवन उच्च तथा आदर्श मूल्यों की स्थापना करते हुए भविष्य की पीढि़यों को दिशा दी है। लता मंगेशकर जैसे महान लोग शताब्दियों में विरले ही पैदा होते हैं। 6 फरवरी 2022 को स्वर की देवी हमेशा के लिए इस लोक से महाप्रयाण कर गई। स्वर की देवी लता मंगेशकर जी हमेशा हमारे हृदय में रहेंगी। लता दीदी की स्मृति में प्रदेश सरकार द्वारा घोषित 'लता मंगेशकर संगीत महाविद्यालय' तथा 'लता मंगेशकर स्मृति राज्य सम्मान' की घोषणा इस महान गायिका को सच्ची श्रद्धांजलि है। यह कला तथा संस्कृति के विकास एवं उत्थान में मील का पत्थर साबित होगा।
प्रो. सुरेश शर्मा
लेखक घुमारवीं से हैं


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