लता मंगेशकर के नाम पर संगीत महाविद्यालय
भारतीय शिक्षण परंपरा में संगीत से संस्कार तथा संस्कार से संस्कृति को सहेजने का कार्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है
भारतीय शिक्षण परंपरा में संगीत से संस्कार तथा संस्कार से संस्कृति को सहेजने का कार्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है। बीसवीं शताब्दी में भारतीय शास्त्रीय संगीत शिक्षण-प्रशिक्षण घराना परंपरा से निकल कर संस्थागत शिक्षण पद्धति में शामिल हुआ। बीसवीं शताब्दी के मध्य तक संगीत की शिक्षा राजसी खानदानों, विशिष्ट व्यक्तियों तथा संगीतज्ञों की अपनी संतानों तक सीमित थी। आम व्यक्ति संगीत नहीं सीख सकता था। भारतवर्ष में सर्वप्रथम सन् 1886 में बड़ौदा में उस्ताद मौला बख्श तथा पंडित आदित्य राम द्वारा सामूहिक रूप से संगीत शिक्षा देने का प्रयास किया गया। अविभाज्य भारत में 5 मई सन् 1901 को पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर द्वारा लाहौर में गंधर्व संगीत महाविद्यालय की स्थापना की गई। यह एक ऐसा संगीत महाविद्यालय था जो कि किसी राज्याश्रय से नहीं बल्कि जनता के सहयोग और दान-दक्षिणा से संचालित होता था। इस संस्थान में पारंपरिक रूप से बिना राज्य की सहायता से गुरु और शिष्य एक ही स्थान पर रहकर संगीत साधना करते थे। सन् 1908 में बम्बई में दूसरे गंधर्व महाविद्यालय तथा 1931 में अहमदाबाद में गंधर्व संगीत महाविद्यालय मंडल की स्थापना की गई। सन् 1950 तक इसे एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत कर भारतवर्ष में गंधर्व संगीत मंडल के लगभग 50 विद्यालय खुल चुके थे। आज भी गंधर्व संगीत मंडल से पंजीकृत संगीत शिक्षार्थियों की संख्या लगभग एक लाख से ऊपर है। इसी बीच सन् 1926 में एक और संगीत सुधारक पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने लखनऊ में मैरिस कॉलेज ऑफ म्यूजि़क की स्थापना की जो अब भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के नाम से एक प्रतिष्ठित संगीत संस्थान है। 10 जनवरी 1918 को पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने माधव संगीत विद्यालय ग्वालियर की स्थापना की। उन्नीसवीं शताब्दी तक संगीत को समाज में बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था। महिलाओं के लिए संगीत शिक्षा तो न के बराबर थी। संगीत को घिनौनी तथा पतित अवस्था से बाहर लाने, शिक्षण-प्रशिक्षण तथा समाज में प्रचार-प्रसार करने के लिए विष्णु दिगंबर पलुस्कर तथा पंडित विष्णु नारायण भातखंडे का योगदान अविस्मरणीय है। आज संगीत गुरुकुल तथा घराना परंपरा से निकल कर संस्थागत शिक्षण प्रणाली में भी स्थापित हो चुका है। भारतीय संगीत की परंपरा को आगे बढ़ाने तथा शीर्ष पर स्थापित करने के लिए अनेक संगीतज्ञों, वाग्येयकारों, रचनाकारों, गायकों, वादकों ने अपनी आहुति दी है।