प्रदूषण का राक्षस और कानून!
इस बार कोरोना महामारी के चलते दशानन के पुतले भी नहीं जले।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इस बार कोरोना महामारी के चलते दशानन के पुतले भी नहीं जले। पटाखे भी नहीं फूटे। रावण के पुतले अगर इक्का-दुक्का जले भी तो उनमें ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल किया गया। फिर भी दिल्ली में प्रदूषण कहर ढहा रहा है। प्रदूषण का कहर भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी तबाही का कारण बन रहा है। यह चुनौती कितनी बड़ी है इसका अनुमान वैश्विक वायु स्थिति की ताजा रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। वर्ष 2019 में वायु प्रदूषण के कारण हुई गम्भीर बीमारियों की वजह से पूरी दुनिया में 67 लाख लोगों की मृत्यु हुई जिनमें से 16 लाख लोग भारत के थे। पिछले वर्ष दुनिया में करीब पांच लाख नवजात शिशुओं की मौत प्रदूषण के कारण हुई जिनमें से भारत की संख्या 1.16 लाख रही। घरों से बाहर निकलते ही हालत खराब होने लगती है। रिपोर्ट के मुताबिक 2010 और 2019 के बीच के एक दशक की अवधि में भारत में पीएम 2.5 की मात्रा में 61 फीसदी बढ़ौतरी हुई। नवजात शिशुओं में लगभग 64 फीसदी मौतें घर के भीतर की हवा में मौजूद जहर से हुईं। इससे स्पष्ट है कि घर के भीतर चूल्हा, अंगीठी और बाहर औद्योगिक धुआं, वाहनों का धुआं, निर्माण कार्य और प्रदूषण फैलाने वाले अन्य कारणों की रोकथाम के लिए व्यापक स्तर पर प्रयासों की आवश्यकता है।
सोमवार को दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग की चादर छा गई। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के कारण स्मॉग की चादर इतनी घनी हो गई कि राजपथ व रायसीना हिल पर राष्ट्रपति भवन भी ओझल हो गया था और इंडिया गेट भी गायब हो गया था। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्टर 4.5 तक पहुंच गया जो स्वास्थ्य के लिहाज से ठीक नहीं है। वायु प्रदूषण में इजाफा होने की स्थिति में बच्चों और बुजुर्गों को घरों से बाहर निकलने का परहेज करने की सलाह दी गई। यद्यपि यह कहा जा रहा है कि पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में पराली जलाए जाने में कमी आई है। एक दिन में पराली जलाने के मामलों में 33 फीसदी की कमी आई है।
वायु प्रदूषण रोकने के लिए हर वर्ष उपाय किए जाते हैं। एनसीआर में नए राजमार्ग भी बनाए गए जिससे वाहन महानगर में आएं ही नहीं और बाहर से ही निकल जाएं। दिल्ली की आबादी तो कम नहीं की जा सकती और न ही वाहनों में कमी लाई जा सकती है।
केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार जल्द ही एक नया कानून लाएगी। यह नया कानून केवल दिल्ली- एनसीआर क्षेत्र के लिए होगा। कानून का प्रारूप क्या होगा, इसका पता तो कुछ दिनों बात ही चलेगा। सवाल यह है कि क्या कानून बनाकर ही प्रदूषण की समस्या से निजात पाई जा सकती है। बेहतर तालमेल से ही इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। दिल्ली में 71 ऐसे कॉरिडोर हैं जहां अक्सर भीषण जाम लगा रहता है। ट्रैफिक जाम या लालबत्ती पर अधिक देर तक वाहनों के खड़े रहने के दौरान निकलने वाले धुएं से पूरा क्षेत्र भर जाता है। दिल्ली सरकार ने 'रेड लाइट ऑन तो गाड़ी होगी ऑफ' अभियान शुरू किया है जो एक अच्छी पहल है। कोई भी अभियान तभी सफल हो सकता है जब लोग उसे शत-प्रतिशत अपनाएं। पर्यावरणविदों का मानना है कि दिल्ली के प्रदूषण का पूरा समाधान हाे सकता है और तीन वर्ष में दिल्ली का आसमान नीला हो सकता है। सरकार का कहना है कि दिल्ली में 20 फीसदी हरित क्षेत्र है जबकि सैटेलाइट इमेज की बात करें तो यह केवल 8.4 प्रतिशत ही नजर आता है। दो करोड़ से ज्यादा दिल्लीवासियों को प्रदूषण के राक्षस से बचाने के लिए हरित क्षेत्र का 40 फीसदी होना बहुत जरूरी है।
अगर दिल्ली का हर नागरिक और सरकार हरित क्षेत्र के विकास के लिए अपना योगदान दे तो दिल्ली फिर से हरी-भरी हो सकती है। जरूरत है पेड़ लगाने की। अगर सिविक एजैंसियां दिल्ली में अतिक्रमण किया क्षेत्र खाली करा लें तो सूखी पट्टियां भी अपने आप हरी हो जाएंगी। जरूरत इस बात की है कि सिविक एजैंसियां प्रदूषण रोकने के लिए जन-जन को भागीदारी बनाए। इसके लिए हरियाली क्रांति के पुरोधाओं का सहयोग लिया जाना चाहिए। नरेन्द्र मोदी सरकार देश के भीतर और बाहर सौर ऊर्जा समेत स्वच्छ ऊर्जा के उपायों को बढ़ावा दे रही है। सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि के लिए भारत और फ्रांस की अगुवाई में अन्तर्राष्ट्रीय समूह का गठन भी किया गया है लेकिन दिल्ली अभी दूर लगती है। हमें खुद प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों पर पार पाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास करने होंगे।