मोदी ने कहा- किसानों के हितों की रक्षा करना ही कृषि सुधारों का उद्देश्य है, अड़ियल रवैये का करें परित्याग

औद्योगिक संगठन फिक्की की सालाना आम बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी |

Update: 2020-12-13 01:50 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| औद्योगिक संगठन फिक्की की सालाना आम बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए कृषि कानूनों से होने वाले फायदों को रेखांकित कर एक बार फिर किसानों तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की। इस क्रम में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जो भी सुधार किए गए हैं उनका उद्देश्य किसानों के हितों की रक्षा करना ही है और कृषि में नई तकनीक तथा निवेश की राह खोलना आवश्यक है। उचित यह होगा कि आंदोलनरत किसान संगठन अपने अड़ियल रवैये का परित्याग करें और उन मसलों पर केंद्र सरकार के साथ वार्ता करें जिन्हें लेकर उनके मन में शंकाएं हैं। आखिर जब सरकार कृषि कानूनों पर किसान संगठनों की आपत्तियों को सुनने, उनमें यथोचित संशोधन करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य आदि पर लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार है तब इस तरह की जिद का कोई मतलब नहीं कि तीनोंं नए कृषि कानून वापस किए जाएं। ऐसी मांग जोर जबरदस्ती के अलावा और कुछ नहीं। कोई भी सरकार ऐसी बेजा मांग नहीं मान सकती। चंद किसान संगठनों की मांग पर पूरे देश के किसानों पर असर डालने वाले कृषि कानूनों को रद करने का कोई मतलब नहीं। तथ्य यह भी है कि कृषि और आर्थिक मामलों के अनेक विशेषज्ञों ने न केवल नए कृषि कानूनों का समर्थन किया है, बल्कि उन्हें एक और हरित क्रांति का माध्यम माना है।

कृषि कानूनों की वापसी की मांग इसलिए भी हरगिज नहीं मानी जानी चाहिए, क्योंकि देश में शासन चलाने और कानून बनाने की जिम्मेदारी किसान संगठनों को नहीं सौंपी गई है। यह काम तो सरकार का है। मुट्ठी भर किसान संगठन वह नहीं कर सकते जिसे करने का अधिकार संसद और सरकार को है। सभी कृषि उत्पादों और यहां तक कि दूध पर भी समर्थन मूल्य की मनमानी मांगों से किसानों के आंदोलन का केवल मजाक ही नहीं बन रहा, बल्कि यह भी प्रकट हो रहा कि ऐसी मांग करने वाले किसान नेता किसान हितों को लेकर तनिक भी गंभीर नहीं। इतना ही नहीं, नक्सलियों और दिल्ली दंगों के आरोपितों के प्रति सहानुभूति जताने और उनकी रिहाई की मांगों से भी यही पता चल रहा है कि दिल्ली आ धमके किसान संगठन किसान हितों की फर्जी आड़ लेकर मनमानी ही कर रहे हैं। उनके ऐसे ही रवैये के कारण यह अंदेशा गहरा रहा है कि वे नक्सलियों और अन्य अतिवादी तत्वों के मोहरे बन गए हैं। किसी के लिए भी समझना कठिन है कि किसानों को देश के लिए खतरा बने तत्वों के प्रति क्यों सहानुभूति उभर आई है? बेहतर हो कि जिद पर अड़े किसान संगठन यह समझें कि अपने मनमाने रवैये के कारण वे लोगों का समर्थन हासिल नहीं कर सकते।


Tags:    

Similar News

-->