By आशुतोष चतुर्वेदी।
मोबाइल ने सारा परिदृश्य बदल दिया है. मोबाइल चुपके से कब हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गया, हमें पता ही नहीं चला. अब हम सब मौका मिलते ही मोबाइल के नये मॉडल की बातें करने लगते हैं. व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर तो जीवन की जरूरतों में कब शामिल हो गये, हमें पता ही नहीं चला. मोबाइल फोन के बिना तो हमारा जीवन जैसे अधूरा ही है.
शायद आपने अनुभव किया हो कि यदि आप कहीं मोबाइल भूल जाएं या फिर वह किसी तकनीकी खराबी से वह बंद हो जाए, तो आप कितनी बेचैनी महसूस करते हैं, जैसे जीवन का कोई अहम हिस्सा अधूरा रह गया हो. सूचनाएं हों अथवा कारोबार या फिर मनोरंजन, मोबाइल फोन की लोगों को लत लग गयी है. हाल में रांची में हिंसा के बाद इंटरनेट सेवाएं ठप थीं. पत्रकार के रूप में मेरे पास शहर का हाल जानने से अधिक इस बात के लिए फोन आये कि इंटरनेट सेवा कब शुरू होगी.
कुछ दिन पहले लखनऊ में एक बेटे ने मां के मोबाइल फोन पर पबजी खेलने से मना करने पर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी. रोंगटे खड़े कर देने वाली यह घटना बताती है कि हम तकनीक के कितने बंधक हो गये हैं और उसके लिए किस हद तक जा सकते हैं. बेटा दो दिन तक घटना को छिपाये रखा. शव से दुर्गंध आने पर बेटे ने पिता को जानकारी दी.
मुंबई में एक 16 वर्षीय बच्चे ने ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली. पुलिस के अनुसार बच्चा मोबाइल पर गेम खेल रहा था, तभी उसकी मां ने मोबाइल छीना और कहा कि दिनभर गेम खेलता रहेगा, तो पढ़ाई कब करेगा. कुछ समय बाद जब मां घर पहुंची, तो उसने एक चिट्ठी देखी, जिसमें बच्चे ने लिखा था कि वह आत्महत्या करने जा रहा है. इसकी जानकारी मिलते ही पुलिस बच्चे की खोज में जुट गयी. पता चला कि दो स्टेशन के बीच में किसी ने आत्महत्या कर ली है.
पुलिस ने मौके पर पहुंचकर बच्चे का शव बरामद किया. मोबाइल की लत से युवकों का सोना-जागना, पढ़ना-लिखना और खान-पान सब प्रभावित हो जाता है और वे बेगाने से हो जाते हैं. इसके लिए कुछ हद तक माता-पिता भी दोषी हैं. मां-बाप को लगता है कि वे बच्चों को संभालने का सबसे आसान तरीका सीख गये हैं. दो-ढाई साल की उम्र के बच्चे को कहानी सुनाने के बजाये मोबाइल पकड़ा दिया जाता है और जल्द ही उन्हें इसकी लत लग जाती है.
हमें यह समझना होगा कि टेक्नोलॉजी दोतरफा तलवार है. एक ओर जहां यह वरदान है, तो दूसरी ओर मारक भी है. तकनीक की ताकत इतनी है कि उसके प्रभाव से कोई भी मुक्त नहीं रह सकता है. बच्चे को तो छोड़िए, हम और आप भी इससे मुक्त नहीं हैं. मैंने पाया कि कुछ लोगों को व्हाट्सएप की लत इतनी लग जाती है कि वे थोड़े-थोड़े अंतराल पर उसको अगर नहीं देख पाते हैं, तो परेशान हो उठते हैं.
शायद आपने गौर नहीं किया कि टेक्नोलॉजी ने हमारी युवा पीढ़ी में कितना परिवर्तन कर दिया है. मोबाइल ने उनका बचपन छीन लिया है. उसके सोने, पढ़ने के समय, हाव-भाव और खान-पान सब बदल चुका है. पहले माना जाता था कि पीढ़ियां 20 साल में बदलती है, फिर तकनीक ने इस परिवर्तन को 10 साल कर दिया और अब नयी व्याख्या है कि पांच साल में पीढ़ी बदल जाती है. इसका मतलब यह है कि पांच साल में दो पीढ़ियों में आमूल-चूल परिवर्तन हो जाता है.
अब बच्चे किशोर, युवा जैसी उम्र की सीढ़ियां चढ़ने के बजाये सीधे वयस्क बन जाते हैं. शारीरिक रूप से भले ही वे वयस्क नहीं होते हैं, लेकिन मानसिक रूप से वे वयस्क हो जाते हैं. उनकी बातचीत व व्यवहार में यह बात साफ झलकती है. इनमें तकनीक की लत स्पष्ट दिखती है. वे घर के किसी अंधेरे कमरे में हर वक्त मोबाइल या कंप्यूटर में उलझे रहते हैं. अब खेल के मैदानों में आपको गिने-चुने बच्चे ही नजर आयेंगे.
मैंने यह भी नोटिस किया है कि माता-पिता भी बच्चे से कुछ कहने से डरते हैं कि वह कहीं कुछ कर न ले. एक गंभीर संवादहीनता की स्थिति निर्मित होती जा रही है. दिक्कत यह है कि हम सब यह चाहते हैं कि देश में आधुनिक टेक्नोलॉजी आए, लेकिन उसके साथ किस तरह तारतम्य बिठाना है, इस पर विचार नहीं करते. नोकिया वार्षिक मोबाइल ब्रॉडबैंड इंडेक्स रिपोर्ट, 2022 से पता चलता है कि भारत दुनिया में सबसे अधिक डेटा उपयोग करने वाले देशों में एक है.
इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में लोग अन्य देशों की तुलना में स्मार्ट फोन पर औसतन ज्यादा समय बिताते हैं. रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्मार्ट फोन पर वीडियो देखने का चलन खासा बढ़ा है और यह 2025 तक आते-आते बढ़ कर चार गुना तक हो जायेगा. हमारे देश में 2021 में डेटा ट्रैफिक में 31 फीसदी की वृद्धि हुई है और औसत मोबाइल डेटा खपत प्रति उपयोगकर्ता प्रति माह 17 जीबी तक पहुंच गयी है.
कुछ वर्ष पहले मुझे लंदन में आयोजित बीबीसी के मीडिया लीडरशिप इवेंट में हिस्सा लेने का मौका मिला था. इसमें बदलते तकनीकी परिदृश्य पर विस्तार से चर्चा हुई. तकनीक को लेकर तो मीडिया के क्षेत्र में भी खूब प्रयोग हुए हैं. लोग अखबार तो पढ़ ही रहे हैं, साथ ही वे वेबसाइट और अन्य नये माध्यमों के जरिये भी खबरें प्राप्त कर रहे हैं. इस दौरान एक दिलचस्प तथ्य भी सामने आया कि यूरोप में मोबाइल इस्तेमाल करने वाले औसतन दिन में 2617 बार अपने फोन स्क्रीन को छूते हैं.
कोरोना काल में निश्चित रूप से इस औसत में और वृद्धि हुई होगी. मुझे लगता है कि भारत भी इस मामले में बहुत पीछे नहीं होगा. नीलसन की एक रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर, 2021 तक 64.6 करोड़ भारतीय इंटरनेट का इस्तेमाल रहे थे. कुछ अन्य संस्थाएं इस संख्या के 80 करोड़ तक होने का दावा करती हैं. यह बहुत बड़ी संख्या है. इससे अंदाजा लगता है कि हमारे जीवन में तकनीक का हस्तक्षेप कितना बढ़ गया है.
हमें नयी परिस्थितियों से तालमेल बिठाने के विषय में सोचना होगा. यह समस्या भारत की ही नहीं, पूरी दुनिया की है. सभी देश इससे जूझ रहे हैं, लेकिन वे समाधान निकालने का प्रयास कर रहे हैं, पर भारत में अब तक इस दिशा में कोई विचार नहीं हुआ है. किसी भी समाज और देश के लिए यह बेहद चिंताजनक स्थिति है.