महिला सुरक्षा कानूनों का दुरुपयोग, किसी को दुष्कर्म के मामले में फंसाना आज पिज्जा मंगाने से आसान

महिला सुरक्षा कानूनों का दुरुपयोग

Update: 2021-10-30 04:15 GMT

दीपिका नारायण भारद्वाज। एक डेटिंग एप पर 25 वर्षीय युवक और 35 साल की महिला साथ आए। चूंकि मेलजोल के ऐसे मंचों पर उम्र का पैमाना कोई मायने नहीं रखता तो उनकी कहानी आगे बढ़ती गई। बात शारीरिक संबंध तक पहुंच गई जो स्वाभाविक है कि सहमति से ही बने होंगे। लड़का बहुत अधिक नहीं कमा रहा था, जबकि महिला एक बहुराष्ट्रीय कंपनी से जुड़ी थी। कुछ दिन बाद खटपट इस स्तर पर पहुंच गई कि लड़के ने बातचीत बंद कर दी। इससे तमतमाई महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी। कहा जाता है कि देश में कानून सबके लिए एकसमान है, लेकिन जब महिलाओं से जुड़े मामलों की बात आती है तो निर्दोष होते हुए भी पुरुष को ही दोषी मान लिया जाता है। इस मामले में भी यही हुआ। महिला ने उसके खिलाफ दुष्कर्म का जो मामला दर्ज कराया, उसमें लड़के को दो महीने जेल में बिताने पड़े। बीते 15 अक्टूबर को जयपुर के 21 वर्षीय यश माथुर का भारतीय वायु सेना में चयन हो गया था, लेकिन देश की सेवा में जुटने के बजाय उसे आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा।


दरअसल, उसके पिता का एक महिला रिश्तेदार के साथ जमीन को लेकर विवाद चल रहा था। उसी विवाद में उक्त महिला यश को दुष्कर्म के झूठे मामले में फंसाने की धमकी दे रही थी। इस अपयश से बचने के लिए यश ने अपनी जीवनलीला ही समाप्त करना मुनासिब समझा। ऐसे मामलों की सूची अंतहीन है, जहां महिलाओं की प्रताड़ना से पीड़ित पुरुषों के पास ऐसे कदम उठाने के अलावा कोई और चारा नहीं बचता।

असल में ये मामले भारत में उभरती चिंतित करने वाली एक सच्चाई के संकेत हैं। यह चिंतित करने वाली सच्चाई है दुष्कर्म से जुड़े कानून का दुरुपयोग। दरअसल निर्भया मामले के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो बड़े कानूनी बदलाव किए गए थे, उनका अब जमकर दुरुपयोग हो रहा है। आए दिन ऐसे किस्से सामने आते हैं, जहां झूठे आरोप लगाकर या तो प्रतिशोध लिया गया हो या फिर उगाही की गई हो। यह सब भी बहुत संगठित रूप से चल रहा है, जिसमें वकीलों से लेकर पुलिस कर्मी तक जुड़े हुए हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2015 में दुष्कर्म के कुल दर्ज मामलों में 21 प्रतिशत 'शादी का झांसा देकर दुष्कर्म' के आरोप से जुड़े थे। यह आंकड़ा 2019 में 51 प्रतिशत तक पहुंच गया। सालों साल चले रिश्ते या एक दिन का मेल-जोल, आज किसी को दुष्कर्म के मामले में फंसाना पिज्जा मंगाने से आसान हो गया है। ऐसे 70 प्रतिशत मामलों में यही आरोप होते हैं कि शादी का झांसा देकर संबंध बनाए या नशीला पदार्थ पिलाकर जबरदस्ती की या वीडियो बनाकर ब्लैकमेल किया। ऐसे जाने कितने मुकदमे मैं स्वयं देख चुकी हूं, जहां न तो शादी के वादे का कोई पुख्ता साक्ष्य दिया गया, न ही नशीले पदार्थ का कोई मेडिकल सुबूत मिला और न ही कोई वीडियो पुलिस द्वारा जब्त किया गया।

महिला जो कह दे, उसे पत्थर की लकीर मानकर न जाने कितने निदरेषों को फंसाया जा रहा है। उनकी जिंदगी बर्बाद की जा रही है। उल्लेखनीय है कि मामला झूठा साबित होने के बावजूद महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। एक तरफ नारीवाद का झंडा उठाने वाले कहते हैं कि किसी रिश्ते में जाना या उससे बाहर आना तो महिला की पसंद का मामला है तो यदि पुरुष किसी रिश्ते से बाहर आना चाहे तो उसे दुष्कर्मी क्यों ठहराया जाता है?

शादी का झांसा देकर दुष्कर्म के मामलों पर अदालतें बंटी हुई हैं। तमाम मामलों में पुरुष को यह कहकर बरी किया गया कि संबंध महिला की सहमति से बने और यह दुष्कर्म नहीं है। हालांकि, ऐसी रिहाई से पहले तमाम पुरुषों को जेल में रहने और अपमान सहने का दंश भी ङोलना पड़ा। बालीवुड की एक मशहूर अदाकार का यह डायलाग 'नो मीन्स नो' बहुत प्रचलित हुआ। यह पूरी तरह सही भी है कि यदि महिला शारीरिक संबंध के लिए इन्कार करती है तो उसे किसी भी हाल में 'हां' नहीं समझना चाहिए। हालांकि, जब पूर्व में दी गई ऐसी सहमति को बाद में जबरदस्ती का जामा पहनाया जाए तो फिर पुरुष क्या करे? ऐसी महिलाओं को क्या सजा मिलनी चाहिए? इस पर भी गंभीरता से मनन करना होगा।

दिल्ली के एक न्यायालय ने ऐसे मामलों पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा था कि वक्त आ गया है कि पुरुषों के अधिकारों की भी बात की जाए। हर कोई महिलाओं के लिए लड़ रहा है, लेकिन जिन पुरुषों को झूठे आरोपों में फंसाया जाता है, उन पर भी गौर करने की जरूरत है। न्यायमूर्ति निवेदिता अनिल शर्मा ने कहा कि अगर दुष्कर्म का मामला दर्ज कराने वाली महिला को 'रेप सर्वाइवर' कहा जाता है तो झूठे मुकदमे से बरी होने वाले आदमी को क्या 'रेप केस सर्वाइवर' नहीं कहना चाहिए?

एक समय था जब दहेज प्रताड़ना से जुड़ी आइपीसी की धारा-498 के दुरुपयोग की वजह से इस कानून में बदलाव के लिए पुरजोर आवाजें उठी थीं। 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उसे कानूनी आतंकवाद की संज्ञा दी थी और 2014 में निर्देश पारित किए, जिससे तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगी। आज दुष्कर्म से जुड़ी धारा 376 का दुरुपयोग भी धारा 498 की राह पर बढ़ रहा है। 40-50 प्रतिशत झूठे मामले दर्ज कराए जा रहे हैं। लोगों की जिंदगी बर्बाद हो रही हैं। जरूरत है कि समय रहते इस दुरुपयोग को रोका जाए। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब सुप्रीम कोर्ट इस पर कोई दखल दे। यदि ऐसा हुआ तो सबसे अधिक अहित उन महिलाओं का होगा, जो वास्तव में दुष्कर्म की शिकार होती हैं और उन्हें न्याय भी नहीं मिलता। ऐसे में यह आवश्यक है कि हमारे न्यायालय समान न्याय की अवधारणा का आदर्श रूप में अनुपालन सुनिश्चित करें।

(लेखिका डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं)
Tags:    

Similar News

-->