एक जज और देश का मन
मैं 1975 की इमरजेंसी के युवा मन पर जेएनयू में हुए अनुभव में मानवाधिकारों और सिविल लिबर्टी का घनघोर समर्थक रहा हूं
मैं 1975 की इमरजेंसी के युवा मन पर जेएनयू में हुए अनुभव में मानवाधिकारों और सिविल लिबर्टी का घनघोर समर्थक रहा हूं। दक्षिणपंथ और पश्चिमी सभ्यता बनाम सोवियत संघ के कम्युनिस्ट तंत्र पर अपनी सोच में, मैं लेखन की शुरुआत से हर पंथ के विचार अधिकार, मानवाधिकारों का समर्थक रहा हूं। 1975 से ही मैं एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे मानवाधिकार संगठनों का मुरीद रहा हूं (जिसे मोदी सरकार ने भारत छोड़ने को मजबूर किया)। मैं कांग्रेस राज के वक्त में संघ-भाजपा-मोदी-शाह के खिलाफ झूठे आरोपों पर लिखता रहा हूं तो नक्सल नेताओं के मानवाधिकारों का भी पैरोकार रहा हूं। इसी अखबार में काली-सफेद दाढ़ी याकि इसरत जहां केस के झूठे नैरेटिव में मैंने मोदी-शाह के साथ हो रही पुलिस ज्यादती और झूठ का जिस पुरजोर अंदाज में खुलासा करते हुए पहले पेज पर किस्त-दर-किस्त छापा था तो वह खम ठोंक था। तब किसी में हिम्मत नहीं थी वैसा लिखने की। जबकि आज मुझे मोदी-शाह, लंगूरी भक्त यह ज्ञान देते हुए हैं कि 21-22 साल की हुई तो क्या हुआ, दिशा देशद्रोही है तो उसका आप कैसे बचाव कर रहे हैं।