बदनीयत चीन को चित्त करो
विगत मई महीने से जब से चीन ने लद्दाख में नियन्त्रण रेखा पर अपनी सैनिक गतिविधियों को तेज करके भारतीय सीमा
विदेश मन्त्री श्री ए. जयशंकर ने हाल ही में एशिया सोसायटी द्वारा आयोजित अपनी एक पुस्तक पर आयोजित विचार गोष्ठी में साफ कहा कि उनकी समझ से यह बाहर है कि चीन ऐसा रुख क्यों अपनाये हुए है जबकि विगत 15 जून की गलवान घटना के बाद दोनों देशों के आपसी सम्बन्धों पर गहरा कुप्रभाव पड़ा है। सीमा पर तनाव पैदा करके चीन इसके समानान्तर ही भारत के आन्तरिक मामलों में भी दखल देने की कोशिश कर रहा है और कह रहा है कि उसे लद्दाख की नई राजनीतिक स्थिति पर ऐतराज है जो विगत वर्ष 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर राज्य से अलग करके पृथक केन्द्र प्रशासित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था। चीन ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को समाप्त करने का मामला राष्ट्रसंघ में भी उठाया था। उसका यह कदम पाकिस्तान की रजामन्दी के साथ ही था क्योंकि पाकिस्तान ने भी कश्मीर के मामले में शोर मचाया था। अतः मोटे तौर पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लद्दाख को विवादास्पद बनाने की गरज से ही चीन पिछले पांच महीने से इस क्षेत्र में अतिक्रमण को जारी रखे हुए है। यह नतीजा निकालना इसलिए गलत नहीं होगा कि हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी-जिन-पिंग ने अपनी सेनाओं को युद्ध तक के लिए तैयार रहने को कहा। इसके साथ ही हमें उस अरुणाचल प्रदेश (नेफा) के बारे में भी चीन की बदनीयती पर ध्यान देना होगा जिस पर मौके-बेमौके चीन अपना दावा ठोकता रहता है।
चीन की नीयत के बारे में गफलत में रहने का कोई कारण भारत की किसी भी सरकार के लिए नहीं बनता है। इसके कुछ ठोस उदाहरण हैं जिनकी तरफ वर्तमान रक्षा मन्त्री व विदेश मन्त्री को विशेष ध्यान देना चाहिए। 2003 में जब केन्द्र सरकार की कमान संभाल रहे स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने तिब्बत को चीन का स्वायत्तशासी अंग स्वीकार किया तो चीन ने बदले में सिक्किम को भारत का अंग स्वीकार किया परन्तु इसके कुछ समय बाद ही चीन ने अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा दिखा दिया। उस समय भारत की संसद में इस पर तूफान खड़ा हो गया और विपक्ष में बैठे कांग्रेस के नेताओं ने वाजपेयी सरकार पर आलोचना के तीरों की बौछार शुरू कर दी। तब सरकार की तरफ से जवाब दिया गया कि इस बाबत चीन से कड़ा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है तब नई दिल्ली स्थित चीन के राजदूत को विदेश मन्त्रालय में बुला कर आपत्ति दर्ज की गई परन्तु इसका चीन पर कोई असर नहीं पड़ा और जब 2004 में केन्द्र में डा. मनमोहन सिंह की सरकार आई तो चीन ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा करने व उसके लिए तत्कालीन प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह द्वारा विशेष पैकेज जारी करने पर आपत्ति उठायी। तब लोकसभा में विपक्ष के नेता लालकृष्ण अडवानी ने विचार रखा कि संसद में एक ऐसा प्रस्ताव पारित किया जाये जिसमें अरुणाचल प्रदेश को जम्मू-कश्मीर की तरह भारत का अभिन्न व अटूट अंग घोषित किया जाये। इसका विरोध उस समय सदन के नेता पूर्व राष्ट्रपति स्व. श्री प्रणव मुखर्जी ने किया और कहा कि ऐसा करके भारत किसी दूसरे देश को अपने अन्दरूनी मामलों में दखल देने की इजाजत नहीं दे सकता। भारत और चीन के बीच में स्पष्ट सीमा रेखा नहीं है क्योंकि चीन शुरू से ही मैकमोहन रेखा को नहीं मानता है। यह मैकमोहन रेखा भारत, तिब्बत व चीन की सीमाओं को चिन्हित करती थी। भारत द्वारा तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार करने के बाद स्थिति में जो परिवर्तन आया था उससे स्व. प्रणवदा जैसे दूरदर्शी राजनेता परिचित थे और उन्होंने कहा कि भारत-चीन के बीच सीमा विवाद हल करने के लिए जो वार्ता तन्त्र बना है उसमें यह फार्मूला लागू करने की कोशिश की जा रही है कि दोनों देशों के सीमा क्षेत्र में जिस इलाके पर जिस देश का प्रशासन लागू है वह उसी का अंग माना जाये। प्रणव दा के तर्क के आगे पूरा विपक्ष बैठने पर मजबूर हो गया क्योंकि उन्होंने चीन की बदनीयती को बहुत खूबसूरती के साथ पकड़ कर उसे संसद के माध्यम से सन्देश दे दिया था कि उसकी चालबाजी नहीं चलेगी।
यह भी विचारणीय तथ्य है कि अपनी 2006 की लम्बी चीन यात्रा में बीजिंग की धरती पर ही खड़े होकर जब प्रणवदा ने यह कहा था कि 'आज का भारत 1962 का भारत नहीं है'। उन्होंने बदली विश्व राजनीति में चीन को आइना दिखाते हुए साफ कहा था कि भारत के साथ दोस्ती के अलावा उसके पास दूसरा विकल्प नहीं है और इसके बाद उन्होंने भारत-चीन सीमा पर सैनिक निर्माण गतिविधियों को शुरू करने की योजनाओं को कार्य रूप देने का फैसला किया था। जिस पर बाद में तत्कालीन रक्षा मन्त्री ए.के. एंटोनी ने अमल करना शुरू किया। लद्दाख में सामरिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण डबचोक-दौलतबेग ओल्डी सड़क के विस्तार का फैसला भी तभी हुआ था। क्योंकि यह सड़क तिब्बत की सीमाओं को छूती है। ऐसा भी नहीं है कि चीन ने पहली बार लद्दाख में गड़बड़ करने की कोशिश की है। 2012 में भी उसने देपसंग इलाके में अतिक्रमण किया था मगर दो सप्ताह बाद भारतीय फौजों ने उसे वापस कर दिया था मगर इस बार पांच महीने से वह इस इलाके में जमा हुआ है? यही उसकी बदनीयती की गवाही है जिसे हमें असफल बनाना होगा।