व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी नीति के विरुद्ध दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई है। इस पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि ''यह एक प्राइवेट एप है अगर आपको गोपनीयता की ज्यादा चिंता है तो आप इसे छोड़ दूसरे एप में चले जाएं, यह स्वैच्छिक चीज है।
व्हाट्सएप द्वारा नई प्राइवेसी नीति अपनाए जाने के बाद लोगों को कम्पनी के असली मंसूबे समझ में आ जाने चाहिए। बाजार में यदि कोई चीज मुफ्त में उपलब्ध है तो उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। यदि हम किसी सेवा के लिए भुगतान नहीं करते तो हम स्वयं एक उत्पाद के तौर पर इस्तेमाल होते हैं। मुफ्त में सेवाएं लेने के बदले हम उन्हें अपना डेटा यानी अपनी सूचनाएं दे रहे हैं और उस डेटा का वैश्विक व्यापार है। इसी डेटा के व्यापार के चलते फेसबुक, गूगल, इंस्ट्राग्राम जैसी कम्पनियों का राजस्व अरबों-खरबों में है। फेसबुक के पास लगभग 70 विलियन डॉलर का राजस्व है। जब फेसबुक को व्हाट्सएप से कड़ी चुनौती मिली थी तब फेसबुक ने इसे बहुत महंगे दाम में खरीद लिया था। गूगल भी इसे खरीदने का इच्छुक था, क्योंकि सारा खेल अधिक से अधिक डेटा जुटाने का है, इसलिए फेसबुक ने अधिक कीमत दी। डेटा के इस्तेमाल के द्वारा सभी कम्पनियां टारगेटेड विज्ञापन देना चाहती हैं। व्यक्ति की जरूरत और दिलचस्पी के हिसाब से उसे विज्ञापन देने की कोशिश करती है ताकि वह उत्पाद या सेवा खरीदे। ऐसा पूरी दुनिया में हो रहा है।
जब अमेरिका के प्रिज्म नामक कार्यक्रम का भंडाफोड़ हुआ था तो पता चला था कि सोशल मीडिया की एजैंसियों से लोगों का सारा डेटा जुटाया जाता था। फेसबुक, गूगल ट्विटर आदि की वजह से प्रिज्म कार्यक्रम के तहत अमेरिकी खुफिया एजैंसियों के पास पूरी जानकारी थी। तब विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन अंसाजे ने कहा था कि फेसबुक, याहू, गूगल जैसी तमाम कम्पनियां खुफिया एजैंसियों के लिए सबसे बेहतरीन जासूसी मशीन है क्योंकि इनसे सारा डेटा मिल जाता है कि कौन कहां जा रहा है, कौन क्या पढ़ रहा है, क्या खरीद रहा है। बाद में कम्पनियां बड़े-बड़े वक्तव्य और विज्ञापन जारी कर सफाई देने लगीं लेकिन यह सच है कि वे डेटा का व्यापार करती हैं। व्हाट्सएप ने अब निजी डेटा सांझा करने की तैयार की है, विरोध को देखते हुए बिजनेस एकाउंट वालों के लिए शर्तें रखी हैं और इन शर्तों के मानने के लिए 8 फरवरी तक का समय दिया है। यूरोप और अन्य विकसित देशों में निजता से जुड़े कानून काफी सख्त हैं, वहां इन कम्पनियों की दाल नहीं गलती। वहां इस संबंध में भारी-भरकम जुर्माने का प्रावधान है।
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने भारत को अपना अखाड़ा बना लिया है। भारत में सोशल मीडिया से जुड़ी कम्पनियों पर नकेल कसने और निजता का संरक्षण करने वाला कानून नहीं बना है। वर्ष 2001 में जो सूचना तकनीक से सम्बन्धित कानून बने थे उसमें एक-दो बार ही मामूली संशोधन हुए हैं। ऐसे में निजता और डेटा सुरक्षा को लेकर चुनौती काफी बड़ी हो गई है। इंटरनेट के युग में निजता को लेकर भी अन्तर्विरोध है। इंटरनेट की दुनिया बहुत अलग तरह से काम करती है। इंटरनेट के माध्यम से धाेखाधड़ी, फर्जीवाड़े, ठगी और डेटा चोरी के मामले बढ़ रहे हैं।
सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता की जवाबदेही को लेकर लोग भी काफी लापरवाही बरतते हैं। सोशल मीडिया पर आए मैसेज को झट से देखने की ललक उन्हें धोखाधड़ी का शिकार बना रही है। साइबर ठगी के मामलों से निपटने में हमारी पुलिस भी प्रशिक्षित नहीं है। नागरिकों की निजता की जानकारी से खिलवाड़ न होने पाए इसके लिए सरकार को सख्त कानूनों की जरूरत है। लोगों को भी इन माध्यमों का सतर्कता से उपयोग करना चाहिए।