स्मृति शेष: उत्तराखण्ड ने थल सेना को दो प्रमुख दिए और दोनों की अकाल मृत्यु
जनरल जोशी का थलसेना अध्यक्ष बनना इस छोटे से राज्य का देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान का प्रतीक ही था
यह दुखद संयोग ही है कि देश की सेना को वीर प्रसूता उत्तराखण्ड का पहली थल सेनाध्यक्ष बना तो वह कार्यकाल पूरा किए बिना ही सेवा के दौरान ही स्वर्ग सिधार गया। अब इसी उत्तराखण्ड ने देश को पहला चीफ ऑफ डिफेंस सटाफ दिया तो उनका भी कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सेवाकाल में बुधवार को हैलीकाप्टर दुर्घटना में निधन हो गया।
पिथौरागढ़ जिले के कनालीछीना ब्लाक के जोशीगांव में जन्में विपिन चन्द्र जोशी जब 1 जुलाई 1993 को भारत की थल सेना के अध्यक्ष बने थे तो इस वीरप्रसूता उत्तराखण्ड के लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। जनरल जोशी का थलसेना अध्यक्ष बनना इस छोटे से राज्य का देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान का प्रतीक ही था।
उत्तराखण्ड की गढ़वाल रायॅल्स और कुमाऊं रेजिमेंट भारत की थल सेना की भरोसेमंद ताकत मानी जाती हैं। जनरल जोशी को हार्ट अटैक होने से 19 नवम्बर 1994 को निधन हो गया और उत्तराखण्डवासियों की वह गर्वीली खुशी छिन गई। जनरल जोशी को एक साल बाद थलसेनाध्यक्ष के पद से रिटायर होना था।
जनरल जोशी के बाद पौड़ी गढ़वाल के द्वारीखाल ब्लाक के बिरमोली-सैण के मूल निवासी बिपिन रावत ने उत्तराखण्डवासियों का गर्व के दूसरे क्षण तब दिए जब उन्होंने 1 जनवरी 2017 को थल सेना के प्रमुख का पद संभाला।
विश्व की सबसे ताकतवर थल सेनाओं में से एक भारतीय थल सेना को एक प्रमुख देने का दूसरा गौरव उत्तराखण्ड को मिला था। इस सैन्य बाहुल्य प्रदेश के लोगों की खुशियों का तब पारोवार न रहा जब उत्तराखण्ड के सपूत जनरल विपिन रावत को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनने का सौभाग्य मिला।
जनरल रावत के हाथों में देश की सुरक्षा की कमान आने से यह वीर भूमि गौरवान्वित हुई। लेकिन दुर्भाग्य से इतिहास दुहरा गया और कार्यकाल पूरा करने से बहुत पहले ही जनरल रावत का 8 दिसम्बर 2021 को तमिलनाडू के कुन्नूर के निकट हैलीकाप्टर दुर्घटना में निधन हो गया। चूंकि सीडीएस का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 साल की उम्र तक का होता होता है, इसीलिए उनको अभी इस पद पर जनवरी 2025 तक देश की सुरक्षा की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभानी थी।
16 मार्च 1958 को देहरादून में जन्मे जनरल रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी सेना में लेफ्टिनेंट जनरल थे। वह एक सिपाही से सेना के दूसरे नम्बर के शीर्ष पद तक पहुंचे थे जो कि उनकी बहादुरी और काबिलियत का प्रमाण था। ऐसे बहादुर सैनिक के घर जन्मे बिपिन को शौर्य और देश के लिए समर्पण के संस्कार अपने परिवार से मिले थे। जनरल रावत की स्कूलिंग देहरादून के कैम्ब्रियन हॉल से शुरू हुई थी। देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी से वह 16 दिसम्बर 1978 को पास आउट होकर 11वीं गोरखा रायफल्स में सेकेण्ड लेफ्टिनेंट बने थे।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बने जनरल बिपिन रावत ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गढ़ी कैंट स्थित कैंब्रियन हाल स्कूल से की। इसके बाद वह शिमला में सेंट एडवर्ड स्कूल गए। वहां से 12वीं पास करने के बाद एनडीए के जरिए सेना में भर्ती हुए। 1978 में आईएमए से पासआउट होने पर स्वार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। आईएमए से पास आउट होने के बाद दिसंबर 1978 में 11 गोरखा राइफल की पांचवीं बटालियन को कमांड किया। बिपिन रावत दून में पढ़ाई के बाद भी यहां से जुड़े रहे। सेना में नौकरी के दौरान वह भारतीय सैन्य अकादमी में तैनात रहे। सेना प्रमुख बनने के बाद दून में वह अपने स्कूल कैंब्रियन हाल में एक समारोह में 8 सितंबर 2018 को शामिल होने आए थे। इस दौरान 43 वर्ष पहले उन्हें पढ़ाने वाले अपने गुरू से भी वह मिले थे।
सेना प्रमुख बिपिन रावत ने कहा कि वह सेवा निवृत होने के बाद अपने पैतृक गांव तथा पैतृक ननिहाल के गांव में कुछ काम करेंगे। सेना के शीर्ष पद पर पहुंचने के बावजूद उनका अपने पूर्वजों की जन्मभूमि उत्तराखण्ड के पहाड़ों से अटूट लगाव रहा। वह पहाड़ की संस्कृति से भी भावनात्मक रूप से जुडे रहे।
थल सेनाध्यक्ष बनने के बाद वह 30 अप्रैल 2018 को अपने मूल गांव सैण पहुंच कर गांववासियों से आत्मीय ढंग से मिले। उस दिन उन्होंने सेना का हेलीकाप्टर गढ़वाल रायफल्स रेजिमेंटल सेंटर लैंसडाउन ही छोड़ दिया था और कार से अपने गांव चल दिये थे। गांव तक सड़क न होने के कारण उन्हें 1 किमी लम्बी खड़ी चढ़ाई पैदल चढ़नी पड़ी। उन्हें गांव में अपने चाचा, चाची और गांव के भाई बान्धवों से मिल कर अपार खुशी मिली थी।
जनरल रावत की माता सुशीला देवी का मायका याने कि रावत का ननिहाल उत्तरकाशी जिले के थाती धनारी गांव में था। उनके नाना ठाकुर साहब सिंह परमार थे। उनके छोटे नाना ठाकुर कृष्ण सिंह विधायक और संविधानसभा के सदस्य थे। अपनी बचपन की यादें ताजा करने के लिये वह सपत्नीक 20 सितम्बर 2019 को अपनी ननिहाल थाती धनारी पहुंचे जहां उनके मामा और गांववासियों ने उनका परम्परागत तरीके स्वागत किया और और इस अवसर पर जनरल ने सपत्नीक पूजा में भी भाग लिया। उस समय उन्होंने कहा था कि सेवा निवृत्तिके बाद वह अपने गांव और पहाड़ों की सेवा करेंगे। उनकी राजनीतिक सत्ताधारियों से करीबी का लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि वह भी जनरल भुवन चन्द्र खण्डूड़ी, जनरल टीपीएस रावत जनरल गंभीर सिंह नेगी और जनरल लखेड़ा की तरह उत्तराखण्ड की राजनीति में पदापर्ण कर सकते हैं।
जनरल रावत जब 2017 में थल सेनाध्यक्ष बने थे तो उनके गांव और ननिहाल में बग्वाल (दीवाली) का जैसा महौल था। जब वह देश के पहले सीडीएस बने तो उनके पैतृक गांव में मिठाइयां बंटीं, लोग ढोल-दमाऊ की थाप पर मंडाण लगाने लगे। आज उनके गांव और ननिहाल में ही नहीं बल्कि सारा उत्तराखण्ड गमगीन है। बिनि रावत उत्तराखण्ड की आन बान और शान के प्रतीक थे।
अमर उजाला