मुगालते में महबूबा: पीएम ने बुलाई जम्मू-कश्मीर के सियासी दलों की बैठक में गुपकार गठबंधन के नेता अपनी बात कहने को आतुर

प्रधानमंत्री की ओर से बुलाई गई जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों की बैठक में गुपकार गठबंधन के नेताओं ने शामिल होने की बात करके यह संकेत तो दिया कि वह दिल्ली आकर केंद्र सरकार के समक्ष अपनी बात कहने को आतुर हैं,

Update: 2021-06-23 05:41 GMT

भूपेंद्र सिंह | प्रधानमंत्री की ओर से बुलाई गई जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों की बैठक में गुपकार गठबंधन के नेताओं ने शामिल होने की बात करके यह संकेत तो दिया कि वह दिल्ली आकर केंद्र सरकार के समक्ष अपनी बात कहने को आतुर हैं, लेकिन इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि वे सकारात्मक रवैये का परिचय देंगे। ऐसा इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इस गठबंधन के नेता यह इंगित कर रहे हैं कि वे कश्मीर में अलगाव और आतंक की जमीन तैयार करने वाले अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग कर सकते हैं। पता नहीं वे ऐसा करेंगे या नहीं, लेकिन उन्हेंं यह आभास हो जाए तो अच्छा कि इस अनुच्छेद की वापसी का स्वप्न देखना दिवास्वप्न देखने जैसा है। इस अनुच्छेद की वापसी की मांग का मतलब होगा, कश्मीर को आतंक की उसी अंधेरी खाई में धकेलने की कोशिश करना, जिससे उसे बड़ी मुश्किल से निकाला गया है। बेहतर हो कि गुपकार गठबंधन के नेता जमीनी हकीकत से परिचित हों। उन्हें दीवार पर लिखी यह इबारत भी पढ़नी चाहिए कि जिन दलों को अनुच्छेद 370 हटाने पर आपत्ति थी, वे भी उसकी वापसी की बात करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं।

उचित यह होगा कि केंद्र सरकार गुपकार गठबंधन के नेताओं को इससे परिचित कराने में देर न करे कि वे अपने होश ठिकाने रखकर 24 जून की बैठक में शामिल हों। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती यह कह कर शरारत ही कर रही हैं कि पाकिस्तान से भी बात की जानी चाहिए। ऐसा लग रहा है कि उन्हें यह मुगालता हो गया है कि वह कश्मीर में पाकिस्तान की एजेंट हैं। आखिर उनकी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की कि जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के साथ पाकिस्तान से भी बात की जानी चाहिए? क्या वह यह कहना चाहती हैं कि जम्मू-कश्मीर के लोगों पर पाकिस्तान का उतना ही अधिकार है, जितना यहां के राजनीतिक दलों को? आखिर उन्होंने यह सोच भी कैसे लिया कि भारत सरकार उनके इस वाहियात और देश विरोधी सुझाव पर गौर कर सकती है? उन्होंने यह कहकर अपनी देशद्रोही मानसिकता का ही परिचय दिया कि जब तालिबान से बात हो सकती है तो पाकिस्तान से क्यों नहीं? उनका यह कुतर्क यही बताता है कि उनके जैसे नेताओं ने किस तरह कश्मीर से गद्दारी करके पाकिस्तानपरस्ती की है। महबूबा ने कश्मीर को तबाही की गर्त में ले जाने वाले पाकिस्तान की जिस बेशर्मी के साथ तरफदारी की, उससे इसी बात की पुष्टि होती है कि उनके जैसे कुछ कश्मीरी नेता खाते भारत का हैं और गाते पाकिस्तान का हैं। ऐसे नेताओं से सावधान रहने में ही भलाई है।


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