दवा या जहर

पश्चिम अफ्रीका के गांबिया में कम से कम छियासठ बच्चों की जान इसलिए चली गई कि उन्हें खांसी होने पर एक ‘कफ सिरप’ पिलाया गया था। यह दवा हरियाणा के सोनीपत में स्थित एक कंपनी में बनी थी।

Update: 2022-10-08 04:50 GMT

Written by जनसत्ता; पश्चिम अफ्रीका के गांबिया में कम से कम छियासठ बच्चों की जान इसलिए चली गई कि उन्हें खांसी होने पर एक 'कफ सिरप' पिलाया गया था। यह दवा हरियाणा के सोनीपत में स्थित एक कंपनी में बनी थी। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि अभिवावकों ने अपने बीमार बच्चों की तबीयत ठीक करने के लिए वह दवा पिलाई होगी, मगर इसकी कीमत उन्हें उनकी जिंदगी गंवा कर चुकानी पड़ी। अगर यह महज किसी लापरवाही का मामला है तो दवा बनाने वाली किसी कंपनी को क्या इस आधार पर कोई छूट दी जा सकती है?

शुरुआती प्रतिक्रिया में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस मसले पर गंभीर रुख अख्तियार किया और संबंधित खांसी की दवा सहित गांबिया में चिह्नित की गई उन दवाओं के इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी जारी की, जिनकी वजह से छियासठ बच्चों के गुर्दे खराब हो गए और आखिरकार उनकी जान चली गई।

इस मसले पर डब्लूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि खांसी की ये कुछ दवाएं इंसान के लिए जहर की तरह हैं। डब्लूएचओ की चेतावनी के बाद केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। सवाल है कि किसी दवा के निर्माण और निर्यात या फिर देश में ही किसी मरीज के उपयोग से पहले क्या दवाओं की जांच की कोई व्यवस्था नहीं है, ताकि ऐसी त्रासद घटना को होने से रोका जा सके?

दरअसल, शायद यह मामला दबा रह जाता अगर इतनी बड़ी तादाद में बच्चों की जान जाने की घटना किसी बाहरी देश में नहीं हुई होती और डब्लूएचओ ने इस पर सख्त रवैया नहीं अपनाया होता। देश या विदेशों में कहां-कहां इस तरह की लापरवाही की वजह से कितने लोग अपनी सेहत पर कैसा दुष्प्रभाव झेलते हैं या फिर बीमारी से छुटकारे की भूख में जान गंवा बैठते हैं, यह ठीक से पता भी नहीं चल पाता।

क्या इस घटना को महज दवा के असर से हुई मौतों के तौर पर देखा जाएगा या फिर इसे किसी हत्याकांड की तरह भी बरता जाना चाहिए? आखिर बच्चों के बीमार होने के बाद भरोसे की वजह से ही वह दवा दी गई होगी। इस भरोसे के उलट गुर्दे खराब होने के साथ छियासठ बच्चों की मौत का जिम्मेदार किसे माना जाना चाहिए?

किसी भी दवा के निर्माण से लेकर खुले बाजार में आने से पहले एक लंबी प्रक्रिया होती है, जिसमें कई स्तरों पर परीक्षण के बाद ही उसे मरीजों के आम उपयोग के लिए जारी किया जाता है। लेकिन हालत यह है कि किस दवा को चिकित्सीय परीक्षण की किस प्रक्रिया से गुजारा गया और उसके क्या परिणाम रहे, इसका ब्योरा आम लोगों की पहुंच में नहीं होता।

हर दवा में इस्तेमाल रसायनों का कोई न कोई असर होता है। कई बार ऐसा भी हो सकता है कि कोई रसायन बीमारी को ठीक करने के साथ-साथ शरीर के किसी अन्य हिस्से को गंभीर नुकसान पहुंचा दे या फिर जानलेवा साबित हो। इसलिए जब तक कोई दवा दुष्प्रभाव के लिहाज से सौ फीसद सुरक्षित साबित न हो, तब तक उसके आम इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।

अगर किसी कंपनी की दवा या टीके से दुष्प्रभाव के मामले सामने आते हैं या फिर किसी की मौत होती है तो कंपनी सहित उसके उपयोग की सलाह देने वाले चिकित्सक को भी जिम्मेदार माना जाना चाहिए और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।


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