वक्त के रंगों में घुलते अर्थ
फिर बच्चे जब स्कूल जाने लगते हैं, तब रंगों के अर्थ कुछ-कुछ समझ में आने लगते हैं। स्कूल में चित्रकला की कक्षा में चित्रों में रंग भरते-भरते रंगों का सौंदर्यबोध होने लगता है।
तीरथ सिंह खरबंदा: फिर बच्चे जब स्कूल जाने लगते हैं, तब रंगों के अर्थ कुछ-कुछ समझ में आने लगते हैं। स्कूल में चित्रकला की कक्षा में चित्रों में रंग भरते-भरते रंगों का सौंदर्यबोध होने लगता है। जन्म दिन पर मिलने वाले हरे, लाल, नीले, पीले गुब्बारों के रंगों में खुशियों को अंदर तक महसूस किया जा सकता था, गर्मी की छुट्टियों में जब गर्मी बढ़ जाती और बाहर लू के थपेड़े पड़ने लगते थे, तब माता-पिता की नसीहत पर घर के अंदर ही रह कर खेलने की अनुमति होती।
लूडो के खेल में हरे, लाल, पीले और नीले रंग के चार अलग अलग खाने होते और उसी रंग की गोटियां होतीं। चटक रंगों के इस खेल का आकर्षण बचपन के दिनों में काफी होता है। चार लोग मिलकर एक साथ यह खेल, खेल सकते हैं। जो जिस रंग को ले एक बार जीत जाता, वह जिद करके हर बार उसी रंग को लेना चाहता। यह बात उसके दिमाग में घर कर जाती कि अमुक रंग उसके लिए भाग्यशाली है।
इस प्रकार अलग-अलग रंगों के साथ अलग-अलग किस्म का लगाव और विश्वास जुड़ गया। बच्चे भगवान का नाम ले लेकर पासा फेंकते और ज्यादा अंक आने की मन ही मन प्रार्थना करते, जैसे परीक्षा देते समय अच्छे नंबरों के लिए करते। यहीं से हमारे आस्थावान होने और भगवान पर भरोसा होने की शुरुआत हुई। सांप-सीढ़ी का खेल बच्चे कभी-कभी खेलते तो सही, पर जब सीढ़ी चढ़ चढ़ कर ऊपर तक पहुंच जाते और काला सांप अचानक काट लेता तो ठेठ ऊपर से नीचे आ पहुंचते। इसी कारण से यह खेल और काला रंग बच्चों को ज्यादा रास नहीं आया।
लट्टू को तब बच्चे भंवरी कहते थे। उस पर चढ़े तरह-तरह के रंगों को वे तेजी से घूमते हुए देखते। कंचे खेलते-खेलते कंचों में ढले रंगों को गोलाकार लिए देख कर खुश होते। कभी कंचे खेलते अगर किसी बच्चे के पिताजी देख लेते तो वे गुस्से से लाल-पीले हो जाते। इस तरह से बच्चों ने रंगों में छिपी नसीहतों, कहावतों और इंसान के बदलते रंगों को जाना और समझा।
बचपन में खेल-खेल में कभी कोई बच्चा गिर पड़ता और उसे चोट लग जाने पर खून बहने लगता, तो उस समय खून के लाल रंग को देख बच्चे की मां को भयभीत और चिंतित होना संवेदना का एक खास चित्र था। गर्मी के दिनों में बर्फ के गोलों पर पड़ने वाले विभिन्न रंग-बिरंगे मीठे रंगों से रंगों की मिठास को समझने में मदद मिली। तरबूज के अंदर छिपी शीतलता लिए लाल रंग की मिठास को महसूस करना एक अलग अहसास था। खरबूजों और आमों के पीले रंग की खुशबू और मिठास का आनंद बहुतों को याद होगा। हरी कच्ची केरियों की चटनी खाते हुए हरे रंग में बसी खटास से 'मुंह में पानी आना' मुहावरे का अर्थ समझ में आया।
उस दौर में बच्चे वर्षाकाल के बाद आसमान में दिखने वाले इंद्रधनुष के सौंदर्य को देख विस्मित होते और फिर उम्र के पड़ाव के साथ-साथ उसमें दिखाई देने वाले सूर्य के सातों रंगों- लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, जामुनी, और बैंगनी रंगों का उन्होंने मतलब समझा। कुछ और बड़े होने पर आकाश में ऊंचाई तक रंग-बिरंगी उड़ती पतंगों के माध्यम से रंगों को ऊंचे आसमान में उड़ते देखना भी कुछ हासिल करने जैसा ही था।
होली के त्योहार पर सब भेदभाव भुलाकर रंगों में एकाकार होने और गिले-शिकवे भुला देने का गहन अर्थ समझ में आना भी ज्ञान का रंग था। गर्मी की छुट्टियों में जब रेल में बैठ कर बच्चों ने ननिहाल जाते समय रेल के आगमन की सूचना देते हरे और रुकने तक लाल रहते संकेतकों की बत्तियों को निहारते हुए रंगों का सांकेतिक अर्थ समझा और यह भी सीखा कि रंगों की एक अलग भाषा होती है। हरे रंग की झंडी दिखाते ही रेल चल पड़ती और लाल रंग देखते ही ठहर जाती।
बचपन में दीपावली के साथ-साथ हर तीज-त्योहार पर, हरेक द्वार पर सजी रंगोली में भरे रंगों में जीवन की प्रसन्नता और संपन्नता का नया अर्थ मालूम हुआ। बचपन में पहली बार साइकिल चलाने पर पिता द्वारा समझाए गए यातायात संकेतक के लाल, पीले और हरे रंग की बत्तियों के संकेतक रंगों से अनुशासन के नवीन अर्थ समझ में आए।
लाल रंग इस बात का भी संकेत देता कि आगे खतरा है, हरा रंग आंखों को सुकून पहुंचाता और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता प्रतीत होता है। पीला रंग धैर्य रखकर तैयार रहने और अपनी बारी आने तक इंतजार करने का संदेश देता है।अब आगे देखना है कि ये रंग जीवन में और क्या-क्या रंग दिखाते हैं। अभी तो जिंदगी में प्रकृति के कई रंग देखना बाकी हैं। क्या खूब कहा गया है- 'उड़ जाएंगे तस्वीरों से रंगों की तरह हम, वक्त की टहनी पर हैं परिंदों की तरह हम।'