कर्नल विप्लव की शहादत
‘‘कोई भी यज्ञ बड़ा नहीं होता उसमें दी गईआहुति ही उसकी महानता का निर्धारण करती है।’’जम्मू-कश्मीर हो या पूर्वोत्तर के राज्य आतंकवाद के खिलाफ अभियान में अनेक सुरक्षा जवानों ने शहादत दी है और शहादत का सिलसिला थम नहीं रहा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा: ''कोई भी यज्ञ बड़ा नहीं होता उसमें दी गईआहुति ही उसकी महानता का निर्धारण करती है।''जम्मू-कश्मीर हो या पूर्वोत्तर के राज्य आतंकवाद के खिलाफ अभियान में अनेक सुरक्षा जवानों ने शहादत दी है और शहादत का सिलसिला थम नहीं रहा है। राष्ट्रीय रक्षा यज्ञ में जवानों की आहुति ने इस यज्ञ को महान बना दिया है। विनायक दामोदर सावरकर ने कहा था कि त्याग और बलिदान क्या होता है, यह खैरात में मिली सोने की थाली में खाने वालों को समझ नहीं आएगा। मणिपुर के चूडाचांदपुर जिले में सिनधार पर उग्रवादियों द्वारा सेना के काफिले पर आई.ई.डी. और ग्रनेट से किए गए हमले में असम राइफल के कमांडिंग अफसर कर्नल विप्लव त्रिपाठी समेत 5 जवान शहीद हो गए। इस हमले में कर्नल विप्लव के साथ बैठी उनकी पत्नी अनुजा शुक्ला और 8 वर्षीय पुत्र अबीर त्रिपाठी की भी मौत हो गई। कर्नल विप्लव छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार सुभाष त्रिपाठी के पुत्र हैं। उनके दादा किशोरी मोहन त्रिपाठी संविधान निर्मात्री समिति के सदस्य थे। कर्नल विप्लव अपने दादा काे ही अपना रोल मॉडल मानते थे और उन्हीं से प्रेरणा पाकर ही सेना में भर्ती हुए थे।संपादकीय :दिल्ली की हवा में घुलता जहरदिल्ली पुलिस कमिश्नर का संज्ञान लेने के लिए धन्यवादत्रिपुरा की प्रतिक्रिया महाराष्ट्र में क्यों?गायत्री प्रजापति को उम्रकैदखुर्शीद की खामा-ख्यालीड्रेगन को कड़ी चेतावनीआतंकवाद ने एक और हंसते खेलते परिवार को खत्म कर दिया। विप्लव की शहादत पर रायगढ़ के लोगों को गर्व है लेकिन उनकी आंखों में आंसू भी हैं। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर 8 साल के बच्चे और उसकी मां का क्या कसूर था? आतंकवादी संगठनों को इस कायराना हरकतों से कुछ हासिल होने वाला नहीं, फिर वे क्यों जवानों का खून बहाने में लगे हुए हैं। इन सवालों का हल वर्षों से देशवासी ढूंढ रहे हैं, फिर भी तिरंगे में लिपट कर जवानों के पार्थिव शरीर उनके पैतृक आवास पर लाए जाते हैं। देशवासी अमर रहे के नारों से आकाश गुंजायमान कर देते हैं। एक ही संवाद सुनाई देता है जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत की सेना अपने शहीदों के बलिदान का हिसाब जरूर लेगी। इस कायराना हमले की जिम्मेदारी पीएलए मणिपुर और मणिपुर नागा पीपुल्स फ्रंट ने ली है। इन दोनों संगठनों का चीन से कनैक्शन है। पीएलए का गठन 1978 में हुआ था जो खतरनाक आतंकी संगठन में से एक है और चीन इस आतंकी संगठन की मदद करता है। पीएलए चीनी हथियारों के बल पर नार्थ-ईस्ट में हिंसा फैलाना चाहता है। कई हमलों में इसका नाम आने के बाद केन्द्र ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। वैसे तो मणिपुर 21 अक्तूबर, 1949 को भारत का हिस्सा बन गया था, हालांकि हिंसक विरोध के बाद ही यह 1972 में एक अलग राज्य बना। मणिपुर के भारतीय राज्य बन जाने के बाद ही कई विद्रोही संगठनों का गठन हुआ, इन संगठनों की मांग स्वतंत्र देश का निर्माण करना रही। यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट पहला उग्रवादी गुट था जिसका गठन 24 नवम्बर 1964 में हुआ था। 1977 और 1980 के बीच पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, पीएलए कांगलीपाव और कांगलीपाव कम्युनिस्ट पार्टी जैसे उग्रवादी समूह बनते गए। 8 सितम्बर, 1980 को मणिपुर में अशांत क्षेत्र घोषित किया गया था। इसी वर्ष जनवरी में मणिपुर और नगालैंड में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम की अवधि को बढ़ाया गया था। अफस्पा नगालैंड में कई दशकों से लागू है। पड़ोसी नगालैंड में नगा राष्ट्रवाद के सामांतर उदय के कारण मणिपुर में उग्रवादी गुट पैदा हुए। एनएसपीएन के इसाक-मुडवा और खापलांग गुटों के बीच संघर्ष ने तनाव को और बढ़ा दिया, क्योंकि कुबी आदिवासियों ने कथित नगा उल्लंघनों से अपने हितों की रक्षा के लिए अपने स्वयं के गुरिल्ला समूह बना लिए। न्य जाति समूहों में भी उग्रवादी समूह पैदा हुए। आदिवासी मिलिशिया का उदय 1990 के दशक के दौरान हुई जातीय हिंसा का ही परिणाम था। मणिपुर के उग्रवादी समूह पुलिस कर्मियों को निशाना बनाते हैं। मंदिरों, शैणक्षिक संस्थानों और व्यवसायियों से जबरन धन वसूली ही इनका मुख्य स्रोत है। इन्होंने एनएच 39 और एनएच 53 राष्ट्रीय राजमार्गों पर स्थाई कर संग्रह चौकियां स्थापित कर ली थीं। सुरक्षा बलों ने अभियान चलाकर इन्हें ध्वस्त किया। कई बार दोनों राजमार्गों पर आर्थिक नाकेबंदी को पूर्वोत्तर के राज्य झेल चुके हैं।एक तरफ हम कश्मीर में आतंकवाद का सामना कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सुरक्षा बलों को पूर्वोत्तर के उग्रवाद से जूझना पड़ा है, तीसरी तरफ हमें नक्सली आतंक की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। महाराष्ट्र में गढ़चिरौली की मुठभेड़ में सुरक्षा बलों को 26 नक्सली मारे जाने में सफलता मिली है। ऐसा लगता है कि पूर्वोत्तर राज्यों में अब उग्रवादी गुट फिर से सिर उठाने लगे हैं। सुरक्षा बलों को इनका सफाया करने में सफलता भी मिल रही है लेकिन उन्हें घातक हमले भी सहने पड़ रहे हैं। देश में हर तरफ आतंक का विप्लव नजर आ रहा है। देश के बाहरी दुश्मनों से निपटना आसान है लेकिन देश के भीतर के आतंक का मुकाबला करना आसान नहीं होता। चुनौतियां बहुत हैं लेकिन वह दिन दूर नहीं जब लोग और समाज सामूहिक रूप से आतंक के खिलाफ आवाज उठाएंगे। जवानों का खून बहाना इस राष्ट्र को स्वीकार्य नहीं। कर्नल विप्लव और उनके साथियों को राष्ट्र नमन करता है।