अंक और परीक्षा परिणाम: शिक्षा व्यवस्था में बढ़ते अंकों से डरा जाए कि नहीं?
लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
अंकों की भी बड़ी अजब-गजब दुनिया है। अंक अधिक आने पर चारों तरफ खुशी का माहौल छा जाता है, फिर वह परिणाम परीक्षा का हो या चुनाव का। वहीं स्थितियां विपरीत हों तो निराशा और अवसाद घेर लेता है। अंकों की दुनिया भी यहीं तक थोड़े ही सीमित है। यही अंक पेट्रोल और गैस के दामों को बढ़ाकर आम आदमी के जीवन के अंको तक को कम कर देते हैं। सियासत में यही अंक कुर्सी बदल देते हैं, राजा को रंक और रंक को राजा बना देते हैं।
यह अंकों का ही खेल है कि आज की पूरी दुनिया ही कम्प्यूटर के शून्य और एक की बाइनरी व्यवस्था में चल रही है। आप भी सोचेंगे भला आज अंकों पर बात कहां से आ गई। तो आप ज्यादा नहीं सोचिए, बस अपने आस-पास की दुनिया में ही एक नजर दौड़ा लें तो आपको घर की व्यवस्था से लेकर वैश्विक बाजार तक में छाया अंकों का ही साम्राज्य मिलेगा। यही अंक घर के बजट से लेकर वैश्विक बजट तक में मूल्य निर्धारण की भूमिका निभाते हैं।
यह अंक कभी ग्रहों की चाल को बदल रहे हैं तो कहीं जिंदगी को। कोरोना महामारी के इस काल में इसी ने आम आदमी की जेब से नोटों के अंकों का आंकड़ा तक गड़बड़ा दिया है।
अंकों पर तो सियासत से लेकर महाभारत तक के होने की अनंत कथाएं मिलती हैं, फिर यहां तो शिक्षा व्यवस्था में अंकों के बढ़ते साम्राज्य पर बात हो रही है।
इस समय पूरे देश में बारहवीं के परीक्षा परिणाम के उपरांत महाविद्यालय, विश्वविद्यालय में प्रवेश हो रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश का कटऑफ निन्यानवें दशमलव तक जा रहा है।
से में मुझ जैसे जो इस पीढ़ी के लिए अब पुरानी पीढ़ी की धरोहर मात्र हैं, इस सोच से ही नहीं निकल पा रहे कि क्या निन्यानवें अंक प्राप्त करने वाला छात्र अपने में संपूर्ण हैं? इस पर भी एक बोर्ड द्वारा निन्यानवें तक अंक दिए जाना और दूसरे द्वारा पचास से साठ तक में सीमित कर दिया जाना, क्या अंकों के इस खेल को बिगाड़ नहीं देता है?
बीते दिनों हमारे देश की सबसे बड़ी परीक्षाओं में दसवीं और बारहवीं के छात्रों का परिणाम आया है। छात्र निन्यानवें प्रतिशत तक अंकों को लाए हैं। क्या कभी आपके जमाने में छात्र इतने अंक लाते थे और इतने अच्छे अंक लाने के बाद भी भविष्य की आशंकाओं और हताशा व निराशा में डूबे होते थे? बीते कुछ वर्षों से जैसे-जैसे अंकों के अधिक मिलने का ग्राफ बढ़ा, उसके साथ ही छात्रों की खुदखुशी का भी ग्राफ बढ़ा है। ऐसे में बताइए शिक्षा व्यवस्था में इन बढ़ते अंकों से डरा जाए कि नहीं?
अब तो पहली कक्षा का छात्र भी कक्षा में नंबरों के महत्व को समझने लगा है, क्योंकि हमने उसे नंबरों का महत्व सिखा जो दिया है। पहली कक्षा से लेकर बारहवीं तक नंबरों की दौड़, फिर कॉलेज परीक्षाओं में नंबरों की दौड़, फिर जीवन व रोजगार के लिए नंबरों के पीछे दौड़ ने शिक्षा व्यवस्था को ज्ञानार्जन से अधिक अंकों के अर्जन तक सीमित कर दिया है।
अंकों के पीछे दौड़ने की ये रीत कभी खत्म नहीं होती है। परीक्षा परिणामों से लेकर जीवन की दौड़ तक में अंकों के महत्व ने व्यक्ति को जीवन से ही दूर कर दिया है। तभी तो हर दूसरे दिन आत्महत्या करते लोग मृत्यु के अंकों के क्रम को बढ़ाते देखे जाते हैं।
वर्तमान में हम जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था में हैं, यहां अंक ही छात्र और व्यक्ति के जीवन के मूल्यांकन का अंतिम सत्य है। यदि छात्र अंकों की इस होड़ में पिछड़ता है तो समाज, परिवार, व्यवस्था में भी उसे पिछड़ा समझा जाता है, जबकि हमारे आसपास ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जो जीवन में अंकों की होड़ में तो असफल रहे, लेकिन जीवन में सफल व्यक्तित्व बनकर उभरे। अंकों की इस होड़ ने छात्रों को मशीन का बाइनरी सिस्टम बना दिया है, जो शून्य और एक से संचालित है, उससे अधिक वह भी नहीं सोच सकता है।
हमें यदि अपनी शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करना है तो हमें अंकों की इस प्रणाली को बदलना होगा, क्योंकि अंकों का यह मानदंड किसी भी छात्र के संपूर्ण व्यक्तिव के अध्ययन का मापदंड नहीं बन सकता है।
बाल मनोविज्ञान में भी कहा जाता है कि यदि व्यक्ति की प्रतिभा व क्षमता को पहचाने बिना मछली को पेड़ पर चढ़ना, पक्षी को पानी में तैरना सिखाया जाएगा तो वह जीवन भर असफल ही कहलाएगा, क्योंकि उनकी क्षमताएं इसके विपरीत हैं।
उसी प्रकार प्रत्येक छात्र की प्रतिभा का मूल्यांकन अंकों के आधार पर किया जाएगा तो वह विकास नहीं कर पाएगा। क्योंकि प्रत्येक छात्र और उसकी सीखने की क्षमताएँ अलग-अलग होती है। हम प्रत्येक छात्र या व्यक्ति का मूल्यांकन एक ही मापदंड के आधार पर नहीं कर सकते हैं। यदि हमें देश के बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाना है उनके भीतर आत्मनिर्भर, स्वावलंबन का भाव पैदा करना है तो हमें उनके मूल्यांकन की पद्धति को बदलना होगा। अंकों के पीछे दौड़ने की परंपरा को समाप्त करना होगा और उनकी क्षमताओं को समझना होगा।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।