तेल रिसाव के कारण खतरे में पड़ता समुद्री जीव-जगत

Update: 2022-09-19 18:17 GMT
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
इसी साल मई में गोवा के कई समुद्र तट तैलीय कार्सिनोजेनिक टारबॉल के कारण चिपचिपा रहे थे. गोवा में सन् 2015 के बाद ऐसी 33 घटनाएं हो चुकी हैं. टारबॉल काले-भूरे रंग के ऐसे चिपचिपे गोले होते हैं जिनका आकार फुटबॉल से लेकर सिक्के तक होता है. ये समुद्र तटों की रेत को भी चिपचिपा बना देते हैं और इनसे बदबू भी आती है.
गोवा में सिन्कुरिम से लेकर मोराजिम तक, बाघा, अरम्बोल. वारका, केवेलोसिन, बेनेलिम सहित 105 किलोमीटर के अधिकांश समुद्र तट पर इस तरह की गंदगी आना आम बात है. इससे पर्यटन तो प्रभावित होता ही है, मछली पालन से जुड़े लोगों के लिए यह रोजी-रोटी का सवाल बन जाता है. इसका कारण है समुद्र में तेल या क्रूड ऑइल का रिसाव.
कई बार यह रास्तों से गुजरने वाले जहाजों से होता है तो इसका बड़ा कारण विभिन्न स्थानों पर समुद्र की गहराई से कच्चा तेल निकालने वाले संयंत्र भी हैं. वैसे भी अत्यधिक पर्यटन और अनियंत्रित मछली पकड़ने के ट्रोलर समुद्र की सतह को लगातार तैलीय बना ही रहे हैं.
सबसे चिंता की बात यह है कि तेल रिसाव की मार समुद्र के संवेदनशील हिस्से में ज्यादा है. संवेदनशील क्षेत्र अर्थात कछुआ प्रजनन स्थल, मैंग्रोव, कोरल रीफ्स (प्रवाल भित्तियां) हैं. मनोहर पर्रिकर के मुख्यमंत्रित्व काल में गोवा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) की ओर से तैयार गोवा राज्य तेल रिसाव आपदा आपात योजना में कहा गया था कि गोवा के तटीय क्षेत्रों में अनूठी वनस्पतियों और जीवों का ठिकाना है.
इस रिपोर्ट में तेल के बहाव के कारण प्रवासी पक्षियों पर विषम असर की भी चर्चा थी. पता नहीं दो खंडों की इतनी महत्वपूर्ण रिपोर्ट किस लाल बस्ते में गुम गई और तेल की मार से बेहाल समुद्र तटों का दायरा बढ़ता गया.
समुद्र में तेल रिसाव की सबसे बड़ी मार उसके जीव जगत पर पड़ती है. व्हेल, डॉल्फिन जैसे जीव अपना पारंपरिक स्थान छोड़ कर दूसरे इलाकों में पलायन करते हैं तो जल निधि की गहराई में पाए जाने वाले छोटे पौधे, नन्ही मछलियां, मूंगा जैसी संरचनाओं को स्थायी नुकसान होता है. कई समुद्री पक्षी मछली पकड़ने नीचे आते हैं और उनके पंखों में तेल चिपक जाता है और वे फिर उड़ नहीं पाते और तड़प-तड़प कर उनके प्राण निकल जाते हैं.
तेल रिसाव का सबसे प्रतिकूल प्रभाव तो समुद्र के जल तापमान में वृद्धि है जो कि जलवायु परिवर्तन के दौर में धरती के अस्तित्व को बड़ा खतरा है. पृथ्वी-विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र बहुत अधिक प्रभावित हो रहे हैं. सनद रहे कि ग्लोबल वार्मिंग से उपजी गर्मी का 93 फीसदी हिस्सा समुद्र पहले तो उदरस्थ कर लेते हैं फिर जब उन्हें उगलते हैं तो ढेर सारी व्याधियां पैदा होती हैं.

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