मदर फेसबुक का मानसपुत्र होने के नाते दो टकिया लेखक होने पर भी मेरे फेसबुकिया लिटरेचर के इतने लाइकिया हैं कि इतने तो भगवान के भी नहीं होंगे। आज लिटरेरी वर्ल्ड में दो प्रकार की लिटरेरी राइटिंग हो रही है, व्हाट्सएपीय राइटिंग और फेसबुकिया राइटिंग। परंतु ऑन द होल फेसबुकिया लिटरेचर ही रचा जा रहा है। आजकल हर किस्म का राइटर अपने को अपने माता पिता का कम, मदर फेसबुक और फादर व्हाट्सएप का पुत्र, सुपुत्र शान से सिर ऊंचा किए बताए फिरता है कॉलर खड़े किए। मदर फेसबुक और फादर व्हाट्सएप का पुत्र बनने में जो परमानंद है वह अपने माता का पुत्र बनने में कहां? आधुनिक होने पर भी बैकवर्ड, दकियानूस हैं वे माता पिता जो अपने पुत्रों, सुपुत्रों को मदर फेसबुक और फादर व्हाट्सएप के चरणों में जाने से रोकते रहते हैं। छुप छुप कर उनकी जासूसी करते पेगासस स्पाईवेयर से करवाते रहते हैं। बंधुओ! जबसे मैंने मां सरस्वती के बदले मदर फेसबुक के श्रीचरणों में लैपटॉप रख साहित्य का प्रॉडक्शन स्टार्ट किया है, हाथों की उंगलियां टाइप करते करते नहीं थकतीं। थकने के बाद भी कहती रहती हैं हमें लैपटॉप के की बोर्ड पर और घिसो, लैपटॉप के की बोर्ड पर और घिसो। मेरे हाथों तो हाथों, पांव तक की उंगलियां अब सोए सोए भी यों हिलती रहती हैं ज्यों वे लैपटॉप के की बोर्ड पर टाइप कर रही हों। मदर फेसबुक का मानसपुत्र होने के चलते अब तो मेरा मन करता है सोए सोए भी जो मन में आए फेसबुक के चरणों में गोबरियाता जाऊं, गोबरियाता जाऊं, मदर फेसबुक के चरणों में सादर समर्पित करता जाऊं।
माई डियर मदर फेसबुक! अहा! तुम्हारा हृदय कितना विशाल है! तुम अपने मानसपुत्र को कुछ भी रचने से रोकती टोकती नहीं, मां की तरह। बस, हर बार मेरी पीठ थपथपाती रहती है कि हे मेरे मानसपुत्र, मेरे सीने पर जो टाइप करना, टाइप कर। बस, मौज कर। रियली मदर! मदर हो तो तुम्हारे जैसी! वर्ना मदर होने के बाद भी बिन मदर ही भले। हे मदर फेसबुक! तुम्हारी ब्लेसिंग्स से अब तो मेरे फेसबुकिया लिटरेचर के तुलसीदास, कालिदास, चंदरबरदाई, कबीर, देवकीनंदन खत्री, अज्ञेय तक फैन हो गए हैं। हे मदर फेसबुक! कई बार तो अब मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे सीने पर कुछ भी चेपने को जन्मा अजन्मा आधिकारिक फेसबुकजयी राइटर हूं। या कि इस लिटरेरी वर्ल्ड में मेरा अवतरण फेसबुकिया लिटरेचर को चरम पर पहुंचाने के लिए ही हुआ है। हे मदर फेसबुक! तुम्हारे चरणों की सौगंध! तुम्हारा ये मानसपुत्र मरने के बाद भी तब तक क्रिएटिव करता रहेगा जब तक…जब तक…।
अशोक गौतम
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