ममता का राजधर्म: पीएम मोदी की समीक्षा बैठक का बहिष्कार करना राजनीतिक शिष्टाचार और राजधर्म के विरुद्ध
पश्चिम बंगाल में यास तूफान से हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए प्रधानमंत्री की ओर से बुलाई गई समीक्षा बैठक
पश्चिम बंगाल में यास तूफान से हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए प्रधानमंत्री की ओर से बुलाई गई समीक्षा बैठक से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिस तरह किनारा किया, उससे उन्होंने अपने तुनकमिजाज रवैये का ही प्रदर्शन किया। उन्होंने यह तुनकमिजाजी तब दिखाई, जब प्रधानमंत्री समीक्षा बैठक करने खुद बंगाल पहुंचे थे। ममता इस बैठक में आधे घंटे देर से पहुंचीं और विधिवत बातचीत करने के बजाय तूफान से हुए नुकसान संबंधी कुछ कागज प्रधानमंत्री को सौंप कर चलती बनीं।
यह प्रोटोकॉल के साथ सामान्य राजनीतिक शिष्टाचार और राजधर्म के भी विरुद्ध है। पता नहीं समीक्षा बैठक से कन्नी काटने और प्रधानमंत्री को इंतजार कराने से ममता को क्या हासिल हुआ, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि उन्होंने ऐसा करने के लिए ठान लिया था और इसी कारण राज्य के मुख्य सचिव भी देर से पहुंचे। बाद में ममता ने सफाई दी कि उन्हेंं इस बैठक के बारे में पता नहीं था, लेकिन इसके पहले वह यह कह रही थीं कि उन्हेंं किसी और जरूरी बैठक में जाना था। साफ है कि वह किसी बहाने प्रधानमंत्री की बैठक का बहिष्कार करना चाहती थीं।
यह तर्क गले नहीं उतरता कि प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात से भी जरूरी उनकी वह कथित बैठक थी, जिसका जिक्र उन्होंने किया। ममता का यह रवैया केंद्र-राज्य संबंधों में और बिगाड़ पैदा करने का ही काम करेगा।ममता बनर्जी भले ही संघीय ढांचे के पक्ष में बड़ी-बड़ी बातें करें, लेकिन उनकी ओर से एक अर्से से हर वह काम किया जा रहा है, जिससे केंद्र के साथ खटास बढ़े। वह प्रधानमंत्री की ओर से कोरोना संक्रमण पर बुलाई गई बैठकों से भी गैर हाजिर रह चुकी हैं। वह पिछली बैठक में अवश्य शामिल हुईं, लेकिन यह शिकायत करने से नहीं चूकीं कि उन्हेंं बोलने नहीं दिया गया। उन्होंने यह शिकायत इसके बावजूद की कि उस बैठक में जिलाधिकारियों के बोलने की बारी थी।
वह इससे परिचित थीं, फिर भी उन्होंने अपने एक जिलाधिकारी को बोलने से रोक दिया। इस सबसे यही प्रकट होता है कि वह केंद्र के साथ टकराव पर आमादा हैं। सवाल है कि ऐसा करके वह किसका हित कर रही हैं? कम से कम अपने राज्य का तो नहीं ही कर रही हैं। माना जाता है कि उन्होंने समीक्षा बैठक से इसलिए कन्नी काटी, क्योंकि उसमें राज्यपाल के साथ नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी भी थे। उनसे पराजित होने के कारण उनके मन में कुछ क्लेश हो सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह राजधर्म का पालन करने से इन्कार करें। किसी मुख्यमंत्री को यह शोभा नहीं देता कि वह प्रधानमंत्री की बैठक का उस तरह बहिष्कार करे, जैसे ममता ने किया।
क्रेडिट बाय दैनिक जागरण