बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी का किया गुस्सा कहीं अब उन पर भारी ना पड़ जाए

सत्ता का मोह और पद खोने का डर क्या होता है इसे ममता बनर्जी से बेहतर कौन जान सकता है

Update: 2021-05-22 10:56 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | अजय झा सत्ता का मोह और पद खोने का डर क्या होता है इसे ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) से बेहतर कौन जान सकता है. ममता ने पश्चिम बंगाल चुनाव (West Bengal Election) में दिलेरी दिखायी और शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) को सबक सिखाने के लिए अपने परंपरागत भवानीपुर सीट (Bhawanipur Seat) को छोड़ कर नंदीग्राम (Nandigram) से चुनाव लड़ने चली गईं. और जिसका डर था वही हुआ, तृणमूल कांग्रेस (TMC) की ज़बरदस्त जीत हुई पर दीदी खुद चुनाव हार गईं. लेकिन हिम्मत नहीं हारी.

दीदी ने आरोप लगाया कि मतगणना (Counting) में धांधली हुयी है, धमकी दी कि वह इसे सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के संवैधानिक पीठ में इसके खिलाफ जायेंगी और नैतिकता की अनदेखी करते हुए मुख्यमंत्री पद पर फिर से आसीन हो गयीं. यहां तक तो सब ठीक था, संविधान में प्रावधान है कि छह महीनो तक कोई गैर-विधायक भी मंत्री या मुख्यमंत्री रह सकता है. पर छः महीने बीतने के पहले उसका विधानसभा का सदस्य बनना अनिवार्य है.
कैबिनेट की पहली बैठक में ले आईं विधान परिषद का प्रस्ताव
कैबिनेट की पहली बैठक में ही पश्चिम बंगाल में विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव पारित कर दिया गया, ताकि दीदी विधान परिषद के रास्ते इस संवैधानिक अनिवार्यता को पूरा कर सकें. पर विधान परिषद का गठन इतना आसान भी नहीं है. 1969 में पश्चिम बंगाल में विधान परिषद को हमेशा के लिए भंग कर दिया गया था. वर्तमान में सिर्फ छः राज्यों में ही विधान परिषद है, आंध्रप्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में, जिसमे से बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विधान परिषद के रास्ते ही कुर्सी पर काबिज़ है. दीदी ने सोचा अगर तीन हो सकते हैं तो चौथा क्यों नहीं? बस उन राज्यों और पश्चिम बंगाल में फर्क सिर्फ इतना ही है कि उन राज्यों में विधान परिषद है और पश्चिम बंगाल में इसका नए सिरे से गठन करना होगा.
लोकसभा-राज्यसभा में पास कराना होगा प्रस्ताव
पहले इस बाबत प्रस्ताव को विधानसभा से पारित करवाना होगा और उसके बाद संसद के दोनों सदनों से. संसद के दोनों सदनों में अब बीजेपी के नेतृत्ववाली एनडीए बहुमत में है. यानि यह तब ही संभव है जब बीजेपी इसके लिए तैयार हो. वैसे भी अभी किसी को नहीं पता कि संसद का अगला सत्र कब बुलाया जाएगा, जब तक करोना महामारी पर काबू नहीं पा लिया जाता तब तक शायद नहीं. इस बात की सम्भावना कम ही है की संसद का मानसून सत्र बुलाया जाएगा. शायद मानसून और शीतकालीन सत्र की संयुक्त बैठक ही बुलाई जायेगी, और इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि संसद का अगला सत्र अक्टूबर में ही बुलाया जाए ताकि 5 नवम्बर तक पश्चिम बंगाल में विधान परिषद का गठन भी हो जाये और दीदी उसकी सदस्य भी बन जाएं.
मोदी की वजह से बची थी उद्धव ठाकरे की कुर्सी
पद जाने का खौफ सभी को होता है, चाहे वह कितना भी शेर या शेरनी बनने की कोशिश करे. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पिछले साल कुर्सी जाते जाते तब बची थी जब उन्होंने फ़ोन कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से गुहार लगाई थी. महाराष्ट्र में विधान परिषद था, पर मुख्यमंत्री और राज्यपाल में अनबन और करोना में प्रकोप के कारण राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी चुनाव का आदेश देने को राजी नहीं हो रहे थे. ठाकरे की कुर्सी तब ही बची जब उन्हेंने शेर का रूप छोड़ा और ऊंट बनकर पहाड़ के नीचे आये.
ममता बनर्जी के लिए खड़ी हो सकती है मुश्किल
मोदी का ठाकरे के लिए स्नेह समझा जा सकता है. बीजेपी और शिवसेना एक लम्बे समय तक साथ थे और बीजेपी भविष्य के मद्देनजर शिवसेना से हमेशा के लिए पंगा नहीं लेना चाहती थी. पर बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस में तो 36 का आंकड़ा है. चुनाव संपन्न होते ही जिस तरह से बीजेपी के कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमला शुरू हो गया उसके बाद खुद ममता बनर्जी को भी पता रहा होगा कि केंद्र सरकार से कोई रहम की उम्मीद करना बेमानी होगी.
खबर है कि ममता बनर्जी अब भवानीपुर से विधानसभा के लिए उपचुनाव लड़ेंगी. भवानीपुर से चुने गए तृणमूल कांग्रेस के विधायक शोभनदेब चट्टोपाध्याय ने इस्तीफा दे दिया जिसे विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने शुक्रवार को मंजूर कर लिया. पर दीदी और उनकी कुर्सी सुरक्षित रहेने के बीच अभी भी एक पेंच अटका हुआ है.
क्या चुनाव आयोग चुनाव कराएगा?
मद्रास हाई कोर्ट से मिले फटकार के बाद केन्द्रीय चुनाव आयोग अब फूंक-फूंक कर कदम रखेगा. अगर पश्चिम बंगाल से करोना का प्रकोप पूरी तरह से सितम्बर के महीने तक ख़त्म नहीं हुआ तो चुनाव आयोग शायद चुनाव भी ना कराये. और अगर 5 नवम्बर तक उन्होंने विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ नहीं ली तो उनकी कुर्सी जाती रहेगी, जो उन्हें कतई मंज़ूर नहीं होगा.
पांच सीटों पर होगा चुनाव
अब पश्चिम बंगाल में पांच सीटों के लिए चुनाव होगा. मुर्शिदाबाद जिले के दो सीटों पर प्रत्यासियों की मृत्यु के कारण चुनाव स्थगित कर दिया गया था और बीजेपी के दो विधायक जगन्नाथ सरकार और निशीथ परमानिक ने क्रमशः शांतिपुर और दिनहाटा सीटों से इस्तीफा दे दिया है. दोनों लोकसभा के सदस्य हैं और पार्टी ने फैसला किया कि वह लोकसभा के सदस्य बने रहें.
यानि अब पश्चिम बंगाल के पंचों सीटों के लिए एक साथ ही चुनाव होगा और चुनाव होना तब ही संभव होगा जबकि पुरे पश्चिम बंगाल में करोना पर पूरी तरह से काबू कर लिया जाए, जो ममता बनर्जी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. करोना पर काबू तब ही संभव है जब सभी को टीका लग जाए. अभी सभी भारतीयों को टीका लगते-लगते यह साल तो निकल ही जाएगा.
भवानीपुर से जीतना इतना आसान नहीं होगा
और अगर चुनाव हो भी गया तो इस बात की क्या गारंटी है कि दीदी भवानीपुर से चुनाव जीत ही जायेंगी? बीजेपी दीदी का पीछा नहीं छोड़ने वाली है. वाममोर्चा भी वहां ज़रूर होगा यह साबित करने के लिए कि हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी को हराने के लिए तृणमूल कांग्रेस के साथ मैच फिक्सिंग नहीं की थी, जिसका आरोप वाममोर्चा-कांग्रेस पार्टी के गठबंधन पर लगा था. इतना तो तय है की भवानीपुर का उपचुनाव जब भी हो काफी रोचक होगा जिसमे बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंक देगी. इस सम्भावना को भी नहीं नकारा जा सकता कि भवानीपुर के मतदाता दीदी से नाराज़ हों क्योंकि वह भवानीपुर को छोड़ कर नंदीग्राम चली गयीं थीं.

गुस्सा सेहत के लिए हानिकारक होता है

कोरोना के कारण अगर चुनाव करना संभव ना हो सके या फिर अगर दीदी चुनाव हार जाएं तो फिर एक अजीब स्थिति पैदा हो जायेगी. यहां बता दें कि किसी गैर सदस्य को दुबारा उसी पद की शपथ नहीं दिलाई जा सकती. कहते हैं कि गुस्सा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. गुस्से में दीदी शुभेंदु अधिकारी को सबक सिखाने नंदीग्राम पहुंच गयी और मुसीबतों को आमंत्रण दे दिया. दीदी की डगर कतई आसान नहीं रहने वाली है.

*एक्सर्प* गुस्से में आकर ममता बनर्जी ने जो पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का कदम उठाया था आज वह उनके रास्ते का रोड़ा बन गया है. विधान परिषद का प्रस्ताव इतनी जल्दी पारित होने वाला नहीं हैं और कोरोना के बीच उपचुनाव होंगे इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता. ऐसे में ममता बनर्जी के कुर्सी पर खतरा मंडराते दिख रहा है.


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