कोरोना नहीं CM की कुर्सी जाने से डरी हुई हैं ममता बनर्जी
बंगाल (Bengal) की दीदी यानि ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को सत्ता खोने का डर सताने लगा है
बंगाल (Bengal) की दीदी यानि ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को सत्ता खोने का डर सताने लगा है. 5 नवम्बर अब ज्यादा दूर नहीं है. अगर उस दिन तक वह विधायक नहीं चुनी गयीं तो ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ेगी. सोमवार को दीदी की व्याकुलता साफ़ झलक कर सामने आ गई जब कोलकाता में उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल (West Bengal) में अब कोरोना (Corona) की स्थिति सामान्य हो गयी है और समय आ गया है कि जनता को उनके चुने हुए प्रतिनिधि दिए जाएं. उन्होंने चुनाव आयोग से प्रदेश में बिना और देरी के विधानसभा में रिक्त सीटों पर चुनाव कराने की प्रक्रिया को शुरू करने की मांग की.
पश्चिम बंगाल विधानसभा में फ़िलहाल सात सीटें खाली हैं, जिसमें से भवानीपुर (Bhawanipur) भी एक है जहां से दीदी नंदीग्राम (Nandigram) से हारने के बाद चुनाव लड़ना चाहती हैं. दीदी के अनुसार अपना विधायक चुनना जनता का अधिकार है जिससे चुनाव आयोग जनता को और अधिक समय तक वंचित नहीं रख सकती. अपनी मांग के समर्थन में उन्होंने कहा कि चार महीनों का समय गुजर चुका है और कोरोना महामारी की स्थिति अब काबू में है.
तीसरे लहर का खतरा बरकरार
वहीं कल केन्द्रीय गृहमंत्रालय के एक एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट आयी है, जिसमें सभी राज्यों को कोरोना के तीसरे दौर से निपटने के लिए तैयार रहने की सलाह दी गयी है. इस कमिटी के अनुसार कोरोना का तीसरा दौर कभी भी सितम्बर-अक्टूबर के महीने में आ सकता है. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि कोरोना का तीसरा दौर पिछले दो दौर से कहीं ज्यादा भयावह हो सकता है जिसका कारण है लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद लोगों में कोरोना के प्रति सतर्कता में कमी आना.
कई राज्यों में विधानसभा और लोकसभा का उपचुनाव होना है. ऐसा तो हो नहीं सकता कि चुनाव आयोग सिर्फ ममता बनर्जी को परेशान करने के लिए उपचुनाव की घोषणा नहीं कर रही है. दीदी ने यह भी ऐलान किया की जल्द ही तृणमूल कांग्रेस का एक दल चुनाव आयोग से मिलेगा और चुनाव आयोग को दस्तावेज़ सौपेंगा इस बात को प्रमाणित करने के लिए कि अब पश्चिम बंगाल में, खासकर उन सात क्षेत्रों में जहां चुनाव होना है, अब स्थिति सामान्य हो चुकी है.
क्या सच में पश्चिम बंगाल में स्थिति सामान्य हो चुकी है?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार अभी भी पश्चिम बंगाल में कोरोना के 9,461 एक्टिव केस हैं, जिनमे से 9,181 नए मामले 9 से 22 अगस्त के बीच दर्ज किए गए हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि पहले के मुकाबले अब पश्चिम बंगाल में स्थिति बेहतर है, पर यह कहना कि प्रदेश में अब स्थिति सामान्य है सही नहीं हो सकता. पश्चिम बंगाल में कोरोना का एक्टिव दर कल के आंकड़ों के अनुसार 0.61 प्रतिशत था जो अभी भी 14 अन्य राज्यों की मुकाबले ज्यादा है. जिन राज्यों की तुलना में पश्चिम बंगाल में अभी भी कोरोना के एक्टिव दर ज्यादा हैं वह राज्य हैं उत्तर प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, बिहार, पंजाब, झारखण्ड, उत्तराखंड, गोवा, जम्मू और कश्मीर तथा चंडीगढ़. पश्चिम बंगाल में कोरोना के कारण मृत्यु दर कल के आंकड़ों के अनुसार 1.19 प्रतिशत था. पश्चिम बंगाल में मृत्यु दर अभी भी केरल, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, असम, त्रिपुरा, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के मुकाबले अधिक है.
अगर स्थिति सामान्य है तो प्रदेश में पाबंदियां क्यों?
सवाल यह है कि अगर पश्चिम बंगाल में स्थिति इतनी सामान्य हो गयी है, जैसा कि ममता बनर्जी ने दावा किया है, तो फिर अभी तक प्रदेश में पाबंदियां क्यों लगी हैं? पश्चिम बंगाल में रात का कर्फ्यू अभी भी जारी है. स्कूल, कॉलेज और अन्य शिक्षा संस्थान अभी भी बंद हैं. शनिवार और रविवार को कोलकाता में मेट्रो नहीं चल रही है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में क्षमता से 50 प्रतिशत यात्रियों को ही चलने की इजाजत है. सरकारी और प्राइवेट ऑफिस में अभी भी 50 प्रतिशत लोगों को ही आने की इजाजत है. थियेटर, सिनेमा घरों, आदि को भी 50 प्रतिशत क्षमता पर ही चलाने की मजूरी दी गयी है, शादी व्याह तथा दाह संस्कार में अभी भी सिर्फ 50 लोग भी शामिल हो सकते हैं.
सार्वजनिक स्थानों पर सोशल डिस्टेंसिंग तथा मास्क का नियम अभी भी अनिवार्य है. इन सभी प्रतिबंधों को पश्चिम बंगाल सरकार ने 13 अगस्त से जारी किया था जो 31 अगस्त तक लागू रहेगा. अगर स्थिति इतनी सामान्य हो चुकी है तो फिर स्कूल कॉलेज खोलने से राज्य सरकार को संकोच क्यों है? अगर स्थिति इतनी सामान्य ही हो चुकी है कि चुनाव कराया जा सकता है तो फिर प्रतिबन्ध अभी भी क्यों हैं? इस विरोधाभास का जवाब तो ममता बनर्जी को ही देना होगा.
कल्पना कीजिये कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की नहीं बल्कि किसी और दल की सरकार होती तो क्या ममता बनर्जी उस पार्टी के मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए चुनाव के मांग का विरोध या समर्थन करतीं? जवाब यही है कि चूंकि ममता बनर्जी की कुर्सी खतरे में है, इसलिए उन्हें स्थिति सामान्य दिखने लगी है.
अपने ईगो की वजह से इस मुसीबत में फंसीं ममता बनर्जी
इस स्थिति के लिए जबकि उनकी कुर्सी जा सकती है जिम्मेदार चुनाव आयोग नहीं बल्कि स्वयं दीदी ही हैं. प्रतिशोध की भावना से उन्होंने अपने पुराने सहयोगी शुभेंदु अधिकारी, जो बीजेपी में शामिल हो गए और वर्तमान में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं, को सबक सिखाने के लिए दीदी ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की ठानी. उनका ईगो भी सामने आया. अगर वह चाहतीं तो दो क्षेत्रों से चुनाव लड़ सकती थीं, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया. चुनाव हार गयीं और नैतिकता को दरकिनार करके फिर से मुख्यमंत्री बन गईं.
जब प्रदेश में चुनाव हुआ था तब देश और पश्चिम बंगाल कोरोना महामारी के दूसरे दौर से गुजर रहा था. उन्हें पता होना चाहिए था कि उनके पराजय की स्थिति में उपचुनाव कराने में विलम्ब भी हो सकता है. अगर उन्हें पता नहीं होता तो फिर पश्चिम बंगाल में विधान परिषद गठित करने का प्रस्ताव क्यों कैबिनेट की पहली मीटिंग में ही पास किया गया. यह अलग बात है कि वह प्रक्रिया काफी लम्बी है और पश्चिम बंगाल में विधान परिषद अभी हाल फ़िलहाल में नहीं गठित होने वाला है. विधान परिषद का जब भी गठन होगा तो प्रदेश के खजाने पर करोड़ों रुपयों का प्रतिमाह अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.
ममता बनर्जी को विधान परिषद सिर्फ इसीलिए चाहिए था ताकि वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर सुरक्षित रह सकें, भले ही सरकार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ क्यों ना पड़ जाए. और जब विधान परिषद् बनता नहीं दिख रहा है और 5 नवम्बर की समय सीमा निकट आती जा रही है तो कोरोना के तीसरे दौर से निपटने की तैयारी की जगह वह स्तिथि सामान्य होने का दावा करने लगी हैं.
अगले वर्ष हो सकते हैं उप चुनाव
चुनाव आयोग चुनाव कराने से पहले स्थिति का अपने स्तर पर अध्ययन करेगा ना कि सिर्फ दीदी की कुर्सी बचाने के लिए फटाफट उपचुनाव करा देगा. इस बात की प्रबल सम्भावना है कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा उपचुनाव अगले वर्ष के प्रारंभ में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ ही कराया जाए. ऐसी स्थिति में दीदी चुनाव आयोग पर बीजेपी के इशारे पर चलने का आरोप लगाती दिखेंगी, कोलकाता और दिल्ली में धरना-प्रदर्शन भी करेंगी.
अगर चुनाव आयोग ने जल्द ही पश्चिम बंगाल में उपचुनाव कराने की घोषणा नहीं की तो दीदी की कुर्सी चली जाएगी, लेकिन उनके लिए यह वरदान भी साबित हो सकता है. वह दिल्ली में रह कर विपक्षी एकता पर जोर-शोर से काम शुरू कर सकती हैं ताकि उनका देश का अगला प्रधानमंत्री बनने का सपना साकार हो सके.