by Lagatar News
Kalyan Kumar Sinha
महाकाल की नगरी और 12 वर्षों में होने वाले सिंहस्थ कुंभ के लिए उज्जैन पहले से भी प्रसिद्ध रही है. इस नगर को सिंहस्थ कुंभ के लिए पहले भी मध्य प्रदेश शासन सजाता-संवारता रहा है, लेकिन काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर वहां से भी भव्य और चार गुना बड़े बन कर तैयार महाकालेश्वर कॉरिडोर अब इस नगर को विश्व पटल पर स्थापित करने वाला है. यह कॉरिडोर इस नगरी में देश-विदेश के पर्यटकों के लिए बड़ा आकर्षण आर्थिक संपन्नता भी लेकर आएगा.
इस कॉरिडोर की परिकल्पना को चार वर्षों से भी कम की अवधि में साकार कर दिया गया है. इसका निर्माण कार्य 2019 में शुरू हुआ था. इसके लोकार्पण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब जाकर समय निकाल पाए हैं. वे आगामी मंगलवार, 11 अक्टूबर को इस महाकालेश्वर कॉरिडोर के भव्य और दिव्य स्वरूप का लोकार्पण देश की जनता के लिए करेंगे.
मध्यप्रदेश की पवित्र एवं पावन नगरी उज्जैन में विराजित महाकाल के कारण भारत की इस नगरी का प्राचीन काल से ही हिन्दू धार्मिक स्थलों में विशिष्ट स्थान रहा है. उज्जैन प्राचीन काल में उज्जयिनी के नाम से विख्यात था, इसे अवंतिकापुरी भी कहते थे. भगवान भोलेनाथ के कुल 12 ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की यह नगरी शिप्रा नदी के उत्तरी छोर पर बसा है. महाकाल की इस नगरी को चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य की नगरी भी कहा जाता है. यहां तीन गणेश और दो शक्तिपीठ के साथ भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग होने के साथ ही यहां 12 वर्षों का कुंभ स्नान भी सिंहस्थ बन जाता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर द्वापर युग में स्थापित हुआ था, जिसे 800 से 1000 वर्ष प्राचीन माना जाता है. जबकि आज का यह महाकाल मंदिर उज्जैन लगभग 150 वर्ष पूर्व राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने निर्मित करवाया था. यह भारत की परम पवित्र सप्तपुरियों में से एक है. महाभारत, शिव पुराण और स्कंद पुराण में महाकाल ज्योतिर्लिंग की महिमा का पूरे विस्तार के साथ वर्णन किया गया है.
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इस नगरी का महत्व इस कारण भी खास है, क्योंकि यहां की काल गणना विश्व मानक बनी हुई है. यह नगर एक समय में वैज्ञानिक शोध के लिए भी प्रसिद्ध रहा. गणित और ज्योतिष शास्त्र के प्रकांड विद्वानों में वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य विभिन्न स्थानों से भारत भ्रमण करते हुए यहां आकर बस गए और उन्होंने दुनिया को बताया कि उज्जैन शून्य देशांतर (जीरो मेरीडियन) पर बसा है, जहां कर्क रेखा उसे काटती है. यही कारण है कि इसे पृथ्वी की नाभि माना जाता था और इसे "भारत का ग्रीनविच" कहा जाता है.
महाकाल मंदिर के शिखर और निकट के मंगल (ग्रह) मंदिर के शिखर की छाया से भी अक्षांश (एक्सिस) की अग्रगति का पता लगाया जाता रहा था. इसके साथ ही यहां नक्षत्रों और ग्रहों पर भी व्यापक शोध हुए. विद्वानों के शोधों ने ज्योतिष शास्त्र और काल गणना को विश्व मानक बना दिया. उनके बाद से अभी तक उज्जैन का स्थान इस क्षेत्र में विशिष्टता अच्क्षुण है. मध्य और पश्चिम भारत का हिन्दू समाज अपने त्यौहार की तिथि और विवाह, वास्तु, शुभ-अशुभ दिन आदि, जन्म और मृत्यु काल भी यहां के विद्वानों द्वारा रचित काल निर्णय करने वाले पंचांग के आधार पर ही मानता है. उत्तर भारत के लोग वाराणसी के पंचांग के अनुसार चलते हैं.
इतिहास बताता है कि सन् 1235 ई. में मुस्लिम आक्रांता इल्तुतमिश ने महाकालेश्वर के प्राचीन भव्य मंदिर का विध्वंस कर दिया था. लेकिन धर्मप्राण मराठाओं तथा राजा भोज द्वारा इस मंदिर का पुनरुद्धार के साथ इसका विस्तार कर महादेव के महाकाल स्वरूप में विराजित इस पावन मंदिर से जुड़ी जन आस्था को प्रतिबिंबित किया.
महाकालेश्वर कॉरिडोर के निर्माण से उज्जैन का आधुनिक स्वरूप इसे भारत के धार्मिक स्थलों में बहुत ही विशिष्ट बन गया है. महाकाल कॉरिडोर का निर्माण कार्य 2019 में शुरू हुआ था. इसके पूरा होने के बाद महाकाल मंदिर कॉरिडोर उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित पांच हेक्टेयर में फैले काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से भी चार गुना बड़ा हो जाएगा. महाकाल मंदिर कॉरिडोर के प्रथम चरण का काम पूरा हो चुका है. इस पर फिलहाल करीब 316 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं.
महाकाल का यह प्रोजेक्ट 750 करोड़ रुपए का है. दूसरा फेज भी 1 साल के अंदर पूरा हो जाएगा. पहले महाकाल परिसर सिर्फ 2 हेक्टेयर का था, अब पूरा कॉरिडोर 20 हेक्टेयर का हो जाएगा. महाकाल कॉरिडोर में देवी-देवताओं की अद्भुत प्रतिमाएं हैं. भगवान शिव के ही 190 रूप हैं. यानी नजारा देवलोक जैसा है. इसके तहत पहले चरण में महाकाल पथ, रूद्र सागर का सौंदर्यीकरण, विश्राम धाम आदि काम पूरे किए जा चुके हैं.
विस्तारीकरण के कामों के बीच हाल ही में महाकाल पथ श्रद्धालुओं के लिए खोला गया था. त्रिवेणी संग्रालय के पास से महाकाल पथ का बड़ा द्वार बनाया गया है. विस्तार के बाद महाकाल मंदिर के सामने का मार्ग 70 मीटर चौड़ा हो गया है. महाकाल मंदिर चौराहे तक का मार्ग 24 मीटर चौड़ा किया जाएगा. विस्तारीकरण के बाद महाकाल मंदिर का क्षेत्र 2.2 हेक्टेयर से बढ़कर 20 हेक्टेयर से अधिक हो गया है.
महाकाल कॉरिडोर में 18 हजार बड़े पौधे लगाए जा रहे हैं. आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी से रुद्राक्ष, बिल्व पत्र और शमी के पौधे मंगाए हैं. त्रिवेणी संग्रहालय के पीछे 920 मीटर लंबा महाकाल कॉरिडोर, दो भव्य प्रवेश द्वार, कमल तालाब, सप्त ऋषि वन, नवग्रह वाटिका, महाकाल प्लाजा, रुद्रसागर समुद्र तट सौंदर्यीकरण, प्रसाद, टिकट काउंटर, नूतन विद्यालय परिसर, गणेश विद्यालय परिसर का निर्माण पूरा हो गया है. गलियारे में 25 फीट ऊंची और 500 मीटर लंबी लाल पत्थर की दीवार में शिव महापुराण में वर्णित घटनाओं के आधार पर भित्तिचित्र हैं. वहीं 108 स्तंभ स्थापित किए गए हैं, जिन पर भगवान शिव की विभिन्न मुद्राएं बनी हुई हैं. ई-रिक्शा और अन्य वाहनों का रूट भी तैयार है. बड़े रुद्र सागर से गाद निकालकर, किनारों को पत्थरों से गाड़ कर गंभीर-शिप्रा का साफ पानी भर दिया गया है. साथ ही रुद्रसागर में सीवरेज का पानी दूषित न हो, इसके लिए भी स्थायी व्यवस्था की गई है, त्रिवेणी संग्रहालय के सामने सरफेस पार्किंग बनाई गई है.
कॉरिडोर में शिव तांडव स्त्रोत, शिव विवाह, महाकालेश्वर वाटिका, महाकालेश्वर मार्ग, शिव अवतार वाटिका, प्रवचन हॉल, नूतन स्कूल परिसर, गणेश विद्यालय परिसर, रूद्रसागर तट विकास, अर्ध पथ क्षेत्र, धर्मशाला और पार्किंग सर्विसेस भी तैयार किया गया है. इससे भक्तों को दर्शन करने और कॉरिडोर घूमने के दौरान खास अनुभव होने वाला है. खास बात है कि भव्य कॉरिडोर के संचालन और रखरखाव के लिए करीब एक हजार लोगों की जरूरत होगी.
देवों के देव महादेव के इस कॉरिडोर को बनाने में सर्वधर्म सम्भाव का भी पूरा ख्याल रखा गया है. महाकाल कॉरिडोर सिर्फ प्रोजेक्ट भर नहीं है, ये मध्य प्रदेश और भारत के सांस्कृतिक गौरव की नई गाथा भी है. ऐसे में मध्यप्रदेश शासन ने इसके उद्घाटन को महोत्सव के तौर पर मनाने का फैसला लिया है. दूसरे चरण में महाराजवाड़ा परिसर विकास, रुद्रसागर जीर्णोद्धार, छोटा रूद्र सागर तट, रामघाट का सौंदर्यीकरण, पार्किंग एवं पर्यटन सूचना केंद्र, हरी फाटक पुल का चौड़ीकरण, रेलवे अंडरपास, रुद्रसागर पर पैदल पुल, महाकाल द्वार एवं प्राचीन मार्ग बेगम बाग मार्ग का विकास होगा.