मां काली और प्रधानमंत्री मोदी

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के सन्दर्भ में मां काली की महत्ता बताते हुए स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि किस तरह पूरे देश में मां भवानी के इस रौद्र रूप के पीछे आध्यात्मिकता का वह भाव छिपा हुआ है

Update: 2022-07-12 02:53 GMT

आदित्य चोपड़ा: प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के सन्दर्भ में मां काली की महत्ता बताते हुए स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि किस तरह पूरे देश में मां भवानी के इस रौद्र रूप के पीछे आध्यात्मिकता का वह भाव छिपा हुआ है जिसमे समस्त विश्व की असुर प्रवृत्तियों के विनाश का लक्ष्य निहित है और मानव मात्र के कल्याण का ध्येय अभीष्ट है। वास्तव में मां महाकाली रणचंडी दुर्गा का वह आत्मनिष्ठ स्वरूप है जिसमे सम्पूर्ण सृष्टि के चर-अचर को भयमुक्त करने का सद प्रयास छिपा हुआ है। असुर प्रवृत्तियों को पृथ्वी पर उत्पन्न होने से रोकने के लिए ही भगवती दुर्गा ने मां महाकाली को भयंकर काल-कराल स्वरूप प्रदान किया और रक्तबीज राक्षस का वध किया। यह रक्तबीज औऱ कुछ नहीं बल्कि मानव जीवन में प्रकट होने वाली ऐसी व्याधियां हैं जो समाज में दुष्प्रवृत्तियों को प्रश्रय देती हैं।

हिन्दू या सनातन धर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें धार्मिक संकेतों या प्रतीकों के आधार पर जीवन की वैज्ञानिकता को स्थापित किया जाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पीपल या बड़ के वृक्ष की पूजा करना है। पीपल व बड़ वृक्ष सर्वाधिक आक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं जिससे मानव जीवन सुगम बनता है। प्रकृति के जितने भी गुण हैं सभी का सनातन धर्म में पूजन करने का विधान है। इसका वैज्ञानिक अर्थ यही है कि हम जीवन जीने के लिए ऊर्जा देने वाले प्रत्येक तत्व को आदर देते हैं। देवियों की पूजा करने का विधान भी इसीलिए है कि मातृशक्ति को हम सृष्टि की सृजनहार के रूप में सदा याद रखते रहैं। यह प्रकृति जन्य शक्ति पुंज्जों के प्रति कृतज्ञता भारत में जन्मे धर्मों के अलावा अन्य धर्मों में हमें देखने को नहीं मिलती। इसका भी एक कारण है कि ईश्वर ने प्रकृति के उपहारों से सबसे ज्यादा भारत को ही नवाजा है। भारतीय उपमहाद्वीप के मौसम से लेकर कृषि उत्पादों की विविधता हमें बताती है कि इस धरती पर प्रकृति किस कदर मेहरबान रही है। हम दस दिशा मानते हैं और छह ऋतुएं मानते हैं। इन सभी ऋतुओं की अलग- अलग कृषि व बागवानी पैदावार होती है। इन्हीं के अनुसार सनातन धर्म की पूजा-अर्चना के रंग बिखरते जाते हैं। पहाड़ों से लेकर मैदानी भागों में और उत्तर से लेकर दक्षिण भारत के क्षेत्रों में जलवायु व मौसम के अनुसार देवताओं का सृजन चलता रहता है मगर सभी में भाव मानव कल्याण का रहता है और सबी मनुष्यों के बीच प्रेम-भाव व सौहार्द बनाये रखने का रहता है।

हम अपनी पूजा में अपने वर्ग या समुदाय के कल्याण की भावना नहीं रखते बल्कि समस्त मानव जाति के कल्याण की कामना करते हैं। इस वातावरण में भारत में कट्टरता या धर्मांधता पैदा होने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। यही वजह है कि हमारे देवताओं के क्षेत्रानुसार परिवर्तन के बावजूद मानव कल्याण का अभीष्ट भाव विलुप्त नहीं होता। साकार उपासना करने वाले सनातन धर्मी अपने इष्ट देव को सांसारिक विसंगतियों से बचाने के लिए स्वयं का इष्टदेव में एकाकार स्वरूप स्थापित करके उसकी शक्तियों से खुद को परिपूरित कर समाज कल्याण को ध्येय बनाते हैं। इसीलिए राक्षसों का वध करने के लिए सभी देवताओं ने मां चंडी या दुर्गा को अपनी-अपनी विशिष्ट शक्तियां देकर असुरों के विनाश का संकल्प लिया। मगर ऐसे स्वरूपों में वर्जनाएं पैदा करने वाले लोग हिन्दुओं की विविधतापूर्ण पूजा शैली का मजाक उड़ाने या गलत फायदा उठाते हुए व्यंग्य कसने के प्रयास भी करते रहते हैं। इसी क्रम में मां काली को सिगरेट पीते हुए दिखाना भी है। परन्तु तृणमूल कांग्रेस की सांसद श्रीमती महुआ मोइत्रा को कौन समझाए कि उन्होंने काली मां के मदिरा पान या मांस भोगी होने का तर्क देकर कोई रहस्य प्रकट नहीं किया है बल्कि सिगरेट पीते हुए काली मां का चित्रण के लघु फिल्म में किये जाने का समर्थन किया है। यह समर्थन बिना चित्र का जिक्र किये किया गया है। इसका सीधा मतलब यही है कि महुआ को काली मां के ऐसे चित्रण से कोई परहेज नहीं है। यह साफ तौर पर पलायनवादी ( हिपोक्रेसी) सोच है। महुआ में अगर हिम्मत है तो वह सीधे सिगरेट पीती काली मां के चित्र के बारे में तीखा विरोध करें और अपनी स्थिति स्पष्ट करें पर्दे के पीछे से काली मां के तम्बाखू पान का समर्थन करने से पता लगता है कि महुआ मोइत्रा बौद्धिक रूप से कितनी ईमानदार हैं ? भारत तो वह देश है जिसमे 12 महीनों इसके किसी न किसी राज्य या क्षेत्र अथवा अंचल में धार्मिक कहानियों के नाट्य रूपान्तरों का मंचन चलता ही रहता है। इतना ही नहीं इन कहानियों का उपयोग सामाजिक चेतना पैदा करने के लिए भी किया जाता है। साठ के दशक के अन्त में जब भारत में परिवार नियोजन का कार्यक्रम एक सरकारी मुहिम के तौर पर चलाया गया था तो भगवान राम के परिवार के चित्र के नीचे यह छापा गया था कि 'हम दो-हमारे दो'। हालांकि उस समय कुछ हिन्दू संगठनों द्वारा इसका विरोध किये जाने पर तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने इस विज्ञापन पर प्रतिबन्ध लगा दिया था मगर व्यापक तौर पर हिन्दू समाज ने इसका संज्ञान नहीं लिया था। इसी प्रकार कल ही असम राज्य के मोरीगांव कस्बे में महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन को सफल बनाने के लिए कुछ संगठनों ने नुक्कड़ नाटक करके किसी व्यक्ति को भगवान शंकर का रूप दिया। राज्य पुलिस ने उसे गिरफ्तार इस वजह से कर लिया कि इससे लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं। मगर राज्य के मुख्यमन्त्री हेमन्त बिस्व सरमा ने तुरन्त उसे रिहा करने के आदेश दिये और कहा कि समसामयिक या ज्वलन्त मुद्दों पर धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल करने से धर्म की अवमानना नहीं होती। श्री सरमा भाजपा पार्टी के ही मुख्यमन्त्री हैं। अतः काली मां के मुद्दे पर तृणमूल सांसद जिस प्रकार का अड़ियल रुख अपना रही हैं उससे भारत खास कर बंगाल के लोगों की भावनाएं आहत जरूर हो रही हैं। 

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