जीवन लंबा हो, स्वस्थ भी

हाल ही में आई वर्ल्ड हेल्थ स्टैटिस्टिक्स रिपोर्ट 2021 ने महिलाओं और पुरुषों की औसत आयु और उनके स्वास्थ्य से जुड़े कुछ पहलुओं पर नए सिरे से विचार की जरूरत बताई है।

Update: 2021-07-12 10:24 GMT

हाल ही में आई वर्ल्ड हेल्थ स्टैटिस्टिक्स रिपोर्ट 2021 ने महिलाओं और पुरुषों की औसत आयु और उनके स्वास्थ्य से जुड़े कुछ पहलुओं पर नए सिरे से विचार की जरूरत बताई है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में महिलाओं की औसत आयु पुरुषों के मुकाबले अधिक है। वे अपेक्षाकृत ज्यादा लंबा जीवन जीती हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि स्वास्थ्य के मामले में भी वे पुरुषों से बेहतर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अगर बात औसत स्वस्थ आयु की हो तो महिलाओं और पुरुषों के बीच का यह अंतर काफी कम हो जाता है। स्वस्थ औसत आयु के लिहाज से महिलाएं और पुरुष करीब-करीब एक जैसी ही स्थिति में हैं। यानी जीवन के आखिरी हिस्से में पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों का स्वास्थ्य ज्यादा कमजोर होता है। अपने देश में भी औसत आयु के मामले में पुरुषों से तीन साल आगे दिखती महिलाएं स्वस्थ औसत आयु का सवाल उठने पर पुरुषों के समकक्ष नजर आने लगती हैं। अगर जेंडर के सवाल को छोड़कर इस मसले को संपूर्णता में देखा जाए तो बात थोड़ी और साफ होती है।

वैश्विक औसत आयु 73.3 वर्ष है तो स्वस्थ औसत आयु 63.7 वर्ष। यानी दोनों के बीच करीब नौ साल का अंतर है। इसका साफ मतलब यह हुआ कि लोगों के जीवन के आखिरी दस साल तरह-तरह की बीमारियों के बीच गुजरते हैं। एक और दिलचस्प ट्रेंड यह देखा गया है कि विभिन्न देशों में औसत आयु तो बढ़ रही है, लेकिन स्वस्थ औसत आयु में वैसी बढ़ोतरी नहीं दिख रही। यानी महिला और पुरुषों के बीच का अंतर समस्या का सिर्फ एक पहलू है। बुजुर्ग आबादी के स्वास्थ्य का पहलू अलग से भी कम महत्वपूर्ण नहीं। अच्छी बात यह है कि दोनों में से कोई भी पहलू विशेषज्ञों की नजरों से अछूता नहीं है। परिवार में पितृसत्तात्मक सोच के प्रभाव में महिलाओं के स्वास्थ्य को ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती। खाने-पीने के मामले में भी महिलाएं खुद को पीछे रखना उपयुक्त मानती हैं।
इसके अलावा आर्थिक आत्मनिर्भरता के अभाव में स्वास्थ्य सेवाओं तक महिलाओं की सीधी पहुंच अमूमन नहीं हो पाती। जैसे-जैसे महिलाओं की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, इस मोर्चे पर सुधार की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन जहां तक वैश्विक स्तर पर औसत आयु और स्वस्थ औसत आयु में अंतर का सवाल है तो वहां मामला नीतियों और योजनाओं की दिशा का भी है। विभिन्न सरकारों का ही नहीं वैश्विक स्तर पर मेडिकल रिसर्चों के लिए होने वाली फंडिंग में भी जोर मौत के कारणों को समझने और दूर करने पर रहता है जिसका पॉजिटिव नतीजा औसत आयु में बढ़ोतरी के रूप में नजर आता है। अब जरूरत बुजुर्ग आबादी को होने वाली बीमारियों पर ध्यान केंद्रित करने की है ताकि उसे उन बीमारियों बचाने के उपाय समय रहते किए जा सकें। तभी हम अपने बुजुर्गों के लिए लंबा और साथ ही अच्छी सेहत से युक्त जीवन सुनिश्चित कर पाएंगे।

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