हिंसा का पाठ

हैरानी है कि दिल्ली में एक प्राथमिक विद्यालय की एक शिक्षिका को स्कूल परिसर में खुद पर इतना नियंत्रण रखना भी जरूरी नहीं लगा कि वह जो कर रही है, उससे बच्ची की मौत हो सकती है। गनीमत रही कि छत से फेंके जाने के बाद बच्ची किसी तरह जिंदा बच गई।

Update: 2022-12-17 04:59 GMT

Written by जनसत्ता; हैरानी है कि दिल्ली में एक प्राथमिक विद्यालय की एक शिक्षिका को स्कूल परिसर में खुद पर इतना नियंत्रण रखना भी जरूरी नहीं लगा कि वह जो कर रही है, उससे बच्ची की मौत हो सकती है। गनीमत रही कि छत से फेंके जाने के बाद बच्ची किसी तरह जिंदा बच गई।

लेकिन इस घटना से एक बार फिर यह सवाल उठा है कि स्कूलों में शिक्षक के रूप में नियुक्ति से पहले जरूरी योग्यताएं हासिल करने के लिए तय प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद भी एक व्यक्ति कैसे अपने भीतर की कुंठा को बनाए रख पाता है। स्कूल परिसर में शिक्षक की भूमिका को बुनियादी रूप से भी समझने वाला व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों और बर्ताव को लेकर सजग और संयत रहेगा। मगर किसी भी स्थिति में अगर एक बच्ची के साथ ऐसी घटना होती है तो यह गंभीर चिंता की बात है।

घटना के बाद आरोपी शिक्षिका के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया जरूर शुरू कर दी गई है, लेकिन मामले के ब्योरे से प्रथम दृष्टया यही लगता है कि एक सामान्य मनोदशा का व्यक्ति किसी बच्चे के प्रति ऐसा बर्ताव नहीं कर सकता। अव्वल तो एक शिक्षक के लिए बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के साथ-साथ उनके साथ पेश आने के सलीके का ध्यान रखना जरूरी होता है।

यह न केवल पेशागत जिम्मेदारी है, बल्कि कानूनी तौर पर भी बच्चों को स्कूल में पीटना तो दूर, डांटने-फटकने पर भी सख्त मनाही है। अगर कोई शिक्षक इसका ध्यान नहीं रखता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। मगर इसके बावजूद ऐसे शिक्षकों के बेलगाम बर्ताव की खबरें अक्सर आती रहती हैं, जिसमें किसी बच्चे को पीटने या यातना देने की अपनी कुंठा को ड्यूटी का हिस्सा समझ लिया जाता है।

ज्यादा दिन नहीं हुए, जब उत्तर प्रदेश के कानपुर के एक निजी स्कूल में पांचवीं कक्षा के एक छात्र के हाथ पर अध्यापक ने सिर्फ इसलिए छेद करने वाली मशीन चला दी कि वह दो का पहाड़ा नहीं सुना सका था। इसी तरह, कुछ समय पहले राजस्थान में जालौर के एक स्कूल में शिक्षक की पिटाई से एक दलित बच्चे की मौत की खबर सुर्खियों में रही थी। वजह सिर्फ यह थी कि बच्चे ने स्कूल की मटकी से पानी पी लिया था।

सवाल है कि एक शिक्षक की जिम्मेदारी और संवेदनाओं को भूल कर कोई व्यक्ति अगर बच्चों के खिलाफ इस तरह के बर्बर व्यवहार करने लगे तो किस कसौटी पर उसे शिक्षक होने के योग्य कहा जा सकता है! शिक्षक बनने की योग्यता हासिल करने के क्रम में प्रशिक्षण की प्रक्रिया से गुजरने के दौरान न केवल पाठ को पढ़ाने के तौर-तरीके बताए जाते हैं, बल्कि बाल मनोविज्ञान और उसकी परतों को ध्यान में रखते हुए व्यवहारगत सलीकों का भी अध्ययन कराया जाता है।

इसके बावजूद अगर कुछ शिक्षक अपनी मानसिक दुर्बलता की वजह से बच्चों के प्रति कई बार बर्बरता की हद पार कर जाते हैं तो इसे कैसे देखा जाएगा? अगर कोई शिक्षक किसी तरह की असुविधाजनक मानसिक परिस्थिति से गुजर रहा हो, तो उसे मनोवैज्ञानिक परामर्श या चिकित्सा का सहारा लेना चाहिए। उसकी कुंठा का खमियाजा स्कूल में पढ़ने आए किसी मासूम को क्यों भुगतना पड़े?

 

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