श्रीलंका के सबक

कंगाल हो चुके श्रीलंका में अब राजनीतिक संकट भी गहरा गया है। मंगलवार को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने संसद में बहुमत खो दिया। इकतालीस सांसद उनके गठबंधन से अलग हो गए।

Update: 2022-04-06 04:15 GMT

Written by जनसत्ता: कंगाल हो चुके श्रीलंका में अब राजनीतिक संकट भी गहरा गया है। मंगलवार को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने संसद में बहुमत खो दिया। इकतालीस सांसद उनके गठबंधन से अलग हो गए। इससे पहले सोमवार को राष्ट्रपति ने अपने भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे सहित सभी छब्बीस कैबिनेट मंत्रियों से इस्तीफा ले लिया था।

बासिल की जगह जिन अली साबरी को नया वित्त मंत्री बनाया, उन्होंने भी चौबीस घंटे के भीतर पद छोड़ दिया। श्रीलंका के रिजर्व बैंक के गवर्नर अजीत निवार्ड कबराल भी इस्तीफा दे चुके हैं। कुल मिला कर देश ऐसे राजनीतिक भंवर में फंस गया है जहां किसी को कोई समाधान नजर नहीं आ रहा। हालांकि स्थिति संभालने के प्रयास के तौर पर राष्ट्रपति ने विपक्षी दलों से एकता सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा था, पर विपक्ष ने इसे ढकोसला बताते हुए ठुकरा दिया। सवाल है, ऐसे में श्रीलंका का भविष्य क्या होगा?

श्रीलंका के हालात से एक बात साफ है कि जनता में राजपक्षे परिवार को लेकर भारी गुस्सा है। आपातकाल और कर्फ्यू के बावजूद लोग सड़कों पर हैं। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री निवास के बाहर बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं। जनता की अब एक ही मांग है कि राजपक्षे परिवार सत्ता से हटे। श्रीलंका सरकार में राजपक्षे परिवार का जो दबदबा है, वह हैरान करने वाला है। महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति थे, तब गोटबाया राजपक्षे सेना में निर्णायक भूमिका में थे।

जब गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बने तो महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री और छोटे भाई बासिल को वित्त मंत्री बना लिया। महिंदा राजपक्षे के बेटा नमाल राजपक्षे खेल मंत्री थे। फिर राजपक्षे परिवार को चीन का करीबी माना जाता है। श्रीलंका आज चीन के कर्ज जाल में जिस तरह से फंस गया है, उसके लिए भी राजपक्षे परिवार को दोषी बताया जाता रहा है। एक लोकतांत्रिक देश में सत्ता के भीतर एक ही कुनबे का दबदबा कैसे देश को तबाही की ओर ले जाता है, श्रीलंका इसका एक उदाहरण है।

श्रीलंका में आज जो कुछ भी हो रहा है, उसकी कीमत सिर्फ और सिर्फ जनता को चुकानी पड़ रही है। कई महीनों से देश में पेट्रोल-डीजल की भारी किल्लत है। पेट्रोल पंपों पर सेना तैनात है। महंगाई का आलम यह है कि चाय का कप सौ रुपए, चावल पांच सौ रुपए किलो, चीनी तीन सौ रुपए किलो और चार सौ ग्राम दूध पाउडर आठ सौ रुपए में बिक रहा है। जहां दिहाड़ी मजदूरों को पांच सौ रुपए रोजाना भी नहीं मिल रहे हों, वहां लोग कैसे जी पाएंगे? बिजली-पानी तक की आपूर्ति नहीं हो रही। पैसा नहीं होने की वजह से सरकार ने कई देशों में अपने दूतावास तक बंद कर दिए हैं।

देश का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो चुका है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद लेने को लेकर सरकार और रिजर्व बैंक के बीच गहरे मतभेद रहे हैं। सवाल है ऐसे में हो क्या? राष्ट्रपति ने इस्तीफा देने से साफ मना कर दिया है। श्रीलंका में अगर नेतृत्व परिवर्तन भी हो जाए तो भी देश को आर्थिक संकट से निकाल पाना किसी के लिए आसान नहीं होगा।

सरकारों की अदूरदर्शी नीतियां और इससे उत्पन्न महंगाई जैसे संकट कैसे किसी देश के लिए काल बन जाते हैं, श्रीलंका और पाकिस्तान इसकीमिसाल हैं। भारत भी बेलगाम महंगाई से जूझ ही रहा है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका का जिक्र करते हुए चेता भी चुके हैं। बहरहाल, अभी श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मदद के साथ ही कठोर कदमों और वित्तीय अनुशासन की जरूरत है।


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