त्यागराज स्टेडियम में कुत्ता घुमाने वाले वीआईपी को सबक, तत्काल ठोस कार्रवाई ही है इलाज

एक आईएएस कपल को अपना डॉगी टहलाने की सुविधा देने के लिए दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम को समय से पहले खाली करवा लिए जाने की खबर से कम हैरान करने वाली नहीं रही उस पर सत्ता प्रतिष्ठान की तीखी और त्वरित प्रतिक्रिया।

Update: 2022-05-28 03:16 GMT

नवभारत टाइम्स: एक आईएएस कपल को अपना डॉगी टहलाने की सुविधा देने के लिए दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम को समय से पहले खाली करवा लिए जाने की खबर से कम हैरान करने वाली नहीं रही उस पर सत्ता प्रतिष्ठान की तीखी और त्वरित प्रतिक्रिया। खबर आने के कुछ घंटों के अंदर ही पति, पत्नी आईएएस में से एक का लद्दाख और दूसरे का अरुणाचल प्रदेश तत्काल प्रभाव से तबादला कर दिया गया। पद और प्रभाव के दुरुपयोग के मामलों में सरकार की ऐसी संवेदनशीलता दुर्लभ और इसीलिए खास तौर पर स्वागत योग्य है। अपने देश में जिस तरह का वीआईपी कल्चर चलता है, उसी का एक उदाहरण था एक आईएएस कपल का यह मान लेना कि त्यागराज स्टेडियम में डॉगी टहलाना उनका ऐसा सहज स्वाभाविक अधिकार है कि उससे उपजी असुविधाओं का भी ख्याल रखने की उन्हें कोई जरूरत नहीं है।

इस वजह से स्पोर्ट्सपर्संस को अपना नियमित ट्रेनिंग प्रोग्राम जारी रखने में दिक्कत हो रही थी। उन्हें आठ साढ़े आठ के बजाय सात बजे ही ट्रेनिंग छोड़कर स्टेडियम खाली करना पड़ रहा था। उस वजह से असह्य गर्मी के इस मौसम में धूप में ही ट्रेनिंग शुरू करनी पड़ रही थी। लेकिन स्टेडियम मैनेजमेंट इस स्थिति को संज्ञान में लेकर इसका कोई हल ढूंढने की स्थिति में नहीं था। यह मुद्दा तब बना जब मीडिया में ये बातें आईं और केंद्र तथा राज्य सरकार का ध्यान इस ओर गया। अगर अखबार में यह खबर नहीं छपती तो शायद ऐसा ही चलता रहता। किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। लगे भी कैसे। यह अपने आप में इकलौती कोई अनूठी घटना तो थी नहीं। कुछ ही दिन पहले खबर आई थी कि एक आईएएस ऑफिसर और उनकी पत्नी को एक एयरलाइंस ने अमेरिका की निजी यात्रा के लिए सस्ती दर पर टिकट मुहैया कराए और उन्हें फर्स्ट क्लास का अपग्रेडेशन भी दिया। आखिर मार्केट रेट से सस्ती दर पर टिकट उन्हें किस आधार पर दिया गया होगा सिवाय इसके कि आईएएस ऑफिसर होने के नाते वह एयरलाइंस या उसके संबंधित अधिकारियों को कई तरह के फायदे या नुकसान पहुंचा सकते हैं।

असल में अपने देश में जड़ जमाए बैठी औपनिवेशिक और सामंती मानसिकता का ही यह परिणाम है कि अत्यंत दुर्लभ अपवादों को छोड़ दें तो न नेता और मंत्री खुद को लोगों का सेवक मान पाते हैं और न ऑफिसर ही उनके सामने रीढ़ सीधी रखते हुए कानून और संविधान के मुताबिक फैसले कर उन पर कायम रह पाते हैं। नतीजा यह कि ये दोनों तबके अपने पद और प्रभाव की सार्थकता यह साबित करने में मानने लगते हैं कि कैसे वे आम लोगों से ऊपर और उनसे ज्यादा ताकतवर हैं। बहरहाल, जिस तरह की त्वरित कार्रवाई त्यागराज स्टेडियम वाले मामले में हुई, उसे आदर्श मान अन्य मामलों में भी लागू किया जाए तो भविष्य में बेहतर स्थिति की उम्मीद जरूर की जा सकती है।


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