सबक का समय

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के समापन की आशा बलवती हो गई है

Update: 2021-11-20 13:21 GMT

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के समापन की आशा बलवती हो गई है। प्रधानमंत्री के ये शब्द खास मायने रखते हैं कि 'मैं देश की जनता से सच्चे और नेक दिल से माफी मांगता हूं। हम किसानों को नहीं समझा पाए। हमारे प्रयासों में कुछ कमी रही होगी कि हम कुछ किसानों को मना नहीं पाए।' यह एक निर्णायक घोषणा है, जिसके प्रभाव-दुष्प्रभाव आने वाले समय की राजनीति पर साफ तौर पर दिखाई पड़ सकते हैं। भारत में एकाधिक कानूनों को वापस लेने के लिए चला यह सबसे लंबा सक्रिय आंदोलन है, जिसे आने वाले दशकों तक भुलाया नहीं जा सकेगा। जिसकी चर्चा खेत से लेकर संसद तक चलती रहेगी। कौन सही-कौन गलत का फैसला हर कोई अपनी-अपनी दृष्टि से करेगा। तमाम तरह की वैचारिक विविधता से भरे इस देश में शायद हमने नए तरह से लंबे जमीनी आंदोलन चलाने का तरीका सीख लिया है। इस आंदोलन को भले ही कुछ राज्यों में ज्यादा समर्थन मिल रहा है, लेकिन इसका असर तमाम राज्यों पर पड़ेगा।

हमारे लोकतंत्र के लिए यह किसान आंदोलन शायद किसी उपलब्धि से कम नहीं है। सियासत ने भी बहुत कुछ सीखा है, आगे के लिए ढेर सारी संभावनाएं भी हैं और आशंकाएं भी। पहला सबक तो यही है कि आने वाले समय में किसी भी सरकार को किसानों से संबंधित कोई भी कानून बनाने से पहले बहुत सोच-विचार करना पड़ेगा। दूसरा सबक किसानों और देश के दूसरे वर्गों के लिए यह है कि किसी आंदोलन को अगर मजबूती से चलाया जाए, तो मनवांछित फल पाया जा सकता है। तीसरा सबक, लोकतंत्र में सरकारों को उदारता का दामन थामे रखना चाहिए। उदारता कम होते ही आंदोलनों को बल मिलेगा। चौथा सबक, चुनाव ही देश की दिशा तय करते हैं, अत: कोई फैसला लेते समय सरकारों को व्यापक जनहित के बारे में भी जरूर सोच लेना चाहिए। पांचवां सबक, देश में अभी भी किसानों का वर्चस्व है। बाजार अभी उतना मजबूत नहीं हुआ कि किसानों की नाराजगी का जोखिम उठा सके।
पर सवाल अब भी बरकरार हैं, किसान नेताओं में अविश्वास अब भी कायम है, अत: आंदोलन को सड़क से लौटने में समय लग सकता है। मुमकिन है, किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानून लाने पर अड़ जाएं। खैर, किसान संगठनों को अपनी नई मजबूती का व्यापक और तार्किक लाभ उठाने के बारे में सोचना चाहिए। बाजारों और मंडियों में किसानों का शोषण करने वाले ज्यादातर दलाल या व्यापारी किसान या ग्रामीण परिवारों से ही आते हैं। कौन लोग हैं, जो किसानों को वाजिब मूल्य नहीं दे रहे हैं? कौन लोग हैं, जो किसानों से दस रुपये किलो टमाटर खरीदकर पचास रुपये से ज्यादा कीमत पर बेचते हैं? क्या किसान संगठन किसानों के ऐसे शोषकों के खिलाफ आंदोलन नहीं चला सकते? क्या किसान संगठन मंडियों में होने वाले भ्रष्टाचार का अंत नहीं कर सकते हैं? सरकार ज्यादातर छोटे किसानों के प्रति चिंता जता रही है, तो वह गलत नहीं है। कृषि सुविधाओं, न्यूनतम समर्थन मूल्य या सब्सिडी का लाभ केवल चंद संपन्न किसानों तक क्यों सीमित रहना चाहिए? जिन संगठनों ने तीन कृषि कानूनों को रोक लिया है, उन्हें स्वयं आगे आकर ऐसा कृषि विकास सुनिश्चित करना चाहिए, जिसका लाभ गरीब भूमिहीन खेतिहर मजदूरों तक पहुंच सके।

हिन्दुस्तान

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