मुफ्ती रुबिया सैयदा केस की परतें

बात बहुत पुरानी है। गिलगित के अमानुल्ला खान ने इंग्लैंड में मुहाज-ए-रायशुमारी अर्थात प्लैबिसाइट फ्रंट की स्थापना की थी। जाहिरा तौर पर यह फं्रट पूरे जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग करता था। इसका कहना था कि जम्मू-कश्मीर स्वतंत्र देश है। लेकिन परोक्ष तौर पर इसको पाकिस्तान सरकार और इंग्लैंड सरकार की सहायता उपलब्ध थी। यह अपने उद्देश्य के लिए आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता था

Update: 2022-07-14 19:05 GMT

बात बहुत पुरानी है। गिलगित के अमानुल्ला खान ने इंग्लैंड में मुहाज-ए-रायशुमारी अर्थात प्लैबिसाइट फ्रंट की स्थापना की थी। जाहिरा तौर पर यह फं्रट पूरे जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग करता था। इसका कहना था कि जम्मू-कश्मीर स्वतंत्र देश है। लेकिन परोक्ष तौर पर इसको पाकिस्तान सरकार और इंग्लैंड सरकार की सहायता उपलब्ध थी। यह अपने उद्देश्य के लिए आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता था। इंग्लैंड में फ्रंट ने अनेक शहरों में अपनी शाखाएं स्थापित कर ली थीं। 1977 में इंग्लैंड में ही फ्रंट ने अपना नाम बदल कर जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) कर लिया। भारत के मक़बूल भट्ट को भी जेकेएलएफ का सह निर्माता माना जाता है। मक़बूल भट्ट कुपवाड़ा का रहने वाला था। उसने पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों का प्रशिक्षण हासिल किया था। भारत में वह एक बैंक डकैती में पकड़ा गया और जेल में डाल दिया था। उसको छुड़वाने के लिए जेकेएलएफ ने लंदन में भारतीय दूतावास के अधिकारी रवींद्र म्हात्रे का अपहरण कर लिया और उनकी रिहाई के लिए मक़बूल भट्ट की रिहाई की मांग की। लेकिन बातचीत के दौरान ही म्हात्रे की हत्या कर दी गई। उसके कुछ दिन बाद ही मक़बूल भट्ट को फांसी की सजा दी गई और उसे फांसी पर लटका दिया गया। तब फ्रंट ने जम्मू-कश्मीर में भी अपनी गतिविधियां तेज करने का निर्णय किया। यासिन मलिक और उसके तीन साथी हामिद शेख, अशफाक वानी व जावेद अहमद मीर इसमें सक्रिय हुए। उन्होंने इस काम के लिए बाक़ायदा पाकिस्तान में जाकर आतंकी गतिविधियों व हथियार चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। तब से जेकेएलएफ जम्मू-कश्मीर में और पाकिस्तान द्वारा कब्जा किए गए तथाकथित आज़ाद कश्मीर में सक्रिय है और अनेक प्रकार की आतंकी गतिविधियों में संलग्न है। जाहिरा तौर पर जेकेएलएफ पूरी जम्मू-कश्मीर रियासत को आज़ाद देश के तौर पर स्थापित करने का पक्षधर है। भारत में इसका नेता मोटे तौर पर यासिन मलिक है। वैसे कहा यह भी जाता है कि जेकेएलएफ के शुरुआती दौर में उसकी मीटिंगों में फारूक अब्दुल्ला ने भी शिरकत की थी जो उन दिनों इंग्लैंड में ही रहते थे। सरकार पर दबाव बनाने के लिए जेकेएलएफ ने दिसंबर 1989 में श्रीनगर से मेडिकल कालेज की एक छात्रा मुफ़्ती रुबिया सैयदा का अपहरण कर लिया था। यह छात्रा मुफ़्ती मोहम्मद सैयद की बेटी थी जो उन दिनों भारत सरकार के गृहमंत्री थे। जेकेएलएफ ने मांग की कि रुबिया की रिहाई के बदले उसके पांच दुर्दान्त आतंकवादी श्रीनगर की जेल से छोड़े जाएं।

पांच दिन के बाद सरकार ने जेकेएलएफ के पांचों आतंकी शेख अहमद हमीद, मक़बूल भट्ट का भाई गुलाम नबी भट्ट, नूर मोहम्मद कलवाल, मोहम्मद अलताफ़ और मुश्ताक़ अहमद जरगर छोड़ दिए और फ्रंट ने रुबिया सैयदा को भी सही सलामत रिहा कर दिया। उसे श्रीनगर में ही छिपा कर रखा गया था। रिहाई के बाद किसी ने रुबिया सैयदा से तो एक बार भी पूछताछ नहीं की कि किसने उसका अपहरण किया था, उसे कहां रखा गया, इत्यादि। यह शायद अपने कि़स्म का पहला केस था कि अपहर्ता से कोई पूछताछ ही नहीं की गई। अलबत्ता रुबिया की रिहाई के लिए आतंकवादियों से बातचीत करने में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने भी मुख्य भूमिका निभाई थी। इतना जरूर कि पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ रिकार्ड के लिए एक प्राथमिकी अवश्य दर्ज कर ली थी। उस समय दो बातें बहुत चर्चा में थीं। क्या रुबिया का अपहरण असली था या फिर आतंकियों को रिहा करवाने के लिए मिलजुल कर किया गया षड्यंत्र था? दूसरा इस मामले में यासिन मलिक का नाम श्रीनगर में चर्चा में था। लेकिन सरकार ने प्राथमिकी दर्ज करने के बाद इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। उसके बाद मुफ़्ती मोहम्मद सैयद ने पीडीपी के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली और कांग्रेस की सहायता से जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गए। यासिन मलिक सुरक्षा बलों से एक मुठभेड़ में पकड़े गए और बंदी बना लिए गए। 1994 में मलिक को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया। मलिक पर हत्या, आतंकी गतिविधियों के लिए हवाला का ग़ैर क़ानूनी धंधा इत्यादि अनेक आरोप थे, लेकिन सरकार ने उन्हें राज्य में शांति स्थापित करने के लिए मसीहा बताना शुरू कर दिया। अलबत्ता यासिन मलिक ने यह घोषणा अवश्य कर दी कि आगे से उनका फ्रंट जम्मू-कश्मीर की आज़ादी प्राप्त करने के लिए हथियारों का प्रयोग नहीं करेगा, बल्कि शांतिपूर्ण साधनों से रियासत को भारत से आज़ाद करवाएगा। इससे पूर्व उसने और उसके फ्रंट ने जो हत्याएं की थीं, उसके बारे में उसका कहना था कि आज़ादी की लड़ाई में शत्रु पक्ष के लोग मारे ही जाते है। इन हत्याओं में 1990 में भारतीय वायु सेना के चार जवानों क़ी शहादत भी शामिल थी। यक़ीनन भारत उसके लिए शत्रु पक्ष था। मलिक खुलेआम जम्मू-कश्मीर में आज़ादी का आंदोलन चला रहा था। 2019 में सरकार ने मलिक के खिलाफ दर्ज केसों को उनकी तार्किक परिणति तक ले जाने का निर्णय किया। ज़मानत रद्द करके मलिक को पुनः गिरफ्तार किया गया। उस मुक़द्दमे में मलिक को न्यायालय ने उम्र कैद की सजा सुनाई। अब मलिक तिहाड़ जेल में बंद है और उसकी पाकिस्तान मूल की पत्नी संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाओं से अपील कर रही है कि उसका पति मातृभूमि की आज़ादी के लिए लड़ रहा है। उसको इसी कारण से जेल में रखा गया है।
भारत पर युद्ध अपराधी का केस चलाया जाना चाहिए। इधर भारत सरकार ने रुबिया सैयदा अपहरण मामले की तह तक जाने का निर्णय करते हुए उस केस की तह तक जाने का निर्णय कर लिया लगता है। इस मामले में यासिन मलिक के अलावा नौ अन्य अभियुक्तों अली मोहम्मद मीर, मोहम्मद जमीन मीर, इक़बाल अहमद गांदरू, जावेद अहमद मीर, मोहम्मद रफीक पाहलू, मंज़ूर अहमद सोफी, वजाहत बशीर, महराजुद्दीन शेख और शौक़त अहमद बख्शी के नाम हैं। दस-बारह लोग और भी हैं जो अभी तक पकड़े नहीं गए हैं। पकड़े गए कुछ लोगों ने क़बूल किया है कि रुबिया अपहरण मामले में यासिन मलिक का ही हाथ था। मलिक, जो अब तिहाड़ जेल में उम्र कैद की सजा भुगत रहा है, की मांग है कि उसके खिलाफ जो गवाह गवाही दे रहे हैं, उनसे प्रत्यक्ष जिरह करने का अवसर उसे दिया जाना चाहिए। उसने यह भी कहा है कि यदि ऐसा नहीं किया गया दो वह भूख हड़ताल पर बैठ जाएगा। मुझे लगता है, उसे यह मौक़ा दिया ही जाना चाहिए। इससे इस केस की कई परतें खुलेंगी और कई चेहरे नंगे होंगे। बेहतर हो कि इस मामले में उस समय के मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को भी सहायता के लिए शामिल किया जाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट के वह न्यायाधीश जिसने मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी, यदि चाहें तो वे भी इस मामले में काफी प्रकाश डाल सकेंगे। वैसे बहुत कुछ तो रुबिया सैयदा और उसकी बहन महबूबा सैयदा, जो बाद में राज्य की मुख्यमंत्री भी रहीं, इस मामले की भूलभुलैयों को जानती ही होगी। इन सभी के सहयोग से ही सच सामने आ सकता है। सच सामने लाने का यह अवसर यासिन मलिक को तो मिलना ही चाहिए।
कुलदीप चंद अग्निहोत्री
वरिष्ठ स्तंभकार
ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com

सोर्स- divyahimachal 

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