नींद की कमी से स्टेम सेल रिपेयर होने में आती है रुकावट, जिससे अंधा होने का खतरा
स्टेम सेल रिपोर्ट्स (Stem Cell Reports) में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक नींद की कमी टियर फिल्म (Tear Film) में रेडॉक्स होमियोस्टेसिस के डिस्ट्रप्शन के जरिए कॉर्नियल एपिथेलियल प्रोजेनिटर सेल के ओवर-एक्सपेंशन को इंड्यूस (प्रेरित) करती है
शालिनी सक्सेना |
स्टेम सेल रिपोर्ट्स (Stem Cell Reports) में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक नींद की कमी टियर फिल्म (Tear Film) में रेडॉक्स होमियोस्टेसिस के डिस्ट्रप्शन के जरिए कॉर्नियल एपिथेलियल प्रोजेनिटर सेल के ओवर-एक्सपेंशन को इंड्यूस (प्रेरित) करती है. शोधकर्ताओं ने कहा कि नींद की कमी (Sleep Deficiency) एक कॉमन हेल्थ प्रॉब्लम है जो आंखों की परेशानी का सबब बनती है और इसकी सतह को खासा प्रभावित भी करती है.
नींद एक मूलभूत आवश्यकता है. मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए एक अच्छी नींद बहुत जरूरी है. हालांकि सामाजिक दबाव और प्रकाश प्रदूषण के चलते नींद की कमी एक कॉमन पब्लिक हेल्थ प्रॉब्लम बन गई है जो दुनिया भर में लगभग 10 से 20 प्रतिशत लोगों को प्रभावित करती है खासकर बच्चों और युवा वयस्कों को.
अनिद्रा से जूझ रहा जापान के बाद हिंदुस्तान
वास्तव में 2019 फिटबिट सर्वे के मुताबिक जापान के बाद भारत दूसरा सबसे अधिक नींद की कमी की समस्या से जूझने वाला देश है. जहां नींद का औसत 7 घंटे और 1 मिनट है.
डॉ. श्रॉफ के चैरिटी आई हॉस्पिटल के निदेशक डॉ वीरेंद्र एस सांगवान ने News9 को बताया कि नींद की कमी के कारण जो समस्याएं सामने आती हैं उनमें से एक है ड्राई आई (dry eyes); यह आंखों के हाइजीन को भी प्रभावित करती है सांगवान ने कहा, "ऐसी स्थिति में आंखें लाल दिखती हैं, और रफ महसूस होती हैं. अगर यह स्थिति बनी रहती है तो ड्राई आई होना सामान्य है. किरकिरी आंखें ड्राई आई का एक लक्षण हैं."
कॉर्निया के साथ-साथ आंखों का हर हिस्सा प्रभावित
डॉ सांगवान ने कहा कि आंखों की इन समस्याओं और नींद की कमी के बीच गहरा संबंध है. "मानव शरीर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह यह जानता है कि सोने का समय कब है. यही वह समय है जब बॉडी खुद को रिपेयर करती है – मस्तिष्क शरीर के विभिन्न अंगों को रिपेयर करने पर फोकस करता है. यही वह समय होता है जब कुछ टिशू (ऊतकों) खुद को रीजनरेट करने लगते है. अगर कोई जाग रहा है तो इसका मतलब है कि शरीर को खुद को रिपेयर करने का वक्त नहीं मिल रहा है. इसकी वजह से कॉर्निया के साथ-साथ आंखों का हर हिस्सा प्रभावित होता है."
उन्होंने कहा कि जैसे बाल और नाखून बढ़ते हैं वैसे ही कॉर्निया की सतह पर पारदर्शी स्टेम सेल होते हैं जो आंखों की रक्षा करते हैं और अच्छी नजर प्रदान करते हैं. हर चार से छह सप्ताह में ये सेल मर जाते हैं और उनकी जगह नए सेल ले लेते हैं. यह एक डायनेमिक प्रोसेस है. यदि ये सेल (कोशिकाएं) नहीं होंगे तो कॉर्निया ठीक से काम नहीं करेगा और यह संक्रमित भी हो सकता है.
डॉ सांगवान ने कहा, "अगर किसी व्यक्ति की नींद पूरी नहीं होती तो यह उसकी नॉर्मल फिजियोलॉजी को प्रभावित करेगा. यह किसी व्यक्ति के चेहरे पर प्लास्टिक की थैली डालने जैसा है जिसकी वजह से उसकी ऑक्सीजन सप्लाई में कटौती होगी और फिर उससे ताजी हवा को सांस लेने की उम्मीद की जाए. ऐसी स्थिति में सांस लेने पर उसके शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड ही जाएगी. डॉक्टर जब कॉन्टेक्ट लेंस को सोने से पहले हटाने के लिए कहते हैं तो इसके पीछे एक कारण है. आंखों को भी सांस लेने की जरूरत होती है."
कॉर्निया में दिक्कत होने का पहला संकेत
सभी फंक्शनल ऑर्गन (कार्यात्मक अंगों) में एक रिजर्व होता है जो कमी में भी काम कर सकता है. लेकिन इस रिजर्व की एक लिमिट होती है जो हर व्यक्ति की अलग-अलग होती है. सांगवान ने कहा, "प्रत्येक व्यक्ति का रिजर्व उसकी ओवरऑल हेल्थ, इम्यूनिटी और उसकी अन्य बीमारियों पर निर्भर करता है और इस पर भी कि वह व्यक्ति एक दिन में कितनी नींद लेता है."
उन्होंने कहा कि एक सामान्य कॉर्निया में रक्त वाहिकाएं (blood vessels) नहीं होती हैं. कॉर्निया में दिक्कत होने का पहला संकेत रक्त वाहिकाओं की उपस्थिति है – आंखें लाल हो जाती हैं. डॉ सांगवान ने कहा, "जैसे ही रक्त वाहिकाएं दिखाई देने लगती हैं दृष्टि धुंधली होने लगती है, रिपेयर मैकेनिज्म खराब हो जाता है और कॉर्निया पर खरोंच आ सकती है. कॉर्निया में कोई भी घर्षण व्यक्ति को तुरंत पता चल जाएगा – लाल आंखे, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता, आंखों में पानी आना और पलक झपकने में कठिनाई होना ऐसे में आम है. अगर इसका इलाज नहीं किया जाता है तो व्यक्ति अंधा भी हो सकता है."
जबकि कुछ रिपोर्टों और स्टडी में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को एक निश्चित मात्रा में नींद की आवश्यकता होती है – सात से आठ घंटे की नींद और नींद का एक रूटीन होना चाहिए. हर शरीर की जरूरत अलग होती है. "डॉ सांगवान ने कहा, "कुछ लोगों को पांच से छह घंटे नींद की जरूरत होती है तो कुछ को सात से आठ घंटे की जरूरत होती है. यह एक व्यक्ति की नींद की क्वालिटी पर निर्भर करता है. इसे आमतौर पर REM स्लीप के रूप में जाना जाता है. नींद के मामले में इसकी मात्रा (quantity) नहीं बल्कि इसकी गुणवत्ता (quality) मायने रखती है.