यह जानकारी देने वाले सूत्रों का कहना है कि जिस तरह कांग्रेस प्रवक्ता टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर खुलकर वरुण गांधी की सराहना कर रहे हैं, वह इस बात का बड़ा संकेत है कि पार्टी नेतृत्व को अब तीसरे गांधी से वैसा परहेज नहीं है जैसा पहले था। कांग्रेस नेतृत्व के करीबी माने जाने वाले कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने एक टीवी चैनल पर भाजपा प्रवक्ता को चुनौती देते हुए कहा कि वरुण गांधी के पास जमीर है इसलिए वह किसानों के हक की बात कर रहे हैं, जबकि दूसरे भाजपा नेताओं के पास जमीर नहीं है। इसी तरह एक अन्य प्रवक्ता ने ट्वीटर पर लगातार वरुण गांधी की तारीफ की और लिखा कि मोदी और शाह को कोई भी गांधी बर्दाश्त नहीं है, भले ही वह उनकी ही पार्टी में क्यों न हो। प्रियंका गांधी के सलाहकार आचार्य प्रमोद कृष्णम तो लगातार वरुण की तारीफ सोशल मीडिया में कर रहे हैं। उन्होंने वरुण के पहले ट्वीट पर ही लिखा कि कोई गांधी ही ऐसा कर सकता है। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने किसानों को लेकर किए गए वरुण के हर ट्वीट और बयान को सराहा और उसका स्वागत किया है। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने फोन करके भी वरुण को उनके इन तेवरों के लिए बधाई दी है।
जहां पंजाब उत्तर प्रदेश की घटनाओं और राजस्थान छत्तीसगढ़ में पार्टी के असंतोष को थामने से कांग्रेस में पार्टी के नए नेतृत्व राहुल प्रियंका का दबदबा बढ़ा है, तो किसानों के पक्ष में वरुण के खुलकर उतरने से परिवार के इस तीसरे गांधी की लोकप्रियता में भी इजाफा हो रहा है। सियासी हलकों में यह सवाल आम है कि क्या ये तीनों गांधी आने वाले दिनों में एक साथ दिखाई देंगे और अगर ऐसा हुआ तो प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की शक्ति से संपन्न जेपी नड्डा के नेतृत्व वाली भाजपा को एक बार फिर इंदिरा गांधी की विरासत से सियासी जंग में जूझना पड़ेगा। हालांकि अभी कुछ भी निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी, लेकिन सियासी अखाड़े के कुछ महारथियों ने गांधी परिवार को एकजुट करने की कोशिशें शुरू भी कर दी हैं।
राजीव गांधी के जमाने से परिवार के करीबी सूत्रों के मुताबिक कोई और नहीं बल्कि खुद प्रियंका गांधी भी चाहती हैं कि छोटे भाई वरुण की घर वापसी हो और वह कांग्रेस में आकर न सिर्फ परिवार औऱ पार्टी को ताकत दें, बल्कि भाजपा और मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की धार को भी मजबूत करें। पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस के भीतर और बाहर का घटनाक्रम इस बात का संकेत है कि पार्टी के भीतर जबरदस्त मंथन और उतार चढ़ाव का दौर चल रहा है। जिस तरह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने आगे बढ़कर पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अजेयता को तोड़कर दलित चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर और नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष पद से अपने इस्तीफे को वापस लेने के लिए राजी करके साफ जता दिया कि नतीजे कुछ भी हों, लेकिन पार्टी हाईकमान अब छत्रपों की धमकियों और दबावों के आगे नहीं झुकेगा।
कुछ इसी तरह राजस्थान में सचिन पायलट को धैर्य रखने के लिए मनाकर और छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री फार्मूले की रट लगाए टीएस सिंह देव खेमे को चुप कराकर भूपेश बघेल के हाथों में उत्तर प्रदेश के चुनावों की कमान सौंपकर भी यह जता दिया कि पार्टी अपने हिसाब से चलेगी और उसे मानना होगा। इसके बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी के आक्रामक तेवरों ने बगावती तेवरों वाले जी-23 समूह के नेताओं को भी जता दिया कि वह नेतृत्व की कार्यशैली पर मीडिया में सवाल उठाना बंद करें। अशोक गहलोत ने राहुल गांधी को फिर से पार्टी की कमान संभालने के सुझाव का पूरी कार्यसमिति ने एक स्वर से समर्थन करके जी-23 के राहुल विरोध की भी हवा निकाल दी। क्योंकि बैठक में इस समूह के दोनों अगुआ नेता गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा भी इस सुझाव के समर्थन पर मुहर लगाने वालों में शामिल थे। इस सुझाव पर विचार करने की बात कह कर राहुल गांधी ने भी साफ कर दिया कि अब उन्हें पार्टी अध्यक्ष संभालने में कोई हिचक नहीं है और उन्होंने अपने पुराने रुख कि पार्टी अध्यक्ष कोई गैर गांधी बने, को भी नरम कर लिया है। पार्टी ने अपने संगठन चुनावों का पूरा कार्यक्रम घोषित कर दिया है, जिसके मुताबिक सितंबर 2022 तक कांग्रेस को नया अध्यक्ष जो कि राहुल गांधी ही होंगे, मिल जाएगा।
उधर तीसरे गांधी वरुण के तेवर केंद्र और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को लेकर लगातार सख्त हो रहे हैं। वरुण ने इसकी शुरुआत किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए तब की थी, जब उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गन्ने का समर्थन मूल्य चार सौ रुपये करने की मांग करते हुए पत्र लिखा था। इसके बाद जब उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने के मूल्य में 25 रुपये की बढोत्तरी की तो वरुण गांधी ने इसके लिए योगी सरकार को धन्यवाद देते हुए पचास रुपये प्रति कुंतल का बोनस गन्ना किसानों को देने का अनुरोध करते हुए दूसरा पत्र लिख दिया। फिर लखीमपुर खीरी कांड में सबसे पहले जीप से कुचलने वाला वीडियो भी वरुण गांधी ने ही ट्वीट किया। जिससे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा के बचाव की सारी दलीलें धरी रह गईं। इसके बाद वरुण ने अपने अगले ट्वीटास्त्र से लखीमपुर खीरी कांड को लेकर उसे सांप्रदायिक रंग देने वालों पर हमला किया। इसके कुछ ही दिनों बाद उन्होंने किसान आंदोलन के समर्थन में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के एक पुराने भाषण के अंश की वीडियो क्लिप को साझा करते हुए ट्वीट किया कि एक बड़े दिल वाले नेता का बड़ा बयान।
जाहिर है वरुण गांधी के ये सारे कदम भाजपा और मोदी सरकार को असहज करने वाले हैं। इसका नतीजा वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति से बाहर करने के रूप में सामने आया। जाहिर है इससे भाजपा नेतृत्व और इंदिरा गांधी की छोटी बहू और छोटे पोते के बीच की दूरी और बढ़ गई। लेकिन वरुण रुक नहीं रहे हैं। उन्होंने पहले लखीमपुर खीरी में मंडियों के चक्कर लगा लगा कर आजिज आ चुके एक धान किसान द्वारा अपने धान में आग लगा देने का वीडियो अपने ट्विटर हैंडल से वायरल करके कृषि नीतियों पर सवाल उठाया। उसके बाद उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र पीलीभीत में किसानों के साथ मंडियों में होने वाली धांधली के खिलाफ अफसरों को चेतावनी देते हुए सरकारी तंत्र को कठघरे में खड़ा करने वाला वीडियो भी सोशल मीडिया में प्रसारित कर दिया।
वरुण गांधी के इन बदले हुए तेवरों ने जहां भाजपा नेतृत्व को असहज किया है, क्योंकि अभी तक उसे वरुण के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का कोई सीधा कारण नहीं मिल सका है, जबकि वरुण अपनी बात कहने और भाजपा नेतृत्व को कटघरे में खड़ा करनें में कामयाब हो रहे हैं। वहीं भाजपा के बाहर कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों में वरुण के प्रति आकर्षण और सद्भाव बढ़ रहा है। बताया जाता है कि जहां कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने टीवी चैनलों पर वरुण गांधी की तारीफ करते हुए उनके जमीर की तारीफ की और इसे लेकर भाजपा प्रवक्ताओं पर तीखा हमला बोला, वहीं उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव चिराग पासवान समेत कई विपक्षी नेताओं ने उनका हौसला बढ़ाया है। खबर तो ये भी है कि भाजपा के भी कुछ नेताओं ने वरुण को उनके साहस के लिए दाद दी है। भाजपा के एक सहयोगी दल के नेता ने भी वरुण से बात करके उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की है।
वरुण के इन तेवरों ने एक बार फिर उन लोगों को सक्रिय कर दिया है, जो वर्षों से इंदिरा गांधी परिवार की इन बिखरी कड़ियों को मिलाने की कोशिश में जुटे हैं। 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले भी यह कोशिश हुई थी जब वरुण गांधी और प्रियंका गांधी के बीच लगातार संवाद हुआ था, लेकिन यह कोशिश सिरे नही चढ़ी थी। फिर 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले वरुण गांधी की कांग्रेस में वापसी के लिए नेहरू-गांधी परिवार के कुछ पुराने वफादारों ने जोर लगाया। इस मुद्दे पर राहुल गांधी और सोनिया गांधी तक बात पहुंचाई गई। तब सवाल उठा कि अगर वरुण गांधी कांग्रेस में आते हैं तो क्या मेनका गांधी भाजपा में ही रहेंगी या वो भी कांग्रेस में आएंगी और अगर कांग्रेस में आएंगी तो उनकी स्थिति क्या होगी या फिर वह राजनीति से सन्यास ले लेंगी। लेकिन इन सवालों का कोई समाधान नहीं हो सका और यह अध्याय बंद कर दिया गया। फिर प्रियंका की राजनीति में लांचिंग के बाद यह बात और दब गई और वरुण भाजपा के टिकट पर अपनी मां मेनका गांधी के चुनाव क्षेत्र पीलीभीत से लोकसभा चुनाव लड़े और जीते।
अब जब वरुण गांधी ने अपनी राह अलग करने का लगभग मन बना ही लिया है, तब एक बार फिर उन्हें कांग्रेस में लाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक इस बार यह कमान किसी और ने नहीं बल्कि खुद प्रियंका गांधी ने संभाली है। वह चाहती हैं कि वरुण कांग्रेस में आएं और परिवार व पार्टी दोनों को मजबूत करें। प्रियंका जिनके कंधों पर उत्तर प्रदेश की बड़ी जिम्मेदारी है, वह इसे विधानसभा चुनाव से पहले करना चाहती हैं, ताकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस भाजपा को कड़ी चुनौती देकर सपा के मुकाबले खुद को एक विकल्प के रूप में पेश कर सके। प्रियंका को लगता है कि वरुण के साथ आने से यह मुमकिन है। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती इसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को राजी करने की है।
सूत्रों के मुताबिक राहुल अभी इस मामले में पचास-पचास फीसदी सहमत असहमत हैं जबकि सोनिया गांधी ने अभी तक अपना कोई रुख जाहिर नहीं किया है। जहां तक वरुण गांधी का सवाल है तो उन्होंने प्रकट रूप से अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वह भाजपा छोड़ रहे हैं। लेकिन उनके बयानों को देखते हुए उनका लंबे समय तक भाजपा में बने रहना मुश्किल है। वरुण गांधी ने अभी तक इस मामले में कोई राय नहीं जाहिर की है। लेकिन उनके एक करीबी सूत्र के मुताबिक पिछली बार के अनुभव को देखते हुए वरुण गांधी इस बार कांग्रेस को लेकर कोई उतावलापन नहीं दिखाएंगे। अगर कोई ठोस पहल कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से होती है तब वह उस पर विचार करेंगे। वहीं वरुण को कांग्रेस में लाकर इंदिरा गांधी परिवार को एकजुट करने के प्रयास में लगे पार्टी और परिवार के एक पुराने वफादार का कहना है कि कोशिश है कि उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले इसे अंजाम दे दिया जाए, लेकिन वरुण गांधी के करीबी सूत्रों के मुताबिक उन्हें अभी इसकी कोई बहुत जल्दी नहीं है।