By: divyahimachal
कर्नाटक में 72 फीसदी से ज्यादा मतदान के साथ जनादेश दर्ज हो चुका है। 13 मई को उसे सार्वजनिक किया जाएगा, लेकिन विभिन्न एग्जिट पोल के जरिए जनादेश का अनुमान लगाया गया है। औसत जनादेश कांग्रेस के पक्ष में लग रहा है। भाजपा की सत्ता जा रही है और जनता दल-एस की ताकत कम होने के संकेत हैं। एग्जिट पोल की पश्चिमी देशों में एक वैज्ञानिक पद्धति और प्रणाली है, लिहाजा उसे विश्वसनीय भी माना जाता रहा है। भारत में एग्जिट पोल गलत भी साबित हुए हैं और कुछ तो बेहद सटीक भी रहे हैं। हमारे यहां मतदान के बाद एग्जिट पोल का फैशन और चलन काफी बढ़ गया है, लेकिन यह अपेक्षाकृत परिपक्व नहीं है। फिर भी हजारों लोगों के बीच सर्वेक्षण कर और उनका मन टटोलने के बाद अनुमान के निष्कर्ष दिए जाते हैं। उनसे संकेत स्पष्ट भी होते हैं। कर्नाटक में चुनाव प्रचार की शुरुआत से ही कांग्रेस बढ़त की स्थिति में थी, लेकिन अब मतदान के बाद लगता है कि कांग्रेस और भाजपा के बीच 5-6 फीसदी वोट का ही अंतर रह सकता है। यह फासला काफी है, क्योंकि इससे सीटों का आंकड़ा बिल्कुल ही बदल जाता है। कांग्रेस को साफ बढ़त है, लेकिन सिर्फ दो एग्जिट पोल ने ही स्पष्ट बहुमत का अनुमान घोषित किया है।
कर्नाटक के अंतिम जनादेश से यह भी स्थापित हो जाएगा कि भारत कांग्रेस-मुक्त देश कभी हो ही नहीं सकता। यदि कांग्रेस कर्नाटक में सरकार बना लेती है, तो उसकी सरकारें चार राज्यों में हो जाएंगी। बहरहाल कांग्रेस ने 40 फीसदी कमीशन, यानी भ्रष्टाचार, के साथ चुनाव प्रचार गरमाया था, लेकिन यह मुद्दा उतना बड़ा और प्रभावी साबित नहीं हो सका कि कांग्रेस को एकतरफा जनादेश मिल पाता। भाजपा ने ‘बजरंग बली’ को धु्रवीकरण का मुद्दा बनाया था, लेकिन सर्वे के दौरान लोगों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। जो अनुमान सामने आए हैं, उनमें मुसलमानों के 70 फीसदी से ज्यादा वोट कांग्रेस के पक्ष में लगते हैं, तो भाजपा के परंपरागत समर्थक लिंगायत समुदाय के करीब 65-68 फीसदी वोट भाजपा को मिलते लगते हैं। वोक्कालिगा वोट में भी, कांग्रेस और भाजपा के बीच, फासला बेहद संकीर्ण है। ओबीसी, दलित, जनजाति आदि के वोटों का फासला भी ज्यादा व्यापक और गहरा नहीं है। गौरतलब अनुमान यह है कि करीब 20 फीसदी वोट सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे और उनकी लोकप्रियता के मद्देनजर ही भाजपा के पक्ष में आए हैं। दरअसल कांग्रेस की ‘मुफ्त गारंटियों’ ने महिलाओं और गरीब युवाओं में उसे ‘पहली पसंद’ बना दिया है। मजदूर, किसान, बेरोजगार, छात्र, गृहिणी आदि अधिकतर तबकों में कांग्रेस भाजपा से आगे रहती लग रही है।
अलबत्ता भाजपा को भी इन तबकों ने अच्छे वोट दिए हैं। भाजपा को उसके परंपरागत, विचारधारा के समर्थक तबकों ने जरूर वोट दिया है। दरअसल कांग्रेस और भाजपा में वोट की जबरदस्त टक्कर साफ दिखती है, लेकिन मुस्लिम वोट का फासला निर्णायक साबित होता लगता है। कर्नाटक विधानसभा में स्पष्ट बहुमत के लिए 113 सीटें चाहिए। कांग्रेस उसके बिल्कुल करीब तक पहुंचती लग रही है, जबकि भाजपा 80-90 सीटों के बीच सिमट सकती है। निवर्तमान विधानसभा में भाजपा को 104 सीटों के साथ और कांग्रेस को 78 सीटों का जनादेश मिला था। अब भाजपा की 119 सीटें थीं। इस बार कर्नाटक के क्षेत्रीय एवं पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा के जनता दल-एस का आंकड़ा भी 37 से काफी कम होता लग रहा है। ये चुनाव इसलिए भी महत्त्वपूर्ण रहे, क्योंकि कर्नाटक में ‘डबल इंजन’ का प्रयोग फ्लॉप दिख रहा है। यह जनादेश कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित होगा।