लेकिन जब डेढ़ साल बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दे दी गई तब कहीं जाकर शिवराज सिंह चौहान की जान में जान आई. हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने से सिर्फ शिवराज सिंह चौहान को ही खतरा नहीं था, बल्कि ग्वालियर और चंबल के क्षेत्र जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया का दबदबा है वहीं से बीजेपी के नरोत्तम मिश्रा और नरेंद्र सिंह तोमर आते हैं. पहले इस क्षेत्र में मुकाबला कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया और बीजेपी के नरोत्तम मिश्रा और नरेंद्र सिंह तोमर के बीच होता था और लड़ाई कांटे की होती थी. हालांकि अब जब ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बीजेपी में आ गए हैं तो पार्टी के अंदर ही इस क्षेत्र में अपना दबदबा कायम करने को लेकर एक नई जंग शुरू होती दिखाई देने लगी है.
पार्टी को फायदा लेकिन नेताओं को नुकसान
जानकार मानते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने से ग्वालियर चंबल क्षेत्र में बीजेपी अब और मजबूत हो जाएगी, क्योंकि वहां नरेंद्र सिंह तोमर और नरोत्तम मिश्रा जैसे बड़े नेता पहले से ही अपनी पकड़ बना रहे थे अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद यह पकड़ और मजबूत हो जाएगी. हालांकि कहीं ना कहीं क्षेत्र में पार्टी के इन बड़े नेताओं के बीच आपसी मतभेद जरूर होते नजर आएंगे. उसका कारण है. दरअसल कोई भी नेता कितने भी बड़े पद पर क्यों ना पहुंच जाए लेकिन वह वहां तभी तक टिका रहता है जब तक उसकी पकड़ उसके क्षेत्र में होती है. नरोत्तम मिश्रा हों, नरेंद्र सिंह तोमर हों या फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया. उन्हें पता है कि अगर उनके क्षेत्र में उनकी पकड़ कमजोर हुई तो ज्यादा दिनों तक वह राज्य और केंद्र की सियासत में टिक नहीं पाएंगे. जमीन एक है और उसके हकदार तीन, इसलिए इस ग्वालियर-चंबल की जमीन पर जिसकी पकड़ सबसे ज्यादा मजबूत होगी वही भविष्य में राजनीति में आगे जाएगा.
नरेंद्र सिंह तोमर बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया
नरेंद्र सिंह तोमर राज्य से ज्यादा केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहते हैं, उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ सबसे खास करीबियों में गिना जाता है. यही वजह है कि जब नरेंद्र मोदी सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार हुआ तो उसमें कई बड़े नेताओं के मंत्रालय चले गए, लेकिन नरेंद्र सिंह तोमर अपने मंत्री पद पर बरकरार रहें. जबकि कृषि कानूनों को लेकर पूरे देश भर में आंदोलन हुए, यहां तक कि दिल्ली में अभी भी आंदोलनकारी जमे हुए हैं. नरेंद्र सिंह तोमर जिस क्षेत्र से राजनीति करते हैं वही राजनीतिक क्षेत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी है और ज्योतिरादित्य सिंधिया जितनी तेजी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ के बड़े नेताओं के करीब आते जा रहे हैं इसे देखकर नरेंद्र सिंह तोमर के मन में भविष्य के लिए डर जरूर बैठ रहा होगा.
ज्योतिरादित्य सिंधिया नरेंद्र सिंह तोमर की जड़ कितनी तेजी से काट रहे हैं, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इसी वर्ष जनवरी में जब नरेंद्र सिंह तोमर के निर्वाचन क्षेत्र मुरैना में 25 लोग जहरीली शराब पीकर मर गए थे तब न केवल ज्योतिरादित्य सिंधिया नरेंद्र सिंह तोमर के निर्वाचन क्षेत्र के दौरे पर गए बल्कि पीड़ितों को पचास-पचास हजार रुपए की मुआवजा राशि भी दी.
जमीनी स्तर से लेकर दिल्ली तक अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया
ज्योतिरादित्य सिंधिया जब से भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं, वह लगातार बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ताओं से लेकर दिल्ली में बीजेपी के बड़े नेताओं और संघ के पदाधिकारियों के बीच अपनी पैठ मजबूत कर रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी ताकत का अंदाजा बीजेपी के कई नेताओं को तभी लगवा दिया था जब उन्होंने मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनाने के बाद उसमें अपने समर्थक विधायकों में से 14 विधायकों को मंत्री बनवा दिया था. ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली में बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं से नजदीकी बढ़ाने के साथ-साथ मध्य प्रदेश में जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में भी अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं.
हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया मालवा के दौरे पर गए थे, वहां उन्होंने नीमच, मंदसौर, रतलाम, धार और उज्जैन जैसे जिलों में बीजेपी के कार्यकर्ताओं के घर-घर जाकर उनसे मुलाकात की और उनका हालचाल जाना. ज्योतिरादित्य सिंधिया का यह कदम उन्हें मध्य प्रदेश में बीजेपी के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के बीच तेजी से लोकप्रिय कर रहा है. जिस तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश में राजनीति कर रहे हैं ,उससे पूरा अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले कुछ वर्षों में मध्य प्रदेश से अगर किसी बड़े चेहरे का नाम देश में सामने आएगा तो वह ज्योतिरादित्य सिंधिया का ही होगा.