उत्तर प्रदेश के 2 जिलों नोएडा (गौतमबुद्धनगर) और गाजियाबाद का ये हाल है कि यहां के डीएम वाआईपी लोगों का भी जवाब भी ट्विटर पर नहीं देते . जबकि ये दोनों अधिकारी अपनी इमानदारी और कर्मठता के लिए मशहूर रहे हैं. शायद यही कारण था कि इन्हें यूपी के शोविंडो कहे जाने वाले जिलों का प्रभार मिला था. अपनी नियुक्ति के बाद काफी दिनों तक एक ट्वीट पर जवाब देने वाले ये दोनों अधिकारी आजकल सोशल मीडिया से दूरी बना लिए हैं.
वीआईपी लोगों का भी जवाब नहीं देते अफसर
2 से 3 दिन पहले की बात है जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला एक ट्वीट करते हैं और नोएडा (गौतमबु्द्धनगर) के डीएम को टैग करते हैं. उमर अब्दुल्ला अपने किसी परिचित कोरोना पेशेंट के लिए किसी हॉस्पिटल में बेड चाहते थे. फिलहाल उन्हें वीआईपी होने का लाभ मिला कि उनका जवाब जिले के सूचना विभाग ने दिया. पर डीएम की ओर से उन्हें भी कोई जवाब नहीं मिला. देश के पूर्व थलसेनाध्यक्ष और केंद्र में मंत्री वीके सिंह जो गाजियाबाद संसदीय क्षेत्र से सांसद भी हैं अभी हाल ही में उनके भी एक ट्वीट का जवाब गाजियाबाद के डीएम ने देना उचित नहीं समझा था. यही हाल यहां के अन्य अधिकारियों के भी हैं. नोएडा के वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं स्थानीय विधायक पंकज सिंह लगातार जनता की समस्याओं को जिले के डीएम ट्विटर हैंडल पर टैग करते हैं पर चाहे डीएम हो या सीएमओ, या नोएडा में कोरोना से निपटने के लिए नियुक्त किए गए नोडल अफसर कोई भी ट्विटर पर जवाब नही देता है. शर्मा कहते हैं कि पीएम और सीएम से आप जवाब मिलने की उम्मीद कर सकते हैं पर अधिकारियों से आजकल उम्मीद करना मतलब अपना समय जाया करना है.
सीएम ने कहा टेस्ट बढ़ाएं, अधिकारियों ने घटा दिए
राज्य में कोरोना टेस्ट की स्थिति बहुत ही खराब है. प्रदेश के एक मंत्री ब्रजेश पाठक को तो बकायदा इसके लिए चिट्ठी तक लिखनी पड़ी. उन्होंने अपने पत्र मे बताया था कि कैसे प्राइवेट अस्पतालों में टेस्ट बंद कर दिए गए हैं और सरकारी अस्पतालों को डिमांड के हिसाब टेस्ट किट नहीं मिल रही है. अधिकारी उनकी नहीं सुन रहे थे इसलिए मजबूर हो कर उनको चिट्ठी लिखनी पड़ी थी. पर करीब 2 हफ्ते बीत जाने के बाद भी कोरोना टेस्ट कराना आसान काम नहीं है. यानि कि अधिकारियों ने उनके पत्र को भी ठंढे बस्ते में डाल दिया. उत्तर प्रदेश मे टेस्टिंग का खेल कैसे चल रहा है इसे लखनऊ के एक पत्रकार प्रेमशंकर मिश्र ने अपने फेसबुक वॉल पर बहुत बढ़िया तरह से समझाया है.
-उनका कहना है कि सरकार चाहती है कि टेस्ट बढ़ाकर 2.5 लाख से अधिक कर दिया जाए पर अब टेस्ट की संख्या घटकर 1.90 लाख रोजाना पर आ गई है, यानि अधिकारियों ने अपना काम नहीं किया. मर्ज हर रोज बढ़ रहा, लेकिन टेस्टिंग घटती जा रही है.
– नई डिस्चार्ज पॉलिसी क्या सोचकर अफसरों ने बनाई है यह समझ में नहीं आ रहा है. अगर मरीज में 7 दिन तक कोई दृश्यगत लक्षण नहीं दिख रहे हैं तो उसे बिना टेस्ट किए ही डिस्चार्ज किए जाने के आदेश दे दिया गया है.
– कोविड की रिपोर्ट निगेटिव आ रही है तो अधिकारी उसे निगेटिव ही मान रहे हैं. जबकि स्वास्थ्य विभाग की स्पष्ट गाइडलाइन आ गई है कि बहुत से मरीजों का आरटी पीसीआर टेस्ट में कोविड पॉजिटिव कन्फर्म नहीं हो रहा है . यदि आप CT स्कैन से कोविड पॉजीटिव हो रहे हैं, तो आप सरकारी आंकड़ों में कोविड पॉजिटिव के रूप में दर्ज नहीं हैं.
– कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग का काम करीब-करीब छोड़ा जा चुका है. अधिकारियों के प्रॉयरिटी लिस्ट में यह कहीं नहीं है. कांटेक्ट ट्रेसिंग का पैमाना संक्रमित व्यक्ति से जुड़े 25 लोगों तक पहुंचना है. प्रदेश में औसतन 33 हजार मरीज हैं और टेस्ट 2 लाख से कम हो रहा है, अगर इसे हम कांटेक्ट ट्रेसिंग का भी हिस्सा मान लें, तो हर व्यक्ति महज 6 का आंकड़ा है. यह भी तब है जब ऐसा हो रहा है, हम मान लें. हमारे-आप सबके परिचित में बहुत से लोग प्रभावित हैं, किसके यहां कितने कांटेक्ट ट्रेस किए गए, आप खुद ही इससे हकीकत परख सकते हैं.