जयंती विशेष: मिसाइल मैन कहे जाने वाले एपीजे अब्दुल कलाम ने भारत को दी एक नई दिशा
भारत को दी एक नई दिशा
सूरज की तरह चमकने के लिए सूरज की तरह जलना पड़ता है के अपने विचार को चरितार्थ करने वाले भारत के पूर्व 11 वें राष्ट्रपति,महान वैज्ञानिक,शिक्षक एपीजे अब्दुल कलाम की जयंती विश्व युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है। 15 अक्तूबर 2010 को संयुक्त राष्ट्र ने हर वर्ष 15 अक्तूबर को एपीजे अब्दुल कलाम के जन्मदिवस को विश्व छात्र दिवस के रूप में मानने की घोषणा की।
तमिलनाडु के एक साधारण दक्षिण भारतीय परिवार में 1939 को एपीजे का जन्म हुआ। उनके पिता जैनुलअबिदीन एक नाविक थे और उनकी माता अशिअम्मा एक गृहिणी थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्हें छोटी उम्र से ही काम यथा समाचार पत्र वितरण, पिता भाई के साथ काम करना पड़ा। अपने स्कूल के दिनों में कलाम पढाई-लिखाई में सामान्य छात्र थे, पर नई चीज सीखने के लिए हमेशा तत्पर और तैयार रहते थे।
प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद 1955 में वे मद्रास चले गए। हालांकि वह एक लड़ाकू पायलट बनना चाहते थे, लेकिन वे आईएएफ (भारतीय वायुसेना) द्वारा उसके लिए दक्षता प्राप्त नहीं कर पाए थे। मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद कलाम ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में वैज्ञानिक के तौर पर भर्ती हुए। भारतीय वायुसेना के लड़ाकू पायलट बनने की चाह रखने वाला युवक की सफलता की उंचाई हर गुजरे वक्त के साथ बढ़ती गई।
कलाम पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा गठित 'इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च' के सदस्य भी थे। इस दौरान उन्हें प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के साथ कार्य करने का अवसर मिला। वर्ष 1969 में उनका स्थानांतरण होने के कुछ समय उपरांत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में सैटेलाइट लांच व्हीकल परियोजना के निदेशक के तौर पर नियुक्त किये गए थे।
सत्तर और अस्सी के दशक में अपने कार्य और सफलता से डॉ कलाम भारत सहित विदेश में भी बहुत प्रसिद्ध हो गए और देश के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में उनका नाम गिना जाने लगा। उनकी ख्याति इतनी बढ़ गई थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अपने कैबिनेट के मंजूरी के बिना ही उन्हें कुछ गुप्त परियोजनाओं पर कार्य करने की अनुमति दे दी थी।
भारत सरकार ने महत्वाकांक्षी 'इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम' का प्रारम्भ डॉ. कलाम के देख-रेख में आरंभ किया। इस परियोजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रहते हुए उन्होंने देश को अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलों से लैश किया। भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण में इन्होंने उल्लेखनीय भूमिका निभा कर मीडिया के द्वारा 'मिसाइल मैन' की पदवी भी पाई।वर्ष 1998 में डॉ कलाम ने हृदय चिकित्सक सोमा राजू के साथ मिलकर एक कम कीमत का 'कोरोनरी स्टेंट' का विकास किया।
एक रक्षा वैज्ञानिक के तौर पर उनकी उपलब्धियों और प्रसिद्धि के मद्देनजर एन. डी. ए. की गठबंधन सरकार ने उन्हें वर्ष 2002 में राष्ट्रपति पद का उमीदवार बनाया। डॉ. कलाम देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे, जिन्हें राष्ट्रपति बनने से पहले ही भारत रत्न ने नवाजा जा चुका था। इससे पहले डॉ. राधाकृष्णन और डॉ. जाकिर हुसैन को राष्ट्रपति बनने से पहले 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जा चुका था। उनके कार्यकाल के दौरान उन्हें 'जनता का राष्ट्रपति' कहा गया।
उन्होंने हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक भगवत गीता का अध्ययन किया था। कलाम अकसर कहा करते थे कि 'पैगंबर मोहम्मद ने कहा था कि मुल्क से मुहब्बत ईमान की निशानी है'। भारत की व्यापक संस्कृति से उनका बहुत लगाव था। अपने खाली समय में वे भारतीय शास्त्रीय संगीत सुनते थे ।
राष्ट्रपति पद से सेवामुक्त होने के बाद डॉ. कलाम शिक्षण, लेखन, मार्गदर्शन और शोध जैसे कार्यों में व्यस्त रहे और देश विदेश के शैक्षिक संस्थानों से विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर जुड़े रहे। लगभग 40 विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी। कलाम हमेशा से देश के युवाओं और उनके भविष्य को बेहतर बनाने के बारे में बातें करते थे।
इसी संबंध में उन्होंने देश के युवाओं के लिए 'व्हाट कैन आई गिव' पहल की शुरुआत भी की, जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार का सफाया है। पूरी जिंदगी अपनी मजहब को व्यक्तिगत रखा, रोजा, नमाज भी करते थे, कभी इसे प्रदर्शित करने की कोशिश नहीं की, इफ्तार पार्टी कभी नहीं दी।
कलाम साहेब ने अपनी पुस्तक -टर्निंग प्वाइंट' में एक घटना का जिक्र करते हुए लिखते था, उनके पिता, इलाके का सरपंच चुने गये , कुछ दिन बाद कोई अपरिचित शख़्स उनके घर आकर उनके हाथ में कुछ उपहार दे गया, पिता के अनुपस्थिति में कलाम ने उपहार लिया बाद में जब पिता को ये बात बताई तो इसपर वह बेहद नाराज़ हुए ,उन्होंने एक हदीस शरीफ का हवाला देते हुए 'पद के दुरूपयोग' न करने की सख्त नसीहत दी। राष्टपति रहते हुए, पूर्व और बाद में भी कलाम ने सादगी से जीवन जीने का संदेश दिया।
कलाम के पूर्व प्रेस सचिव एस एम खान ने अपनी किताब 'महानतम इंसान के साथ मेरे दिन' में जिक्र किया है कि एपीजेअब्दुल कलाम के मन में 2006 में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने का विचार भी आया था, तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने विधानसभा भंग करने का प्रस्ताव भेजा , कैबिनेट ने अनुमोदित कर उनके पास भेजा। उस पर राष्ट्रपति ने ना चाहते हुए भी हस्ताक्षर किया, बाद में इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के आदेश को खारिज कर दिया था। तब कलाम को लगा था कि उन्हें हस्ताक्षर नहीं करना चाहिए था। कमाल का व्यक्त्वि था उनका।
वर्ष 2011 में प्रदर्शित हुई हिंदी फिल्म 'आई एम कलाम' उनके जीवन से प्रभावित है। भारत के विकास और युवा शक्ति पर उनका विचार नयी पढ़ी को नई दिशा देगा। शिक्षण के अलावा उन्होंने 30 से ज़्यादा किताबें लिखीं जिनमें विंग्स ऑफ़ फ़ायर, इग्नाइटेड माइंड और इंडिया 2020: विज़न फ़ॉर मिलेनियम सबसे ज़्यादा चर्चित हैं।
उन्होंने इंडिया 2020: विज़न फ़ॉर मिलेनियम में विस्तार से भारत के 2020 के लिए एजेंडा तय किया । उन्होंने वकालत की कि देश का ध्यान जीडीपी, विदेशी मुद्रा का विनिमय, आयात-निर्यात, तकनीक और अर्थव्यवस्था की तरफ तो होना ही चाहिए, साथ ही लोगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषक भोजन भी देश की प्राथमिकता होनी चाहिए।
देश के समावेशी विकास के लिए तकनीक, विज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र में सरकार को क्या करना चाहिए और इसमें आम नागरिक को क्या भूमिका निभानी चाहिए आदि उनके जीवन से एक प्रेरणा मिलती है कि एक जिज्ञासु छात्र ही एक अच्छा शिक्षक या नायक बन सकता हैं।
27 जुलाई 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलांग में अपने सबसे प्रिय कार्य लेक्चर के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद करोड़ों लोगों के प्रिय और चहेते महानायक डॉ अब्दुल कलाम परलोक सिधार गए।उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल है, जो भविष्य की पीढ़ी खास कर युवा वर्ग का मार्गदर्शन करती रहेगी।
अमर उजाला