जयशंकर की दो टूक
पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के नवीकरण के लिए 45 करोड़ डॉलर की मदद देने के अमेरिकी फैसले पर अब तक की सबसे कठोर टिप्पणी करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि आप बेवकूफ किसे बना रहे हैं
नवभारत टाइम्स: पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के नवीकरण के लिए 45 करोड़ डॉलर की मदद देने के अमेरिकी फैसले पर अब तक की सबसे कठोर टिप्पणी करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि आप बेवकूफ किसे बना रहे हैं, सब जानते हैं कि यह पैसा कहां खर्च होने वाला है। जयशंकर ने हालांकि यह टिप्पणी वॉशिंग्टन में अमेरिकी भारतीय समुदाय की ओर से आयोजित एक समारोह में की, लेकिन इसकी अहमियत इस वजह से भी है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में शामिल होने गए विदेश मंत्री उसके बाद भी तीन दिन वहां रुके और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन समेत कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों से उनकी मुलाकात हुई। साफ है कि विदेश मंत्री के इस तेवर की झलक उन बैठकों में भी दिखी होगी। और यह तेवर न तो अकारण है न ही अस्वाभाविक।
आतंकवाद के सवाल पर पाकिस्तान का लापरवाही भरा रवैया जगजाहिर है। भारत तो इसका मुख्य शिकार रहा ही है, अन्य देश भी इसके गवाह रहे हैं। खुद अमेरिका भी इस पर आपत्ति करता रहा है। 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को दो अरब डॉलर की सुरक्षा सहायता स्थगित कर दी थी और इसका कारण यही बताया था कि वह अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकवादी समूहों पर कारगर कार्रवाई नहीं कर पाया है। ना ही, अपने यहां उनके सुरक्षित ठिकाने नष्ट कर पाया है। उसके बाद से यह पहला मौका है जब अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान सरकार को फॉरेन मिलिट्री सेल मंजूर की है।
स्वाभाविक ही सवाल उठता है कि अचानक अमेरिका के रुख में इस बदलाव का कारण क्या है। क्या सचमुच इस बीच पाकिस्तान ने आतंकवाद को लेकर अपना स्टैंड बदलने का कोई ठोस संकेत दिया है? बिल्कुल नहीं। बल्कि, पिछले दिनों एक बार फिर उसने चीन से मिलकर संयुक्त राष्ट्र में लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े एक आतंकवादी को ब्लैकलिस्ट करने की कोशिश नाकाम करवा दी। ऐसे में एफ-16 लड़ाकू विमान के नाम पर उसे मदद देने का भला क्या अर्थ बनता है। उस पर दावा यह कि इन विमानों के जरिए आतंकवाद विरोधी अभियानों में मदद मिलेगी।
विदेश मंत्री जयशंकर ने ठीक ही ध्यान दिलाया कि अमेरिका पाक रिश्तों का जो स्वरूप अब तक रहा है, उससे न तो पाकिस्तान का कुछ भला हुआ है और न अमेरिका को ही कोई फायदा हुआ है। वक्त का तकाजा है कि इस पर नए सिरे से विचार किया जाए। इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान या किसी भी देश को लेकर अपनी नीति अमेरिकी सरकार ही तय करेगी, लेकिन मित्र देश होने के नाते उसे उन नीतियों के अच्छे बुरे पहलुओं से अवगत कराना भारत का काम है। और, अपने हितों के हवाले से उन पर जरूरत के मुताबिक अपना रुख नरम या सख्त करना भी।