सारा दोष सवर्ण हिंदुओं के मत्थे लादना गलत
कुछ लोग ऐसे हैं, जो सर्वथा पिछड़े हुए हैं, जिनको शताब्दियों से दबाकर पीड़ित रखा गया है
ब्रजेश्वर प्रसाद,
कुछ लोग ऐसे हैं, जो सर्वथा पिछड़े हुए हैं, जिनको शताब्दियों से दबाकर पीड़ित रखा गया है। नौकरियों के संबंध में केवल ऐसे ही लोगों के दावों को ध्यान में रखा जाएगा। ऐसे लोगों की नियुक्ति का काम केवल राष्ट्रपति के हाथ में रहना चाहिए। इनको नियुक्त करने का दायित्व राष्ट्रपति पर होना चाहिए। मैं ऐसा अनुभव करता हूं कि अगर हम इस आशय का उपबंध रखते हैं कि नियुक्तियां देने में अनुसूचित आदिम जातियों और अनुसूचित जातियों के दावों को ध्यान में रखा जाएगा, तो इसका नतीजा यह होगा कि लोक सेवा आयोग के सदस्यों पर इतना बड़ा भार पड़ जाएगा, जिसको वहन करने की शायद उनमें क्षमता न होगी। अल्पसंख्यक समुदायों का दावा क्या है? अनुसूचित आदिम जातियों या अनुसूचित जातियों का दावा क्या है? कोई भी आदमी, जो साधारण बुद्धि और सहज ज्ञान रखता है, वह क्या कभी भी उनके अमान्य दावों को मानने पर तैयार हो सकता है?
इनके दावे यह हैं। कोई कहता है कि हमको समता प्राप्त होनी चाहिए। कोई यह मांग करता है कि नौकरियों में हमें संख्या के आधार पर जगहें मिलनी चाहिए। यहां सभा भवन में एक तीसरी मांग यह की गई है कि चूंकि हमें शताब्दियों तक दबाया गया है और हम पर अत्याचार किए गए हैं, इसलिए अब सवर्ण हिन्दुओं से इसके लिए प्रायश्चित करवाया जाए। इन लोगों के विरुद्ध किए गए अपराधों के लिए अगर इस तरह प्रायश्चित हम करते हैं, तो फिर हमें सारी राज्य-व्यवस्था ही इन लोगों को, यानी अनुसूचित आदिम जातियों को और अनुसूचित जातियों को दे देनी होगी। लोक सेवा आयोग क्या इन दावों पर कोई ध्यान देने जा रहा है? मेरा ख्याल है कि इन बातों के लिए किसी समुदाय को दोषी ठहराना गलत होगा। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित आदिम जातियों के विरुद्ध जो भी अन्याय हुआ है, उसके लिए किसी समुदाय को दोषी ठहराना गलत होगा। अगर इस दोष का कोई भागी है, वह इतिहास है। समय को और समय के प्रवाह को ही इसके लिए दोषी ठहराया जा सकता है।
...इतिहास का निर्माण करते हैं अत्याचार करने वाले और अत्याचार सहने वाले। जिसके साथ अत्याचार किया जाता है, उसकी यह भूल है कि वह अत्याचार को स्वीकार करता है। मेरे इस कथन पर अगर आप यह दलील रखते हैं कि वह इस स्थिति में नहीं थे कि सुसंगठित होकर प्रतिरोध करते, तो हम यह कहेंगे कि उनमें राजनीतिक चेतना का अभाव था, संगठन का अभाव था, जिसके कारण उन पर अत्याचार किया जा सका। इन अत्याचारों के लिए अगर कोई जिम्मेदार था, तो व्यवस्था और समाज जिम्मेदार थे।...ऐसे किसी भी अन्याय के दोषी सवर्ण हिंदू नहीं हैं। हमें भी अन्याय का शिकार होना पड़ा है, क्योंकि यहां के निवासियों ने सवर्ण हिंदुओं का भी शोषण किया है, उन पर अन्याय किए हैं। शताब्दियों तक हमारा देश पराधीन रहा है। चिरकाल से यह देश विदेशियों के हस्तक्षेप के अधीन रहा है और विदेशियों के अत्याचार इस पर हुए हैं। सवर्ण हिंदुओं को यहां समृद्ध होने का फूलने-फलने का कभी मौका नहीं मिला है। सारा दोष सवर्ण हिंदुओं के मत्थे लादना सरासर गलत है और अन्याय है। वह खुद स्थिति के शिकार रहे हैं। मैं इस बात को नहीं मान सकता हूं कि सवर्ण हिंदुओं ने किसी पर भी अत्याचार किया है।
...मेरा अपना यह मत है कि ये लोग जो विधानमंडलों और नौकरियों में स्थान रक्षण के लिए इतना शोर गुल मचा रहे हैं, वे हरिजन समाज के मुट्ठी भर विशिष्ट आदमियों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। अनुसूचित आदिम जातियों और अनुसूचित जातियों में जो राजनीतिक शक्ति संपन्न दल हैं, वह इन्हीं लोगों को मिलाकर बने हैं। मैं नहीं समझता कि इनकी इन मांगों और दावों से अनुसूचित जातियों के विशाल जनसमूह का कोई वास्ता है और इन मांगों की पूर्ति से उनको कोई फायदा पहुंच सकता है। इन जातियों के बारे में जो समस्या आज हमारे सामने है, उनका समाधान नौकरियां दिलाकर नहीं किया जा सकता है। इस समस्या के समाधान का उपाय तो यही है, इन लोगों को हम अपने में मिलाकर एक कर दें और सभी संप्रदायों को एक राष्ट्र के रूप में सुसंबद्ध कर दें। ऐसा करने से देश में सुख-समृद्धि आ सकती है। मैं नहीं चाहता हूं कि मुसलिम लीग की राजनीति यहां पुन: अभिनीत की जाए। मेरे संशोधन का मूल उद्देश्य है, अपने राज्य की नींव को पुख्ता करना।...राज्य के हितों को सुरक्षित रखने के लिए ही मैंने संशोधन पेश किया है।
सोर्स- Hindustan Opinion Column