वैक्सीन के खिलाफ चलाए जा रहे कैंपेन में क्या वाकई दम है?
वैक्सीन के खिलाफ क्या बातें फैलाई जा रही हैं?
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दुनिया में कुछ ऐसे लोग और संगठन हैं जो कोरोना के खिलाफ कैंपेन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हिस्सा ले रहे हैं. वो कोरोना वैक्सीन के खिलाफ अलग-अलग तरह के वीडियो और मैसेज डालकर उसे जानलेवा करार दे रहे हैं. आलम ये है कि उनके द्वारा फैलाए जा रहे संदेश सोशल मीडिया पर खूब वायरल भी हुए हैं लेकिन क्या ऐसे लोगों की बातों का कोई ठोस वैज्ञानिक आधार है या नहीं इसका विश्लेषण हम इस रिपोर्ट में कर रहे हैं?
वैक्सीन के खिलाफ क्या बातें फैलाई जा रही हैं?
सोशल मीडिया में वैक्सीन के खिलाफ जहर उगलने वाले एक शख्स हैं विश्वरूप रॉय चौधरी जो कहते हैं कि अगर कोई आपको वैक्सीन देना चाहे तो समझ लीजिए वो उस ग्रुप में शामिल है जो आपकी जान और संपत्ति छीनने का इरादा रखता है. इसलिए विश्वरूप रॉय चौधरी अपील करते हैं कि अपनी और अपने चाहने वालों की जान की सुरक्षा करें और वैक्सीन का बहिष्कार करें. विश्वरूप रॉय चौधरी यहीं नहीं रुकते हैं, वो कहते हैं कि कोरोना महज एक फ्लू है और लोगों को वैक्सीन लगाकर जनसंख्या पर नियंत्रण करना ही असली मकसद है.
विश्वरूप रॉय चौधरी के इस तरह के कई वीडियो पोष्ट करने के बाद उनके यू-ट्यूब और सोशल मीडिया चैनल ब्लॉक कर दिए गए हैं लेकिन विश्वरूप रॉय चौधरी अपने निजी वेबसाइट और अन्य मीडियम के जरिए लगातार वैक्सीन के खिलाफ प्रचार में जुटे हुए हैं. विश्वरूप रॉय चौधरी की तर्ज पर ही वैक्सीन के विरोध में अमेरिका के सिनेटर रैंड पॉल भी सोशल मीडिया पर जबर्दस्त कटाक्ष कर चुके हैं. रैंड पॉल ने कहा है कि वैक्सीन भले ही 90 से 95 फीसदी कारगर होने (Efficacy) का दावा करती हो लेकिन उनकी तुलना में नैचुरल इंफैक्शन (कोरोना के बाद प्रकृतिक रूप से उत्पन्न हुए एंटीबॉडी) 99.99 फीसदी कारगर हैं.
दरअसल, रैंड पॉल, नेचुरल इम्यूनिटी जो कोरोना के बाद शरीर में डेवलप होता है उसे अलग अलग कंपनियों द्वारा तैयार किए गए वैक्सीन से ज्यादा कारगर बता रहे हैं. लेकिन इस तरह की दलील का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं मिलता है. मेडिसीन पर कई किताबें लिख चुकी डॉ. संगीता शर्मा जो वर्तमान में इभास (IBHAS)में प्रोफेसर हैं कहती हैं कि वैक्सीन की मदद से डिप्थीरिया, परटूसिस, टेटनस, मम्स, पोलियो जैसी कई बीमारियों पर काबू पाया जा चुका है. कोरोना के लिए तैयार किए जा रहे वैक्सीन भी वैज्ञानिक आधार पर एक सुरक्षित प्रक्रिया ( Clinical Trial) के तहत तैयार किया जा रहा है. इसलिए इसके खिलाफ चलाए जा रहे दुष्प्रचार पूरी तरह भ्रामक प्रचार की तरह हैं जो अलग-अलग एजेंडे के तहत चलाया जा रहा है.
वहीं कोरोना पीड़ित कई गंभीर रोगियों का ईलाज कर ख्याति प्राप्त डॉ. प्रभात रंजन कहते हैं कि इतने कम समय में वैक्सीन को तैयार किया जाना और उसे इमरजेंसी अप्रूवल के जरिए बाजार में उतारा जाना लोगों के मन में थोड़ा संदेह जरूर पैदा करता है. डॉ. प्रभात कहते हैं कि अभी भी कोरोना से ठीक हो चुके लोगों को वैक्सीन देने को लेकर डॉक्टर्स और वैज्ञानिक एक राय नहीं रखते इसलिए वैक्सीन किसको, कितने डोजेज में और क्या ये लाइफ टाइम इम्यूनिटी देगा या फिर हर साल लेना पड़ेगा, इसको लेकर जब तक सारे जवाब सामने नहीं आ जाते तब तक कनफ्यूजन की स्थितियां रहेंगी.
वैक्सीनेशन से शरीर की इम्युनिटी (प्रतिरोधक क्षमता) ज्यादा बढ़ती है या नैचुरल इंफेक्शन से?
वैक्सीनेशन (vaccination) बचाव ( Prevention) का काम करती है और जो लोग फिर भी संक्रमित हो जाते हैं उनमें वैक्सीन की वजह से कोरोना की मारक क्षमता बेहद कम हो जाती है. इसलिए वैक्सीनेशन (vaccination) को हर हाल में कोरोना से बचने के लिए बेहतर उपाय माना जा रहा है. इतना ही नहीं कोरोना से पीड़ित तकरीबन दो फीसदी लोग मौत की भेंट चढ़ जाते हैं और उन दो फीसदी में 70 फीसदी लोग डायबिटिक, मोटे और 50 साल के उपर के लोग देखे गए हैं. लेकिन 2 से 3 फीसदी लोग जो मौत के शिकार होते हैं वो कौन होंगे इसका पता चलना मुश्किल है. इसलिए नैचुरल इंफेक्शन से वैक्सीनेशन को कहीं बेहतर विकल्प के रूप में देखा जाता है.
वैसे भी कई कोरोना की बीमारी से उबर चुके रोगियों में कोरोना के गंभीर प्रभाव देखे जा रहे हैं और वैसे रोगियों में हार्ट, लंग्स, शरीर में लंप्स, रैसेज जैसी कई बीमारियां अजीबोगरीब स्थिती में देखी जा रही हैं. इसलिए वैक्सिीनेशन के जरिए बचाव यानी प्रिवेंशन (Prevention) को हर हाल में बेहतर माना जा रहा है. कोरोना के उपचार के लिए तैयार किए गए मॉडर्ना वैक्सीन के ट्रायल में देखा गया कि रिसिवर के शरीर में एंटीबॉडी की मात्रा नैचुरल इंफैक्शन से कहीं ज्यादा थी. इसलिए भी कोरोना की बीमारी से बचने के लिए वैक्सीनेशन सबसे कारगर उपाय माना जा रहा है.
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक हॉवर्ड टी एच चान स्कूल पब्लिक हेल्थ के विशेषज्ञ बिल हनागे कहते हैं कि जिन व्यक्तियों में कोरोना का असर मामूली देखा गया है वैसे व्यक्तियों में एंटीबॉडी कुछ महीनों में खत्म हो सकती हैं और दोबारा संक्रमण का खतरा हो सकता है. इसलिए ऐसे लोगों को भी वैक्सीनेट किया जाना बचाव के लिए बेहतर उपाय होगा. बिल हनागे कहते हैं कि वैक्सीन का खतरा नैचुरल इंफैक्शन (Natural Infection) से बेहद कम है और ये बेहद रेयर केस में हो सकता है जबकि वैक्सीन (Vaccine) की जांच हजारों हजार लोगों पर किए जाने के बाद कोई गंभीर खतरा (Rare side effects) नहीं महसूस किया गया है.
नैचुरल इंफेक्शन (कोरोना) के केस में अलग अलग लोगों में प्रतिरोधक क्षमता (Immune response) में भारी अंतर देखा गया है और एक्सपर्ट मानते हैं कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अलग-अलग लोग अलग-अलग मात्रा में वायरस से एक्सपोज होते हैं इसलिए उनके अंदर की प्रतिरोधक क्षमता में 200 गुणा का अंतर तक हो सकता है.
न्यूयॉर्क टाइम्स के हवाले से डॉ. गोमरमैन कहते हैं कि वैक्सीन की खास बात यह है कि इसका डोज सामान रूप से उतना ही दिया जाता है जो प्रतिरोधक क्षमता (Immune Response) को कारगर बना सके. वहीं वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर मैरियॉन पेपर कहते हैं कि वैक्सीन से होने वाली मामूली समस्या से निपटना कहीं आसान है जबकि इसकी तुलना में नैचुरल इंफैक्शन का खतरा बहुत ज्यादा है. जाहिर है विशेषज्ञ की राय में वैक्सीन कोरोना जैसी माहमारी से बचने के लिए एक सर्वोत्तम कारगर हथियार है. इसलिए इसकी गुणवत्ता को देखते हुए अलग अलग देश असमान्य परिस्थितियों में वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल ( Emergency Approval) देकर बाजार में उतारने लगे हैं.
पिछले सप्ताह भारत के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने वर्ल्ड बैंक इंटरमिनिस्टिरियल मीट ऑफ वैक्सीनेटिंग साउथ एशिया ( World Bank Inter Ministerail Meet of Vaccinating South Asia) में कहा है कि भारत में भी वैक्सीन कुछ हफ्तों में आने की पूरी संभावना है और हमने रेगुलेटरी नियमों और वैक्सीन की गुणवत्ता (Efficacy) से कोई समझौता नहीं किया है. ज़ाहिर है भारत में बन रहे आठ में से 3 वैक्सीन तैयारी के मुहाने पर हैं और उसकी गुणवत्ता की परख यहां की रेगुलेटरी बॉडी (Regulatory Body) बेहद गंभीरता से कर रही है. इसलिए वैक्सीन के खिलाफ चलाए जा रहे कैंपेन महज एक दुष्प्रचार की तरह है जिसका वैज्ञानिक आधार कहीं दिखाई नहीं पड़ता.
पिछले सप्ताह मंगलवार को नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी के पॉल ने मीडिया से अपील करते हुए कहा था कि इतने बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन आम लोगों की भागीदारी और मीडिया के सहयोग के बगैर संभव नहीं है. वैक्सीन के खिलाफ भ्रामक दुष्प्रचार रोकने में मीडिया की जिम्मेदारी बेहद महत्वपूर्ण है.