क्या चीन जानबूझकर भारत में पावर संकट के लिए परिस्थितियां पैदा कर रहा है
भारत में कोयले का संकट (Coal Crisis In India) अब गहराने लगा है
संयम श्रीवास्तव भारत में कोयले का संकट (Coal Crisis In India) अब गहराने लगा है. अगर स्थिति ऐसी ही रही तो आने वाले समय में हिंदुस्तान को एक बड़ी बिजली समस्या के लिए तैयार रहना होगा. दरअसल हिंदुस्तान के बिजली घरों में कोयले की भारी कमी हो गई है. जिसके कारण बिजली उत्पादन पर भी खासा असर पड़ रहा है. यहां तक कि कई बिजली घरों में कोयला खत्म होने की वजह से कई इकाइयां भी बंद करनी पड़ी हैं, तो वहीं कुछ इकाइयों में महज तीन-चार दिन का ही स्टॉक और बचा है. हालांकि इन सबके बीच जो सबसे चौंकाने वाली बात है वह यह है कि भारत में हो रहे इस बिजली संकट के पीछे कहीं ना कहीं चीन का ही हाथ है.
दरअसल भारत अपना ज्यादातर कोयला ऑस्ट्रेलिया से आयात करता है, लेकिन यह कोयला भारत आने से पहले चीन से होकर गुजरता है इस वक्त भारत का लगभग 20 लाख टन से अधिक ऑस्ट्रेलियाई कोयला महीनों से चीन के बंदरगाह पर पड़ा हुआ है और चीन इसे भारत नहीं आने दे रहा है. यही वजह है कि भारत में बिजली सप्लाई का बड़ा संकट खड़ा हो गया है. दरअसल चीन एक ऐसा देश है जिससे ना सिर्फ ऑस्ट्रेलिया के संबंध खराब हैं बल्कि भारत से भी उसके संबंध इतने अच्छे नहीं हैं. इसलिए शायद चीन जानबूझकर भारत के कोयले को रोक कर रखे हुए है जबकि चीन खुद ही एक बड़े बिजली संकट से जूझ रहा है.
भारत में तेजी से खत्म हो रहा है कोयला
भारत में बढ़ती बिजली मांग के चलते कोयला आधारित पावर प्लांट्स में तेजी से कोयले की कमी हो रही है. केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के आंकड़े दिखाते हैं कि बीते 1 महीने में ऐसे कई थर्मल पावर प्लांट की संख्या तेजी से बढ़ी है जिनके पास प्लांट को 8 दिन तक चलाने के लिए भी पर्याप्त कोयला नहीं है. जर्मन न्यूज़ वेबसाइट डीडब्ल्यू हिंदी में छपी एक खबर के मुताबिक सीईए की ओर से जारी की गई नई रिपोर्ट में पता चला है कि 135 थर्मल पावर प्लांट में से 103 में 8 दिनों से कम का कोयला भंडार बचा हुआ है. यह आंकड़े 26 सितंबर से लिए गए हैं. यानि अब तक कई पावर प्लांट में कोयला खत्म हो चुका होगा. जहां एक तरफ चीन ने भारत का कोयला अपने बंदरगाहों पर रोक कर रखा है. वहीं दूसरी ओर भारत में तेजी से बिजली की मांग बढ़ी है. कोरोना की वजह से लगे प्रतिबंधों में कमी आने के बाद से देश में बिजली की मांग तेजी से बढ़ी है 7 जुलाई को यह अपने शीर्ष 200.57 गीगावाट के स्तर पर पहुंच गई थी. जबकि अब भी मांग 190 गीगावाट से ऊपर ही बनी हुई है.
देश के कई बिजली घरों में कोयले का स्टॉक खत्म हो रहा है. राज्य विद्युत उत्पादन निगम के हरदुआगंज व परीछा बिजली घरों में कोयले का स्टॉक खत्म हो जाने से 710 मेगावाट क्षमता की इकाइयां बंद करनी पड़ी. निजी क्षेत्र की ललितपुर परियोजना की 600 मेगावाट और रोजा परियोजना की 300 मेगावाट क्षमता वाली इकाइयों को भी कोयले की कमी के कारण बंद करना पड़ा. अनपरा पावर प्लांट में रोजाना 40,000 और ओबरा पावर प्लांट में रोजाना 15 हजार मैट्रिक टन कोयले की जरूरत पड़ती है, लेकिन आज वहां 25-26 हजार मैट्रिक टन ही कोयला पहुंच पा रहा है. ऐसी हालत देशभर के कई पावर प्लांट्स की है.
गंभीर बिजली संकट से जूझ रहा है चीन
चीन इस वक्त गंभीर बिजली संकट से जूझ रहा है और इस संकट की वजह से सोयाबीन प्रसंस्करण/ पशु चारा प्रसंस्करण और उर्वरक जैसी आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन चीन में मुश्किल हो गया है. जिसकी वजह से इनकी कीमतें अब आसमान छू रही हैं. स्टील, अल्मुनियम, सिलिकॉन जैसी धातुओं की कीमतें भी चीन में तेजी से बढ़ रही हैं. क्योंकि बिजली की कमी के कारण इन वस्तुओं का उत्पादन रुका हुआ है. चीन की नीतियों की वजह से बीते सप्ताह में चीनी कोयले की कीमतों में काफी उछाल आया है. दरअसल चीन ने ऑस्ट्रेलियाई कोयले के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो दुनिया के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक है. इसके साथ आपको यह भी बता दें कि चीन में 2 तिहाई से अधिक बिजली का उत्पादन कोयले से किया जाता है और चीन उस कोयले की डिमांड को पूरा करने के लिए अब रूस, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से महंगा कोयला खरीदने के लिए मजबूर है, क्योंकि उसने ऑस्ट्रेलिया से कोयले के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है.
पूरी दुनिया ऊर्जा संकट का सामना कर रही है
चीन की कम्युनिस्ट सरकार के नई नीतियों की वजह से चीन में बिजली समेत रियल स्टेट और उत्पादन के क्षेत्रों में उथल-पुथल मचा है. इससे चीन में स्थापित तमाम देशी-विदेशी कंपनियां परेशान हैं. यही वजह है कि आने वाले समय में निवेशक चीन से हटने की सोच रहे हैं. चीन ने जिस तरह से कोयले की आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान डाला है इससे न सिर्फ चीन और भारत बल्कि यूरोप और अमेरिका भी ऊर्जा संकट का सामना कर रहे हैं.
बढ़ सकती है महंगाई
जाहिर सी बात है जब किसी कंपनी को महंगे दाम पर कोयला मिलेगा तो कारोबारी उस एक्स्ट्रा महंगाई को अपने जेब से तो भरेगा नहीं उसका बिल भी वह ग्राहक पर फाड़ेगा. अंततः महंगे हुए कोयले की मार सीधे-सीधे आम पब्लिक पर पड़ेगी. बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार इंडिया रेटिंग्स रिसर्च के डायरेक्टर विवेक जैन कहते हैं कि परिस्थिति बहुत ही अनिश्चित है. भारत में हाल के वर्षों में पर्यावरण के लिए अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने के लिए कोयले पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश की है. जिसकी वजह से भारत में कोयला उत्पादन भी बहुत कम हुआ है. 80 फ़ीसदी कोयला उत्पादित करने वाली सरकारी उपक्रम कोल इंडिया लिमिटेड की पूर्व प्रमुख जोहरा चटर्जी बीबीसी से बात करते हुए कहती हैं कि ऐसी ही स्थिति बनी रही तो एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने के लिए संघर्ष करेगी. उनका कहना है कि बिजली से ही हर चीज चलती है, ऐसे में पूरा उत्पादन सेक्टर सीमेंट, स्टील, कंस्ट्रक्शन सब कोयले की कमी के कारण प्रभावित होंगे.
क्या निजी खदानों से पूरी होगी भारत की कोयला आपूर्ति
भारत में कई ऐसी कोयला खदानें हैं जो निजी हाथों में हैं. वहां से निकलने वाला कोयला वह निजी कंपनी केवल अपने लिए ही इस्तेमाल कर सकती हैं. ऐसे में जिस तरह से भारत में बिजली की मांग बढ़ रही है और कोयले की कमी है उससे यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या सरकार उन निजी खदानों से कोयला हासिल करेगी. सरकार के साथ हुए समझौते की शर्तों के तहत इन खदानों को वह कोयला सिर्फ अपने कंपनियों के इस्तेमाल के लिए ही उपयोग में लाना होगा. यानि वह इस कोयले को बाजार में बेच नहीं सकते हैं. हालांकि भारत सरकार अगर निजी खदानों से कोयला हासिल भी कर लेती है तो यह एक अल्पकालिक उपाय होगा, जबकि जिस तरह से भारत में बिजली की मांग बढ़ रही है उसे देखते हुए कुछ दीर्घकालिक उपाय करने की जरूरत है.