विडंबना! जेल में बंद दागी छवि वाले लोग भी चुनाव लड़ने में समर्थ

राजनीति के अपराधीकरण को रोकना कितना कठिन है

Update: 2022-01-19 17:22 GMT
राजनीति के अपराधीकरण को रोकना कितना कठिन है, इसका प्रमाण है चुनावों की घोषणा होते ही कई ऐसे दागी नेताओं का प्रत्याशी के रूप में सामने आ जाना जिन पर संगीन आरोप हैं। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिन पर थोक के भाव मुकदमे दर्ज हैं और वे भी हत्या, लूट और जमीन कब्जाने से लेकर धोखाधड़ी और दंगा कराने तक के। ऐसे आपराधिक अतीत वाले लोग तब प्रत्याशी बनाए जा रहे हैं जब निर्वाचन आयोग ने यह कह रखा है कि राजनीतिक दलों को ऐसे दागी नेताओं को उम्मीदवार बनाने पर न केवल इसका कारण बताना होगा, बल्कि उसकी सूचना समाचार पत्रों और अन्य मीडिया माध्यमों के जरिये सार्वजनिक करनी होगी।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिस तरह गंभीर आरोपों का सामना कर रहे नेताओं को उम्मीदवार बना दिया गया, उससे यह साफ है कि निर्वाचन आयोग के निर्देश की कहीं कोई परवाह नहीं की गई। कोई भी समझ सकता है कि परवाह इसीलिए नहीं की गई, क्योंकि निर्वाचन आयोग के पास ऐसे अधिकार नहीं कि वह अपने निर्देशों की अनदेखी करने वाले दलों को दंडित कर सके।
यह अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट उस याचिका की जल्द सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया, जिसमें यह मांग की गई है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को चुनाव मैदान में उतारने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद की जाए। कहना कठिन है कि इस याचिका की सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट किस नतीजे पर पहुंचेगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि यदि निर्वाचन आयोग को ठोस अधिकार नहीं दिए गए तो दागी छवि वालों को चुनाव मैदान में उतरने से रोकना मुश्किल ही होगा।
इस संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि निर्वाचन आयोग एक अर्से से यह मांग कर रहा है कि गंभीर आरोपों का सामना कर रहे उन दागदार नेताओं को चुनाव मैदान में उतरने से रोका जाए, जिनके खिलाफ आरोप पत्र दायर हो चुका हो, लेकिन राजनीतिक दल यह खोखला तर्क देने में लगे हुए हैं कि दोषी साबित न होने तक हर किसी को निदरेष ही माना जाना चाहिए। इसी कारण जेल में बंद दागी छवि वाले लोग भी चुनाव लड़ने में समर्थ हैं। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि जेल में बंद नागरिक मतदान नहीं कर सकता, लेकिन उसे चुनाव लड़ने की छूट होती है। सुप्रीम कोर्ट को न केवल यह देखना चाहिए कि ऐसे प्रविधान राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं, बल्कि इस पर भी गौर करना चाहिए कि वे विशेष अदालतें दागी नेताओं के मामलों का निपटारा तेजी के साथ नहीं कर पा रही हैं, जिन्हें यह विशेष दायित्व सौंपा गया है।
दैनिक जागरण 
Tags:    

Similar News

-->