असुरक्षित बेटियां
समाज में रसूख के बूते अपनी धौंस जमाने वाले कुछ लोग महज मनमानी के लिए किसी अपराध को अंजाम देने से नहीं हिचकते। जिस लड़की की हत्या कर दी गई, वह अपने परिवार की आर्थिक हालत की वजह से भी नौकरी करने से घर से निकली थी।
Written by जनसत्ता; समाज में रसूख के बूते अपनी धौंस जमाने वाले कुछ लोग महज मनमानी के लिए किसी अपराध को अंजाम देने से नहीं हिचकते। जिस लड़की की हत्या कर दी गई, वह अपने परिवार की आर्थिक हालत की वजह से भी नौकरी करने से घर से निकली थी। मगर उसकी योग्यता और मेहनत की कद्र करने के बजाय रिजार्ट के मालिक ने उसे अवैध और अनैतिक काम में झोंकने की कोशिश की।
जाहिर है, लड़की ने मना किया, मगर आरोपों के मुताबिक, इसी वजह से रिजार्ट के मालिक ने अपने सहयोगियों के साथ मिल कर उसकी हत्या कर दी। यों यह घटना आए दिन होने वाले जघन्य अपराधों की ही अगली कड़ी है, मगर यह सत्ता और समाज के उस ढांचे को भी सामने करती है, जिसमें महिलाओं की सहज जिंदगी लगातार मुश्किल बनी हुई है। इस घटना ने समूचे प्रशासन और पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाया है। हालत यह है कि अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने या फिर रसूखदार आरोपियों को बचाने की मंशा से सही समय पर कार्रवाई करने को लेकर भी टालमटोल की जाती है।
दरअसल, घटनाक्रम को देखते हुए ऐसा लगता है कि युवती की हत्या को लेकर अगर लोगों के बीच आक्रोश नहीं फैलता तो शायद पुलिस आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई को लेकर शिथिल शैली में काम करती रहती। मार डाली गई लड़की के पिता ने आरोप लगाया कि उन्होंने बेटी के लापता होने की सूचना राजस्व पुलिस को दे दी थी, मगर उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई। जबकि सूचना के तुरंत बाद प्रशासन को सक्रिय होना चाहिए था। क्या इसकी वजह आरोपियों का स्थानीय स्तर पर रसूखदार होना और सत्ताधारी पार्टी से संबंध होना है? गौरतलब है कि मुख्य आरोपी रिजार्ट का मालिक भाजपा नेता और पूर्व राज्यमंत्री का बेटा है और उसका भाई भी उत्तराखंड में अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग का उपाध्यक्ष था।
घटना के तूल पकड़ने के बाद भाजपा ने इन दोनों को पार्टी से निकालने की औपचारिकता निभाई, मगर राज्य में कोई लड़की घर से बाहर सुरक्षित महसूस करे, इसकी फिक्र फिलहाल नहीं दिख रही। शर्मनाक यह है कि हत्या से सबंधित तथ्य उजागर होने के बाद भी मुख्य आरोपी के पिता ने अपने बेटे को 'सीधा-सादा बालक' बताया! एक राष्ट्रीय पार्टी के किसी नेता की यह कैसी संवेदनहीनता है?
विडंबना यह है कि इस घटना के सामने आने के बाद जहां सही दिशा में कानूनी कार्रवाई आगे बढ़नी चाहिए थी, वहीं रिजार्ट पर बुलडोजर चला कर आम लोगों के गुस्से को शांत करने की कोशिश की गई। राज्य के मुख्यमंत्री ने रिजार्ट को ध्वस्त किए जाने की वजह उसके सरकारी और वनभूमि पर बने होने को बताया।
सवाल है कि रिजार्ट के बारे में यह तथ्य क्या सरकार को इस हत्या के बाद पता चला? किसी मामूली संदिग्ध गतिविधि पर भी नजर रखने का दावा करने वाली पुलिस को रिजार्ट के अवैध होने और उसमें किसी लड़की को देह-व्यापार में जबरन झोंकने का दबाव बनाने के बारे में भनक नहीं लगी। क्या यह सरकार और प्रशासन की नाकामी नहीं है? 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा प्रचारित होने के दौर में यह बेहद तकलीफदेह है कि एक ओर समाज का ढांचा महिलाओं के खिलाफ है, वहीं यह सरकार की नाकामी है कि महिलाओं को हर तरह से सुरक्षा और अधिकार मुहैया कराने के दावों के बावजूद एक लड़की कहीं भी खुद को सुरक्षित नहीं पाती।