वोट बैंक के चलते असम की तरह बंगाल में घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन नहीं खड़ा हुआ
1980 में असम के मंगलदोई संसदीय क्षेत्र में जब मुस्लिम मतदाताओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि दिखाई पड़ी, तब असम साहित्य परिषद के मार्गदर्शन में घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन चला। बाध्य होकर केंद्र सरकार को असम के लोगों के साथ समझौता करना पड़ा। इस समझौते के बाद भी घुसपैठियों को निकालने का काम नहीं हो पाया। आज असम के 27 जिलों में से नौ जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं। उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण वहां राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) तो गया, पर अभी भी वह आधा अधूरा है। चूंकि असम जाग गया है इसलिए कोई न कोई रास्ता तो निकलेगा ही। असम में जब घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ तो घुसपैठियों ने अपने लिए सबसे सुरक्षित बंगाल को अपनी शरणस्थली बनाया। 1961-71 और 1971-81 में बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 30 प्रतिशत से नीचे थी, जो 1981-91 में अचानक बढ़कर लगभग 37 प्रतिशत हो गई। सवाल यह है कि असम की तरह बंगाल में घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन क्यों नहीं खड़ा हुआ? इसका एक ही उत्तर है कि बंगाल में सत्ता या विपक्ष में बैठे दल-कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और कम्युनिस्ट न केवल घुसपैठियों को अपना वोट बैंक मान बैठे थे, बल्कि उन्हेंं संरक्षण भी देते थे। जुलाई 1998 में महाराष्ट्र पुलिस बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर ट्रेन से हावड़ा जा रही थी, ताकि उन्हेंं वापस बांग्लादेश भेजा जा सके, लेकिन हावड़ा स्टेशन से कुछ पहले ही कम्युनिस्ट नेताओं की अगुआई में हजारों की भीड़ ने उन्हेंं महाराष्ट्र पुलिस से छुड़ाकर भगा दिया।
विभाजन का दंश झेल चुका बंगाल घुसपैठ की साजिश की अनदेखी कर रहा
विभाजन का दंश झेल चुका बंगाल घुसपैठ की साजिश की कैसी अनदेखी कर रहा है, इसका प्रमाण है इस राज्य का मालदा जिला। विभाजन के बाद 1951 में मालदा में मुस्लिम 36.97 प्रतिशत थे, पर 1961 में वे बढ़कर 46.18 प्रतिशत हो गए। यानी मात्र 10 वर्ष में नौ प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई। आज यह मुस्लिम बहुल जिला है। मालदा की तरह मुर्शिदाबाद भी मुस्लिम बहुल है। पिछली जनगणना में उत्तरी दिनाजपुर भी मुस्लिम बहुल होने के करीब था। अब वह हो भी गया होगा। बंगाल में मुर्शिदाबाद के अलावा कोलकाता, हावड़ा और वीरभूम जिले में भी विगत पांच दशकों में मुस्लिम जनसंख्या आठ से दस प्रतिशत बढ़ी है।
बंगाल के 341 सबडिवीजन में से 66 मुस्लिम बहुल हैं
बंगाल के 341 सबडिवीजन में से 66 मुस्लिम बहुल हैं। 2001 में यह संख्या 59 थी। यानी एक दशक में सात मुस्लिम बहुल सबडिवीजन बढ़े। विगत जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि एक दशक में प्रदेश के 341 सबडिवीजन में से 148 में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर हिंदुओं की तुलना में दो से पांच गुना है। विगत जनगणना में राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम एक प्रतिशत के करीब बढ़े, पर बंगाल के 24 सबडिवीजन में ये तीन से पांच प्रतिशत तक बढ़े। इन 24 में से 11 सबडिवीजन केवल दक्षिण 24 परगना जिले के हैं। राज्य में हिंदुओं की तुलना में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर दो गुना थी। अगर ऐसा ही चलता रहा तो बंगाल को पुन: विभाजन झेलना पड़ सकता है। कश्मीर घाटी की तरह बंगाल से भी हिंदुओं का पलायन हो रहा है।
बंगाल में 35 लाख से अधिक हिंदुओं का पलायन हुआ
शहरीकरण के इस दौर में कोलकाता में विगत जनगणना में हिंदू जनसंख्या बढ़ने के बदले एक लाख 12 हजार घटी। राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर भले 17 प्रतिशत से ऊपर रही हो, पर बंगाल में यह 10 प्रतिशत के करीब थी। राज्य के 27 सबडिवीजन में तो यह सात प्रतिशत से भी कम थी। अगर राष्ट्रीय स्तर पर हुए हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर को आधार माना जाए तो राज्य में 35 लाख से अधिक हिंदुओं का पलायन हुआ है।
बंगाल की अराजक और हिंसक राजनीति ने विकास को बुरी तरह से प्रभावित किया
बंगाल की अराजक और हिंसक राजनीति ने राज्य के विकास को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है। असुरक्षा और रोजगार के अभाव में भी लोग पलायन को बाध्य हुए हैं। चूंकि असम के साथ बंगाल के भी विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, इसलिए विदेशी घुसपैठ और एनआरसी के चुनावी मुद्दा बनने के आसार हैं। एक तरफ कम्युनिस्ट दल, कांग्रेस और ममता की पार्टी घुसपैठ को नकार रही है तो दूसरी तरफ भाजपा घुसपैठियों को राज्य से बाहर निकालने की बात कर रही है। चुनाव पूर्व ही तृणमूल और भाजपा के बीच हिंसक संघर्ष शुरू हो गए हैं। असम और बंगाल के चुनाव साथ-साथ होने के चलते दोनों राज्यों के चुनावी मुद्दे घुसपैठ तो होने ही चाहिए। इसके साथ ही इसका भी ध्यान रखा जाए कि हिंदू पलायन का मुद्दा छूटे नहीं।