भारत का इकबाल बहाल हुआ : बदलती छवि ने दूसरे देशों के नजरिए पर भी डाला असर, पर बाधाएं तो अब भी बाकी
आयात-निर्यात में भारी अंतर होने से तेजी से घट रहा है।जहां अपेक्षाकृत स्थिति स्थिर है।
यदि केंद्र में मोदी सरकार के आठ वर्षों की उपलब्धियों को कूतना हो, तो इसे एक वाक्य में ऐसे कहा जा सकता है- मोदी सरकार ने 96 माह के अल्पकाल में भारत के इकबाल को विश्व में स्थापित किया है। इस दौरान भारत न केवल सामान्य नागरिकों के लिए जमीनी स्तर पर बदला है, अपितु उसके प्रति शेष विश्व की दृष्टि में भी सम्मानजनक परिवर्तन आया है। दुनिया में अब कोई देश भारत को हल्के में लेने की गलती नहीं कर रहा। मई, 2014 से पहले अधिकांश विदेशी सकारात्मक रूप से भारत को केवल गांधीजी और ताजमहल के कारण ही जानते थे।
किंतु अब देश की पहचान के साथ प्राचीन योग साधना और आयुर्वेद भी जुड़ गया है। गरीबी में वैश्विक महामारी कोरोना का आना 'कोढ़ में खुजली' जैसा है। इन दोनों मोर्चों पर भारत सफलतापूर्वक लड़ा है। स्वदेशी वैक्सीन का निर्माण इसका जीवंत प्रमाण है। विगत अप्रैल में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2011 में गरीबों की संख्या 22.5 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2019 में घटकर 10.2 प्रतिशत रह गई अर्थात आधी हो गई।
आईएमएफ के अनुसार, भारत में अप्रत्याशित गरीबी का लगभग उन्मूलन ही हो गया है। 138 करोड़ की आबादी का 10.2 प्रतिशत लगभग 14 करोड़ बनता है, जोकि एक बड़ी संख्या है। मोदी सरकार से पहले आधारभूत विकास कार्यों को लेकर देश में क्या स्थिति थी, यह वर्ष 2010 के दिल्ली कॉमनवेल्थ खेल के आयोजन से स्पष्ट है, जिसमें खिलाड़ियों के लिए कुछ हजार घरों के निर्माण, मुख्य स्टेडियम के जीर्णोद्धार आदि में न केवल जमकर भ्रष्टाचार हुआ था, बल्कि उनकी गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिह्न लग गया था।
इस कारण विश्व भर में भारत उपहास का पात्र भी बन गया था। इस पृष्ठभूमि में मोदी सरकार की बात करें, तो अप्रैल, 2014 तक राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई 91,287 किलोमीटर थी, जो दिसंबर, 2021 में बढ़कर 1,41,000 किलोमीटर हो गई है- अर्थात साढ़े सात वर्षों में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी। क्या अरबों रुपयों की लागत से बने इन राष्ट्रीय राजमार्गों के साथ नए संसद भवन का निर्माण और हाल ही में बने 'प्रधानमंत्री संग्रहालय' आदि में किसी प्रकार की घूसखोरी का आरोप लगा और उनकी गुणवत्ता पर सवाल उठा?
मोदी सरकार संभवत: स्वतंत्र भारत की पहली ऐसी सरकार है, जिसका शीर्ष नेतृत्व और मंत्री-सचिव स्तर भ्रष्टाचार रूपी दीमक से मुक्त है। यही नहीं, पहले की तुलना में लाभार्थियों तक एक-एक पैसा पहुंच रहा है। जनधन योजना के अंतर्गत, मोदी सरकार ने 45 करोड़ से अधिक खाताधारकों के खाते में सब्सिडी या अन्य किसी केंद्रीय वित्तीय सहायता के रूप में एक लाख 67 हजार करोड़ रुपये, तो 11 करोड़ किसानों के खातों में 'प्रधानमंत्री किसान सम्मान-निधि योजना' के अंतर्गत एक लाख 82 हजार करोड़ रुपये सीधे हस्तांतरित किए हैं।
वैश्विक कूटनीति में भी भारत को लेकर दुनिया के दृष्टिकोण में आमूलचूल मौलिक परिवर्तन आया है। यह भारतीय नेतृत्व द्वारा रूस-यूक्रेन युद्ध और मानवाधिकारों को लेकर अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों के 'धौंसपन' से निपटने और सोवियत कालखंड से मित्र देश रूस के साथ खड़े रहने से स्पष्ट है। जब बीते दिनों दिल्ली में 'रायसीना डायलॉग 2022' का आयोजन हुआ, तब भारतीय विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने जो कहा, उससे नए भारत की तस्वीर बयां होती है।
उनके अनुसार, '...भारत अपनी शर्तों पर दुनिया से संबंध निभाएगा और इसमें भारत को किसी की सलाह की आवश्यकता नहीं... दुनिया हमारे बारे में बताए और हम दुनिया से अनुमति लें, वह दौर खत्म हो चुका है...।' राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर भी वर्तमान मोदी सरकार अपने पूर्ववर्तियों पर बीस है। चाहे चीन की गीदड़ भभकियां हो या फिर इस्लामी पाकिस्तान के वैचारिक-राजनीतिक अधिष्ठान द्वारा भारत को 'हजार घाव देकर मौत के घाट' उतारने का संकल्प- इन सबका भी मोदी सरकार ने मुंहतोड़ जवाब दिया है।
यह सितंबर, 2016 और फरवरी, 2019 के सर्जिकल स्ट्राइक और चीन के साथ वर्ष 2017 में डोकलाम घटनाक्रम, तो 2020-21 के गलवान प्रकरण से स्पष्ट है। सामरिक रणनीति और क्रियाकलापों से समस्त विश्व में भारत ने संदेश दिया है कि वह अपनी सुरक्षा, एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा हेतु किसी भी हद तक जा सकता है। भारत की इन उपलब्धियों से दो प्रकार के लोगों/वर्गों में बौखलाहट दिख रही है। इसमें जहां भारत के कुटिल पड़ोसियों (पाकिस्तान, चीन सहित) के साथ भारत-विरोधी शक्तियां (इंजीलवादी सहित) शामिल हैं, तो उन्हें देश के भीतर स्वघोषित सेक्यूलरवादियों, वामपंथियों, स्वयंभू उदारवादियों और मजहबी कट्टरपंथियों से प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन मिल रहा है।
यही कारण है कि वे अपनी झुंझलाहट देश-दुनिया में भारत को 'असहिष्णु' घोषित करके और 'लोकतंत्र पर खतरा', 'मुस्लिमों पर अत्याचार','सांविधानिक स्वायत्तता पर हमला' जैसे जुमलों को उछालकर निकाल रहे हैं। सच तो यह है कि देश में व्यक्तिगत-वैचारिक कारणों से होने वाला प्रधानमंत्री मोदी विरोध, बीते आठ वर्षों में भारत विरोध में परिवर्तित हो गया है। कोरोना और रूस-यूक्रेन युद्ध से शेष विश्व की क्या स्थिति है? अमेरिका में असंतुलित मांग-आपूर्ति होने से मुद्रास्फीति 40 वर्ष के रिकॉर्ड स्तर पर है। कई यूरोपीय देशों में महंगाई बेलगाम हैं।
चीन कोविड-19 संक्रमण फैलने के कारण फिर से संकट में है। पाकिस्तान की आर्थिकी दयनीय है। श्रीलंका दिवालिया हो चुका है, जो भारत की वित्तीय-खाद्य सहायता पर निर्भर है, तो तालिबानी राज में भुखमरी के शिकार अफगानिस्तान को भारत ने भारी मात्रा में अनाज दिया है। बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार भी आयात-निर्यात में भारी अंतर होने से तेजी से घट रहा है।जहां अपेक्षाकृत स्थिति स्थिर है।
सोर्स: अमर उजाला