भारत की कूटनीतिक जीत

लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत को जबर्दस्त कूटनीतिक सफलता मिली है। जब दो साल से अधिक समय से चल रहे गतिरोध के बीच चीन को गोगरा हॉट स्प्रिंग से अपनी सेना को पीछे हटाने को मजबूर होना पड़ा। यह कूटनीतिक सफलता अपने आप में ऐतिहासिक है। क्योंकि यह वही चीनी सेना है

Update: 2022-09-10 04:15 GMT

आदित्य चोपड़ा; लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत को जबर्दस्त कूटनीतिक सफलता मिली है। जब दो साल से अधिक समय से चल रहे गतिरोध के बीच चीन को गोगरा हॉट स्प्रिंग से अपनी सेना को पीछे हटाने को मजबूर होना पड़ा। यह कूटनीतिक सफलता अपने आप में ऐतिहासिक है। क्योंकि यह वही चीनी सेना है जो पिछले दो सालों से पूर्वी लद्दाख में डटी हुई थी और चीन किसी भी हालत में पीछे हटने को तैयार नहीं। जब गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर्त्तव्यपथ का उद्घाटन कर रहे थे उसी समय संवाद समितियों की फ्लैश न्यूज कि चीनी सेनाओं ने पूर्वी लद्दाख के गोगरा हॉट स्प्रिंग के पैट्रोलियम प्वाइंट (पीपी-15) क्षेत्र से पीछे हटना शुरू कर दिया है। इस खबर ने हर देशवासी को खुशी और गौरव से लबालब कर दिया। इस खबर ने भारत के सम्मान और मस्तक को ऊंचा कर दिया। ऐसा पहली बार हुआ है जब चीन को भारत से मात खानी पड़ी है। ड्रैगन को अपने कदम पीछे खींचने पड़े हैं। भारत किसी भी राष्ट्र को झुकाने में विश्वास नहीं करता बल्कि भारत का लक्ष्य यही रहा कि भारत-चीन सीमा पर शांति और स्थिरता बनी रहे। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जिस तरह का प्रतिरोध ​भारतीय सेना ने चीनी फौजियों के सामने दिखाया उससे ड्रैगन हतप्रभ रह गया। चीन ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि भारत इस तरह का प्रतिरोध दिखा सकता है। एलएसी पर चीन के आक्रामक रवैये भारत ने सेना की आप्रेशनल तैयारी और अपनी रणनीतिक योजना से लगातार नियंत्रित किया। पिछले दो सालों में गलबान घाटी में संघर्ष के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत-चीन दोनों के ही करीब पचास हजार से ज्यादा सैनिक मौजूद रहे। गलबान घाटी में हमारे जवानों ने अपनी शहादत देने से पहले चीनी जवानों की गर्दन मरोड़ कर उन्हें यमलोक पहुंचा दिया था। भारत की पहली प्राथमिकता रही कि वह बातचीत से मसले को सुलझाना चाहता है। इस दौरान बातचीत होती रही। इससे पहले फरवरी 2021 में चीन को पैगोंग झील इलाके से हटना पड़ा था। अगस्त 2021 में दूसरे चरण में चीनी सैनिकों की वापसी हुई। तनाव के बीच सोहलवें दौर की बातचीत के बाद चीन ने अड़ियल रुख छोड़ा। विदश मंत्री एस. जयशंकर लगातार इस बात को दोहराते रहे हैं कि भारत और चीन के बीच संबंध तभी सामान्य होंगे जब सीमा पर स्थिति सामान्य होगी। विदेश मंत्री स्पष्ट रूप से यह कहने में कोई परहेज नहीं कर रहे थे कि दोनों देशों के संबंध सबसे खराब दौर में चल रहे हैं। सीमा पर तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से कुछ मौकों पर वर्चुअल आमना-सामना होता रहा। अब दोनों की मुलाकात उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयाेग संगठन के वार्षिक शिखर सम्मेलन में होने जा रही है। इस बैठक से एक सप्ताह पहले चीन ने हॉट स्प्रिंग से अपनी फौज हटाने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शी जिनपिंग से मुलाकात नवम्बर के मध्य में होने की उम्मीद है जब दोनों नेता जी-20 देशों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए इंडोनेशिया पहुंचेंगे। इसी साल मार्च में चीन के विदेश मंत्री वांग यी जब भारत दौरे पर आए थे तो भारत ने बड़े बेमन से उनकी मेजबानी की थी और साथ ही कड़ा संदेश भी दिया था कि भारत सीमा को उचित स्थान पर रखने और संबंधों को बहाल करने की चीन की मांग को कभी स्वीकार नहीं करेगा। भारत ने भी चीन के खिलाफ सीमा पर बड़ी तैयारी कर ली थी। लद्दाख में चीन से लगी सीमा पर राफेल लड़ाकू विमान तैनात कर दिए थे जो हर समय उड़ान भरकर निगरानी करते रहते थे। अरुणाचल में भारत ने अपनी फौजें बढ़ा दी थीं और चीन सीमा पर 23 किलोमीटर दूर से निशाना लगाने होवित्जर तोपें तैनात कर दी थीं, ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति से तुरंत निपटा जा सके। ऐसी खबरें भी आती रही हैं कि चीन भारत से सटी सीमा पर काफी तैयारियां कर रहा है। दरअसल 1962 युद्ध के बाद भारत चीन की हरकतों को बर्दाश्त करता रहा है और चीन लगातार घुसपैठ की हिमाकत करता रहा है, लेकिन आज का भारत 1962 वाला भारत नहीं है। आज भारत के पास सामर्थ्य है कि वह चीन को मुंहतोड़ जवाब दे सकता है। खास बात यह है ​िक सीमा पर तनाव के बावजूद भारत-चीन व्यापार बढ़ा है। दोनों देशों के आर्थिक रिश्ते बहुत अहम हैं। संपादकीय :भारत-बांग्लादेश के सम्बन्ध और मधुर हुएमहापुरुष को नमनआजाद भारत का गौरवनीतीश बाबू और विपक्षी एकतानेजल वैक्सीन : एक बड़ी उपलब्धिशाखाएं शुरू ... अपनी सेहत की जिम्मेदारी आपकीयद्यपि चीन से हमेशा आयात निर्यात से कहीं ज्यादा है, लेकिन भारत की स्थिति फायदे वाली इसलिए है क्योंकि चीन को एशिया में भारत जैसा बड़ा बाजार और कहीं नहीं ​मिलेगा। यूक्रेन पर रूस हमले के बाद भी भारत, चीन और रूस एक पाले में नजर आए। अमरीकी दबाव के बावजूद भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर रूस के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा। भारत रूस में इस समय युद्धाभ्यास में शामिल हुआ जिस में चीन की फौजें भी शामिल हैं। हालांकि चीन के इरादों पर विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि देपसांग में अभी भी चीन की फौजें कब्जा जमाए बैठी हैं। कहते हैं झुक गया चीन झुकाने वाला चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की कुशल रणनीति से चीन झुक तो गया। उम्मीद की जा रही है कि दोनों देशों में बातचीत होती रहेगी और चीन विवादित इलाकों से अपनी फौजें हटाने को राजी हो जाएगा। 

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