भारतीय मानक समय: सरकारों में वैज्ञानिक सोच की कमी

वैज्ञानिक सोच की कमी

Update: 2021-06-06 16:43 GMT

सुषमा गजापुरे 'सुदिव'.जैसा कि हम जानते हैं, हमारे शरीर की जैविक घड़ियां मानव द्वारा बनाए गए समय के मानकों से नहीं बंधी होती हैं। दरअसल शरीर की जैविक घड़ियां प्राकृतिक सूर्योदय और सूर्यास्त से जुड़ी या बंधी होती हैं, न कि हमारे द्वारा स्थापित मानक समयों के द्वारा। विश्व के हर देश में स्थापित मानक-समय वहां के सूर्योदय और सूर्यास्त की वस्तु स्थिति से निर्धारित होते हैं। भारत में इस विषय में कई अपवाद हैं जो कि एक तरह से हमारे द्वारा स्थापित मान्यताओं को न केवल खारिज करते हैं, बल्कि हमारे लिए एक विषम स्थिति का निर्माण भी करते हैं। भारत जैसे बड़े देश में एक 'मानक-समय' का होना न केवल ऊर्जा का क्षय बल्कि कीमती संसाधनों की हानि और कहीं न कहीं हमारी सरकारों में वैज्ञानिक सोच की कमी को भी उजागर करता हैं। आइए, हम इस विषय को थोड़ा विस्तृत रूप से जानने का प्रयास करते हैं।

यह एक सर्वविदित सत्य है कि समय का हम सबके जीवन में विशेष महत्व है क्योंकि हमारे सभी नित्य क्रियाकलाप और गतिविधियां समय से बंधी हुई हैं। प्राचीन काल में केवल सूर्य और चंद्रमा के उदय और अस्त होने से ही समय की गणना की जाती थी। जिसका बहुत बड़ा उदाहरण जयपुर की जंतर-मंतर वेधशाला है, जिसे वहां के राजा जयसिंह ने बनवाया था। जो स्वयं एक बहुत बड़े खगोलशास्त्री थे। इसमें बनाए हुए सूर्य-यंत्र उस काल के लोगों को अचूक स्थानीय समय दिखाते थे और आज भी समय की गणना में वे उतने ही सक्षम हैं। किंतु सभ्यता के विकास के साथ समय भी बदला, वैज्ञानिक घड़ियां विकसित हुईं और समय के लिए भी एक निश्चित पैमाना बनाने की आवश्यकता हुई, जिससे सबको समय-गणना के लिए सुविधा हो और जिसमें एकरूपता हो। उसी क्रम में 'भारतीय मानक समय' जिसे 'इंडियन स्टैंडर्ड टाइम' (आईएसटी) भी कहा जाता है, यह भारत देश के लिए किया गया, एक समय-निर्धारण है। यह एक तरह से समस्त भारत के लिए समय-अनुशासन या समय-एकरूपता है।
भारत में भारतीय मानक समय 1 सितंबर 1947 को घोषित किया गया था जो कि ग्रीनविच स्टैंडर्ड टाइम से साढ़े पांच (+5.30) घंटे आगे था। 'ग्रीनविच' ब्रिटेन में एक स्थान है जिसे शून्य अथवा 'जीरो लॉन्गीट्यूड' (देशांतर) के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारत में संपूर्ण वर्ष केवल एक ही समय-प्रणाली उपयोग में लाई जाती है। 'डे-लाइट सेविंग्स' टाइम (डीएसटी) जिसे 'दिवालोक बचत समय' भी कह सकते हैं, का उपयोग समय-निर्धारण प्रणाली में हमारे देश में नहीं होता है।
डे-लाइट सेविंग्स टाइम (डीएसटी) 'दिवालोक बचत समय' प्रणाली में एक प्रथा का पालन किया जाता है जिसके अंतर्गत सुबह जल्दी होने वाली रौशनी का लाभ उठाने के लिए ग्रीष्म ऋतु में घड़ियों को एक प्रशासनिक आदेश के द्वारा 1 घंटा आगे कर दिया जाता है। इससे पूरे देश में दिनचर्या एक घंटा पहले प्रारंभ हो जाती है तथा रात को बिजली का प्रयोग एक घंटा कम हो जाता है, जिससे ऊर्जा की बहुत बचत होती है। इसी तरह सर्दियों में भी एक प्रशासनिक आदेश के द्वारा घड़ियों को 1 घंटा पीछे कर दिया जाता है जिसे हम एक मानक-समय भी बोल सकते हैं। यहां पर आपके लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि दिवालोक बचत समय; (डीएसटी) का उपयोग प्रतिबंधित रूप से अल्प समय के लिए भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान युद्धों के दौरान किया गया था।
आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि मानक समय या किसी देश अथवा स्थान का स्टैंडर्ड टाइम क्या होता है? यह वह समय है जो किसी भी देश, स्थान अथवा विस्तृत भू-भाग के लोगों के दैनिक व्यवहार के लिए सरकार या व्यवस्था के द्वारा स्वीकृत होता है। ये किसी देश के लिए एक स्थानीय माध्यिका समय भी हो सकता है इसीलिए इसे 'स्थानीय समय' भी कह सकते हैं। स्थानीय समय उस स्थान की आवश्यकताओं को तो पूर्ण कर सकता है लेकिन वह समस्त भू-भाग का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। उसके लिए एक 'मानक समय' ही यथोचित समय-प्रणाली है। मानक समय का उपयोग यातायात संचालन में, ऑफिस अथवा बाजार के समय निर्धारण में तथा अन्य कई कार्य-क्षेत्रों में दिन-प्रतिदिन किया जाता है। जैसे कि ऊपर बताया गया है कि भारत का मानक समय ब्रिटेन में ग्रीनविच से साढ़े पांच घंटे पूर्व की ओर आगे है। भारत का देशांतर (लॉन्गीट्यूड) ग्रीनविच्च से 82.5 डिग्री पूर्व की ओर है और भारत के मानक समय की रेखा इलाहाबाद के नजदीक नैनी से होकर गुजरती है।
पाठकों को यह बात रुचिकर लगेगी कि दरअसल हमारा भारतवर्ष समय-निर्धारण के विज्ञान में प्राचीन काल में बहुत ही अग्रणी रहा है तथा चौथी ईसवी में सूर्य सिद्धांत में इस बात का विस्तृत विवरण दिया गया है। उसमें पृथ्वी को गोलाकार माना गया था, जो कि बिलकुल सही था तथा प्रधान भूमध्य रेखा अवंतिका (उज्जैन का प्राचीन नाम) से 23°11'उत्तर, 75°45'पूर्व से रोहिताका (रोहतक का पूर्व नाम) 28°54'उत्तर, 76°38' पूर्व से होकर गुजरती थी।
आधुनिक युग में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में 1792 में 'मद्रास वेधशाला' का निर्माण किया था। 1802 में मद्रास का देशांतर 13°5'24"उत्तर, 80°18'30"पूर्व रखा गया जो कि जीएमटी से 5 घंटे 30 मिनट आगे है। मद्रास (चैनई) में ही पहली बार किसी समय क्षेत्र का प्रयोग किया गया था। एक और मुख्य बदलाव तब देखने को आया जब 1850 में रेलवे द्वारा संयुक्त समय को अपनाना जरूरी हो गया था। यहां पर दो विशिष्ट समय- 'बम्बई मानक-समय' और 'कलकत्ता मानक-समय' निर्धारित किए गए। बम्बई मानक-समय, ब्रिटिश समय से 4 घंटे 51 मिनट आगे था तथा कलकत्ता मानक-समय साढ़े पांच घंटे आगे था।
1880 में ही भारतीय-रेलवे द्वारा 'मद्रास टाइम-टेबल' की शुरुआत हुई जो कि कलकत्ता और बम्बई के समय के बीच का समय था तथा उसको प्रशासनिक आदेश द्वारा सबके लिए मान्य किया गया था। 1947 में भारत सरकार ने नए मानक समय का नए रूप में निर्धारण किया जो कि ग्रीनविच से 82.5 डिग्री पूर्व नैनी (इलाहाबाद) की ओर है। इसी कारण से सरकार द्वारा केंद्रीय वेधशाला को मद्रास से मिर्जापुर जो कि इलाहाबाद के नजदीक है वहां पर स्थानांतरित किया गया था। हालांकि यह भी जानना जरूरी होगा कि आजादी के बाद भी वर्ष 1955 तक कलकत्ता और बम्बई को अप पुराने समय को बनाए रखने की इजाजत मिली हुई थी।
भारत में एक ही मानक समय से होने वाली समस्याएं
भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से एक बहुत ही विशाल देश है। पूर्व से पश्चिम की दूरी लगभग 2933 किलोमीटर है तथा इसकी वजह से पूर्व और पश्चिम में सूर्य के उदय होने में 2 घंटे का अंतर है। इसका तात्पर्य ये हुआ कि भारत के पूर्व स्थानों में सूर्योदय और सूर्यास्त 2 घंटे पहले हो जाते हैं और इसीलिए उत्तर-पूर्व के राज्यों को अपनी घड़ियां 2 घंटे आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि ऊर्जा का क्षय न हो। इसी वजह से उत्तर पूर्व में ऊर्जा के उपयोग में बहुत हानि होती है और लोगों की जैविक घड़ी भी अस्त-व्यस्त हो जाती है। औद्योगिक और दैनिक जीवन में इसका बहुत ही विपरीत प्रभाव पड़ता है। 1980 में एक सरकार द्वारा गठित विशेष समिति ने भारत को दो अथवा तीन समय-मंडलों (टाइम जोन) में विभाजित करने का सुझाव दिया था। लेकिन इस सुझाव को समय-समय पर तत्कालीन सरकारों के द्वारा नकारा जाता रहा है जो कि बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। यह एक प्रकार से सरकारों का गैर-वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। 2014 में भी उत्तर-पूर्व से अलग समय-मंडल की मांग की गई थी लेकिन सरकार ने इसे भी मंजूरी नहीं दी थी। इस कारण कई बार वहां के लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
समय-निर्धारण
भारत का सही समय राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, दिल्ली के द्वारा निर्धारित किया जाता है और यह संकेत परमाणु घड़ियों पर आधारित है जो कि 'सार्वभौमिक समन्वित समय' (कोऑर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम) पर आधारित है। भारतीय मानक समय ठीक समय पर विभिन्न कार्यक्षेत्रों को बता दिया जाता है तथा आकाशवाणी और दूरदर्शन इसी समय का पालन करते हैं और श्रोताओं और दर्शकों को इस बारे में प्रतिदिन समय-समय पर सूचित करते रहते हैं ताकि लोग अपनी घड़ियां उनसे मिला सकें। इसी तरह समय द्वारा हम अनुशासित रहते हैं और यही मानक-समय हमारे दैनिक जीवन को सुचारू रूप से संचालित कर रहा है।
जिस तरह सूर्यास्त और सूर्योदय विभिन्न स्थानों पर विभिन्न समय पर होते हैं उसी अनुसार मानक-समय का निर्धारण भी होना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है। समय के साथ हमें अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण में आगे बढ़कर वैश्विक स्तर पर स्वयं को अपडेट रखना चाहिए। (लेखिका आर्थिक और समसामयिक विषयों पर चिंतक और विचारक हैं।)


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