तो क्या यह कम चमत्कारिक बात कि ट्रंप के सवा सात करोड़ भक्तों के मुकाबले आठ करोड़ से अधिक अमेरिकियों ने करो-मरो के अंदाज में वोट डालने का फैसला किया और झूठे-पागल ट्रंप को हराने के निश्चय में वह जनादेश दिया, जिसकी कल्पना किसी को नहीं थी। निश्चित ही इससे एक तस्वीर यह बनती है कि अमेरिका बुरी तरह विभाजित देश है। एक तरफ ट्रंप का झंडा लिए संसद पर हमला करते हुए लोग तो दूसरी और ट्रंप सेना को हराने के लिए एकजुट हुए आठ करोड़ लोग! गृहयुद्ध की यह तस्वीर खौफनाक है। बहुतों को आशंका है कि ट्रंप और उनके भक्त आगे लड़ेंगे, वे बाइडेन प्रशासन को काम नहीं करने देंगे। नफरत की आग फैलेगी और अमेरिका बरबाद होगा।
मगर इसे बूझते-समझते हुए ही तो अमेरिकी लोकतंत्र, उसकी संस्थाओं, उसके सार्वभौम नागरिकों ने डोनाल्ड ट्रंप से मुक्ति पाई। क्या भारत में हम लोग, हमारा लोकतंत्र, लोकतंत्र की संस्थाएं अमेरिकी फैसले और सत्ता परिवर्तन का अर्थ समझ सकते हैं? अमेरिकी गोरों ने मुसलमानों, दूसरे धर्मों-नस्लों-अश्वेतों से अमेरिका को बचाते हुए वापिस विश्वगुरू बनने के झांसे, झूठ में डोनाल्ड ट्रंप को भगवान माना। वैसे ही जैसे भारत में भक्त हिंदुओं ने नरेंद्र मोदी को माना हुआ है। उस नाते राजनीति के लगभग सभी नुस्खों में डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी राम मिलाई जोड़ी हैं। दोनों ने अपने भाषणों, सोशल मीडिया प्रोपेगेंडा से भयाकुल लोगों में यह भक्ति बनाई है कि वे उन्हे बचाएंगे, वे छप्पन इंची छाती लिए हुए हैं, वे विश्व नेता हैं, दुनिया उनसे कंपकंपाती है, दुश्मन उनसे खौफ खाते हैं। वे वाशिंगटन-दिल्ली के पुराने चेहरों, सत्ता प्रतिष्ठानों के भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद आदि से मुक्ति दिलाएंगे। ट्रंप कैथोलिक ईसाई राज में अमेरिका को ढालने का भक्तों में विश्वास बनवाए हुए थे तो नरेंद्र मोदी से हिंदू राज का रामराज्य है ही!
मगर सलाम अमेरिका को! अमेरिका के संविधान और उसकी व्यवस्थाओं को! सलाम वहां की संसद को, वहां के सुप्रीम कोर्ट को, वहां के मीडिया को, वहां की बुद्धि और नागरिकों की जन चेतना को!
इस सबके पीछे है नस्ल-कौम की बुद्धि का आजादख्याली में निडर हो कर सोचना-विचारना-उड़ना! तभी नागरिकों की सार्वभौमता में नागरिक फैसले से निर्वाचित राष्ट्रपति के नाते डोनाल्ड ट्रंप का पूरा मान-सम्मान तो अमेरिकी मीडिया, सुप्रीम कोर्ट, संसद सब अपनी-अपनी सत्यनिष्ठ बुद्धि में स्वतंत्र व्यवहार करते हुए भी। कमाल देखिए वहां के सुप्रीम कोर्ट, अदालतों का व्यवहार जो ट्रंप प्रशासन से जजों की सीधी नियुक्ति के बावजूद किसी जज ने, किसी अदालत ने ट्रंप के इस झूठ को नहीं माना कि चुनाव में फलां-फलां जगह धांधली हुई तो अदालत हस्तक्षेप करे। न ही अदालत ने अश्वेत आंदोलन जैसे सिविल आंदोलनों में जबरदस्ती सरकार की तरफ से पंचायत कर आंदोलन खत्म करवाने का फर्जीवाड़ा रचा। और तो और प्रशासन याकि कैबिनेट में भी चार साल की अवधि में असंख्य मंत्री ऐसे हुए, जिन्होंने ट्रंप की मूर्खता-झूठ-गलत फैसलों के विरोध में इस्तीफे दिए। सरकार से नाता तोड़ा! संसद में ट्रंप के खिलाफ महाअभियोग चला। अमेरिका की सीबीआई या ईडी आदि एजेंसियों ने ट्रंप के कहने से विरोधियों के खिलाफ जांच कम की उलटे वहां के आयकर विभाग, एफडीआई जैसी जांच एजेंसियों ने ट्रंप की जांच-पड़ताल अधिक की।
मतलब चार साल लगातार जिंदादिल लोकतंत्र और बुद्धिमना राष्ट्र के नाते ट्रंप प्रशासन बेखटके राज करता रहा, उनके चाहे जो फैसले की मान्यता रही तो संसद, सुप्रीम कोर्ट, मीडिया और नागरिक समाज सब अपने-अपने अधिकार में स्वतंत्र व्यवहार में काम करते हुए थे। मीडिया ने लगातार नागरिकों को सूचना दी कि ट्रंप कितना झूठ बोल रहे हैं और कितना सत्य! डोनाल्ड ट्रंप ने सबको दुश्मन करार दे कर अपने भक्तों की फौज बनाई और देश को गृहयुद्ध के कगार पर ले आए लेकिन हर राज्य, हर जिले के अलग-अलग चुनाव आयोग, कमेटी, प्रदेश पदाधिकारियों को मैनेज नहीं कर पाए कि वे उनके पिठ्ठू रहें और चुनाव वैसे हो जैसे वे चाहते हैं। हां, इस सत्य को भी नोट रखें कि खुद डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी के मुख्यमंत्रियों, नियुक्त प्रशासकों ने चुनाव के दौरान उनकी नहीं सुनी और नतीजा वहीं घोषित किया जो सत्य था।
और आखिर में छह जनवरी 2021 के दिन का ही गौरतलब तथ्य कि संसद में रिपब्लिकन पार्टी के नेता व सीनेटर ने अपने मुंह कहा कि ट्रंप भक्तों ने जो किया वह कलंक है और हमारा कर्तव्य है जो हम सत्य बोलें और सत्य बताएं कि चुनाव जो बाइडेन जीते हैं। डोनाल्ड ट्रंप झूठे हैं। और नोट करें कि ट्रंप के उप राष्ट्रपति ने साझा संसद की अध्यक्षता करते हुए (ट्रंप के न चाहने और उन पर दबाव बनाने के सार्वजनिक आह्वान के बावजूद) अंत में खुद ऐलान किया- जो बाइडेन और कमला हैरिस जीते हैं।