भारत-रूस की अटूट दोस्ती
रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच विविधाओं में सहयोग के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये हैं जिनमें नौ दोनों सरकारों के बीच आपसी सहयोग के समझौते हैं।
रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच विविधाओं में सहयोग के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये हैं जिनमें नौ दोनों सरकारों के बीच आपसी सहयोग के समझौते हैं। इस हकीकत को भारत का बच्चा-बच्चा जानता है कि आजादी के बाद से ही रूस भारत का ऐसा सच्चा मित्र है जिसने हर बुरे वक्त में भारत का साथ दिया है और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर इसकी इज्जत बढ़ाने में अपनी सदाशयता का परिचय दिया है परन्तु 90 के दशक में सोवियत संघ के देशों में बिखर जाने के बाद भौगोलिक व राजनीतिक स्तर पर वैश्विक परिस्थितियों में बहुत अन्तर आ चुका है और आर्थिक भूमंडलीकरण के चलते दुनिया के विभिन्न देशों की वरीयताएं भी बदल गई हैं मगर इसके बावजूद भारत-रूस के बीच के प्रगाढ़ सम्बन्धों में कोई आधारभूत परिवर्तन नहीं आया है। वास्तविकता तो यह भी है कि पिछले दो दशकों के दौरान भारत व अमेरिका के बीच के सम्बन्धों में गुणात्मक परिवर्तन आने के बावजूद भारत के प्रति रूस के नजरिये में कोई बदलाव नहीं है हालांकि भारत-अमेरिका के बीच परमाणु करार होने के बाद दुनिया के बहुत से कूटनीतिज्ञों को लग रहा था कि इसका असर भारत-रूस सम्बन्धों पर पड़ सकता है परन्तु तब भारत की सरकार ने इन आशंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए रूस के साथ विभिन्न क्षेत्रों विशेषकर रक्षा के क्षेत्र में पहले की भांति परस्पर सहयोग को महत्ता देते हुए दुनिया को गलत साबित कर दिया। वर्तमान मोदी सरकार भी रूस के साथ भारत के सम्बन्धों को इस प्रकार महत्ता देती रही है कि सैनिक क्षेत्र में स्वावलम्बन प्राप्त करने में रूस का सहयोग निरन्तर जारी रह सके। बदले में रूस ने भी इस क्षेत्र में भारत को स्वावलम्बी बनाने के लिए पहले की तरह पूरा सहयोग देना जारी रखा और इस दायरे में कई संयुक्त परियोजनाओं को भारत में स्थापित करने में पहल की जिनमें ताजा उपक्रम उत्तर प्रदेश के अमेठी में ए-के-203 राइफल बनाने का है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि रूस ने भारत को रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी स्थानान्तरण करने में कभी हिचकिचाहट नहीं दिखाई है। इसने अमेरिका की तरह कभी भारत से 'एंड यूज' समझौता करने का प्रस्ताव नहीं रखा जो कि हथियारों के प्रयोग को लेकर होता है। भारत की सैन्य जरूरतों को देखते हुए रूस ने हमेशा से ही उसे अपने अत्याधुनिक हथियारों से लैस रखा जिनमें लड़ाकू विमानों से लेकर अन्य आयुध साम्रगी शामिल रही है। ब्लादिमीर की वर्तमान भारत यात्रा के सन्दर्भ में हमें दोनों देशों के रक्षा व विदेश मन्त्रियों के बीच होने वाली वार्ताओं पर भी ध्यान देना पड़ेगा और वैश्विक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इनका जायजा लेना पड़ेगा। रूसी रक्षामन्त्री के साथ अपनी बातचीत में भारत के रक्षामन्त्री राजनाथ सिंह ने जिस प्रकार परोक्ष रूप से पूर्वी लद्दाख के इलाके में चीन की सैनिक गतिविधियों का जिक्र किया है उसका मन्तव्य यही है कि रूस इस इलाके में शान्ति व अमन-चैन बनाये रखने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाये। निश्चित रूप से चीन की बदनीयती का मुकाबला करना भारत के लिए एक चुनौती है क्योंकि चीन इसका पड़ोसी देश है और उसकी विस्तारवादी भूख भरी हरकतों से शान्ति को खतरा बन सकता है लेकिन पुतिन ने प्रधानमन्त्री नरेन्द मोदी के साथ हुई बातचीत में यह स्पष्ट कर दिया कि वह भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वत्र शान्ति बनाये रखने के हक में इस तरह हैं कि अफगानिस्तान की धरती का उपयोग किसी भी रूप में आतंकवादी गतिविधियों को तरजीह देने में न हो सके और नशीले पदार्थों की तस्करी को भी बढ़ावा न मिल सके। आतंकवाद के वित्तीय पोषण की किसी भी गतिविधि को रोका जा सके और दुनिया को इस बुराई से बचाया जा सके जिसमें भारत के सहयोग की दरकार को भी उन्होंने स्वीकार किया। रूस से एस-400 मिसाइलें खरीदे जाने के बारे में रूसी विदेश मन्त्री ने स्पष्ट कर दिया कि भारत की सार्वभौमिकता या खुद मुख्तारी को अमेरिका समेत कोई भी देश कमतर करके नहीं आंक सकता क्योंकि अपनी रक्षा जरूरतों के बारे में फैसला करने का भारत को पूर्ण अधिकार है। उनके इस बयान से साफ होता है कि रूस शुरू से ही भारत के साथ बराबरी के आधार पर सम्बन्ध स्थापित करने के हक में रहा है। मगर सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पुतिन भारत की यात्रा पर कोरोना संक्रमण के उठते-गिरते दौर में तब आये हैं जबकि अमेरिका अफगानिस्तान से जा चुका है और इससे बने नये बहु-देशीय समीकरणों में दुनिया उलझ रही है और दूसरी तरफ चीन व अमेरिका के बीच हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र में सामरिक शक्ति सन्तुलन का खेल चल रहा है और तीसरी तरफ लद्दाख की सीमा पर भारत-चीन के बीच तनाव का वातावरण है। अतः रूस द्वारा भारत को दी जाने वाली एस-400 मिसाइलों के सैनिक महत्व को समझा जा सकता है जिस पर अमेरिका ने कड़ी आपत्ति की थी। यह याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि भारत के परमाणु कार्यकम से लेकर सैनिक साजो-सामान की टैक्नोलोजी हस्तगत करने में रूस की भूमिका रचनात्मक उत्प्रेरक की रही है। बदलते विश्व सन्दर्भों में दोनों देशों की यह अटूट दोस्ती विश्व शान्ति का सम्बल भी कही जा सकती है क्योंकि स्वयं पुतिन ने भारत को एक महाशक्ति के रूप में स्वीकार किया है जिसकी प्रतिध्वनि संभवतः बीजिंग (चीन) में भी सुनाई दी होगी।