अफगानिस्तान में भारत
अमेरिका ने अफगानिस्तान को तालिबानों के सहारे छोड़ कर जिस तरह का व्यवहार किया है
आदित्य चोपड़ा| अमेरिका ने अफगानिस्तान को तालिबानों के सहारे छोड़ कर जिस तरह का व्यवहार किया है उससे यही निष्कर्ष निकलता है कि यह देश अपने हित साधने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है। पिछले 20 साल से भी ज्यादा वक्त से अफगानिस्तान जिस प्रकार की अराजकता में जी रहा है उसके लिए एक सीमा तक पाकिस्तान और अमेरिका दोनों ही जिम्मेदार हैं। अमेरिका ने इस मुल्क में ही खुद ही तालिबानों को खड़ा किया और उन्हें हर तरह की इमदाद देकर तत्कालीन सोवियत संघ की फौजों से मुकाबला करने के लिए तैयार किया मगर जब इन तालिबानों ने अमेरिका को ही आंखें दिखानी शुरू कर दीं और न्यूयार्क में 11 सितम्बर 2001 को जब उसके वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को दहशत गर्द हमला करके गिरा दिया तो अमेरिका ने पाकिस्तान को अपने साथ रख कर अफगानिस्तान को बाकायदा अपने फौजी साये में लेने का कार्यक्रम चलाया। तब तक तालिबानों ने पूरे अफगनिस्तान को अपने मजहबी फतवों की सरकार के साये में ले लिया था। इसके बाद अमेरिका ने अपने पश्चिमी मित्र देशों की मदद से अफगानिस्तान में स्थानीय जनता के हाथ में शासन देने व इस देश के पुनर्निर्माण का शगूफा छोड़ा जिसे कुछ अन्य देशों का समर्थन भी मिला। मगर अफगानिस्तान में अमेरिका व मित्र देशों की सेना के बीच विभिन्न अफगानी ठिकानों पर कब्जा करने के लिए युद्ध चलता रहा और अफगानिस्तान समानान्तर रूप से बर्बाद भी होता रहा। इसके बाद ही इसके पुनर्निर्माण की योजनाएं उछाली गईं।