सरकार की ओर से जो संकेत मिल रहा था, उससे लोगों के मन में बड़ी आशाएं बंध रही थीं। लग रहा था सरकार शिक्षा में निवेश का मन बना रही है। स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण को लेकर मौजूदा सरकार ने बार-बार देश का ध्यान आकृष्ट किया। इससे गिरती-पड़ती सतत उपेक्षित शिक्षा की दुनिया में जान सी आने लगी थी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय में तब्दील करने के साथ लोगों को लग रहा था कि देश शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन की देहरी पर पहुंच रहा है और शुभ प्रभात होने वाला है। बहुत दिनों बाद शिक्षा को लेकर शिक्षा संस्थानों ही नहीं, आम जन में भी जागृति दिख रही थी। पूर्व प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक की संरचना में प्रस्तावित बदलाव को देख सबको सुखद आश्चर्य हो रहा था। लगा कि ज्ञान केंद्रित शिक्षा की एक ऐसी लचीली व्यवस्था का बिगुल बजने वाला है, जो सबको विकसित होने का अवसर देगी। आखिर आत्मनिर्भर होने के लिए ज्ञान, कौशल और निपुणता के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं हो सकता।
राष्ट्रीय अनुवाद संस्थान स्थापित करने की पहल
अध्यापकों के बेहतर प्रशिक्षण के लिए ही चार वर्ष के बीएड का प्रविधान किया गया। विद्यार्थियों को मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा मिलने को भी स्वीकार किया गया, जिसे इस बहुभाषा-भाषी देश ने दिल से स्वीकार किया। संस्कृत समेत प्राचीन भाषाओं के संवर्धन की व्यवस्था भी की गई। भारतीय भाषाओं के लिए विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय अनुवाद संस्थान स्थापित करने के लिए पहल करने की बात सामने आई। राष्ट्रीय शोध प्रतिष्ठान और उच्च शिक्षा आयोग की स्थापना के साथ शैक्षिक प्रशासन का ढांचा भी पुनर्गठित करने का प्रस्ताव रखा गया। यह सब पलक झपकते संभव नहीं था और उसे संभव करने के लिए धन, लगन और समय की जरूरत थी। इस हेतु सबकी नजरें बजट पर टिकी थीं।
आम बजट में युवा वर्ग को कुशल बनाने की जरूरत भी बताई गई
आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नई शिक्षा नीति लागू करने, उच्च शिक्षा आयोग के गठन और सबके लिए और समावेशी शिक्षा की बात की। युवा वर्ग को कुशल बनाने की जरूरत भी बताई। टिकाऊ विकास ही उनका मुख्य तर्क था। अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य को सर्वाधिक महत्व दिया गया और महामारी के बीच यह स्वाभाविक भी था। कृषि और अंतरिक्ष विज्ञान आदि भी महत्व के हकदार थे।
शिक्षा क्षेत्र के लिए बजट में हुईँ प्रमुख घोषणाएं
बजट में शिक्षा क्षेत्र के लिए प्रमुख घोषणाएं इस प्रकार रहीं: 15000 स्कूलों को नई शिक्षा नीति के आलोक में सुदृढ़ किया जाएगा, जो अन्य स्कूलों के लिए आदर्श बनेंगे। 100 सैनिक विद्यालय खुलेंगे, जो गैर सरकारी संस्थाओं और निजी संगठनों के साथ जन भागीदारी के अनुरूप मिलकर स्थापित होंगे। लेह में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित होगा। 750 करोड़ रु आदिवासी विद्र्यािथयों के आवासीय विद्यालय और 20 करोड़ रु एकलव्य विद्यालय के लिए, पर्वतीय क्षेत्र के लिए 48 करोड़ , अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के लिए 35219 करोड़ (2026 तक के लिए), 3000 करोड़ रु इंजीनिर्यंरग डिप्लोमा में प्रशिक्षु कार्यक्रम हेतु, भारतीय ज्ञान परंपरा हेतु 10 करोड़, केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए 5516 करोड़ (पिछले बजट में 6800 करोड़ का प्रविधान था), मिड डे मील के लिए 500 करोड़ रु का प्रविधान किया गया। स्कूली शिक्षा और साक्षरता के लिए 54874 करोड़ और उच्च शिक्षा के लिए 38350 करोड़ रु का प्रविधान है। समग्र शिक्षा अभियान का बजट 31050.16 करोड़ किया गया, जो पहले 38750 करोड़ रु था।
बजट में नवोदय विद्यालयों के लिए 320 करोड़
राष्ट्रीय शोध प्रतिष्ठान के लिए 50,000 करोड़ रु का प्रविधान है। नवोदय विद्यालयों के लिए 320 करोड़, केंद्रीय विद्यालयों के लिए 32 करोड़ रु रखे गए। एनसीईआरटी को पिछले साल की तुलना में 110.08 करोड़ रु अधिक मिले। कुल मिलाकर पिछले बजट में 99312 का प्रविधान था, जो अब 93224 करोड़ रु हो गया यानी छह हजार करोड़ रु कम। पिछले बजट से 6.13 प्रतिशत कम। हालांकि यह पिछले साल के संशोधित बजट से अधिक है।
शिक्षा के लिए बजट प्रविधान पुराने ढर्रे पर ही है। नई शिक्षा नीति के लिए अलग से कुछ नहीं किया गया। कठिन परिस्थितियों और चुनौतियों को देखते हुए शिक्षा के लिए अधिक आवंटन की आशा थी। बजट में शिक्षा को बमुश्किल ही कुछ जगह मिली और छह प्रतिशत जीडीपी के बराबर की बात बिसर गई। लगता है देश की वरीयता सूची में शिक्षा थोड़ी नीचे खिसक गई। भारत की युवा जनसंख्या और शिक्षा की जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं है। आशा है नई शिक्षा नीति को गंभीरता से लेते हुए शिक्षा के लिए बजट प्रविधान में सुधार किया जाएगा।