आभासी खेलों के संजाल में
हमारे दौर में स्कूल के दिनों में घर और आसपास मुहल्ले में जब दोस्तों का समूह बड़ा होता था तब कबड्डी, खो-खो, रस्सी कूद, लंबी कूद, फुटबाल जैसे खेल लोकप्रिय थे। गर्मी के दिनों में घरों में बच्चे लुडो में सांप-सीढ़ी, कैरम बोर्ड जैसे खेल खेलते थे।
संजीव राय: हमारे दौर में स्कूल के दिनों में घर और आसपास मुहल्ले में जब दोस्तों का समूह बड़ा होता था तब कबड्डी, खो-खो, रस्सी कूद, लंबी कूद, फुटबाल जैसे खेल लोकप्रिय थे। गर्मी के दिनों में घरों में बच्चे लुडो में सांप-सीढ़ी, कैरम बोर्ड जैसे खेल खेलते थे। हर इलाके के गांव-गांव में स्थानीय खेल जैसे ओल्हा-पाती, चिकई, नौ गोटवा, बारह गोटवा, कुश्ती जैसे कम संसाधनों के साथ होने वाले खेल होते थे। नाग-पंचमी के अवसर पर उत्तर प्रदेश, बिहार के कई गांव अपने यहां दंगल का आयोजन करवाते थे, जिसमें पूरा गांव उत्साह के साथ शामिल होता था। लेकिन समय और तकनीक के बदलते जाने से अब परंपरागत खेल, उनसे जुड़े गीत-प्रसंग भूलते जा रहे हैं।
आज पूरी दुनिया में किशोर उम्र के बच्चे धीरे-धीरे इंटरनेट आधारित आनलाइन गेम और वीडियो गेम के जाल उलझ चुके हैं। युवाओं की एक बड़ी संख्या औसतन तीन से चार घंटे आनलाइन गेम खेलती है और इसमें स्कूल-कालेज, इंजीनियरिंग या चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी भी शामिल हैं। 1980 के दशक में वीडियो गेम की शुरुआत कुछ विद्यार्थियों ने की थी। फिर एटीएम की तरह की मशीनें आर्इं, जिनमें सिक्के डाल कर एक-दो मिनट के खेल खेले जा सकते थे। तब इस गेम को खेलने के लिए अतिरिक्त संसाधन, समय और विशेष प्रयोजन करने पड़ते थे, लेकिन आज तकनीक के विस्तार ने आनलाइन खेल को मोबाइल-कंप्यूटर के जरिये स्कूल से लेकर घर तक प्रवेश करा दिया है। अब बच्चे कमरे में बैठ कर फुटबाल को भी आनलाइन ही खेल रहे हैं।
युवाओं के बढ़ते आकर्षण के चलते हजारों-लाखों डालर का निवेश करके सैकड़ों कंपनियां, अपने-अपने आनलाइन गेम को लेकर बाजार में उतार रही हैं। तकनीक के विस्तार के साथ इक्कीसवीं सदी में इस तरह के खेल दुनिया के एक बड़े व्यापार में बदल रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, 2027 तक वीडियो-आनलाइन गेम का अंतरराष्ट्रीय व्यापार लगभग 340 बिलियन डालर तक पहुंच सकता है। मोबाइल कंपनियां भी 5-जी नेटवर्क के साथ गेम के लिए नए मोबाइल फोन और लैपटाप लाने की योजना पर कार्य कर रही हैं। यों अधिकतर गेम 'फ्री' डाउनलोड वाले होते हैं, लेकिन उसके पीछे पेशेवर लोगों की पूरी एक टीम काम करती है, जिसमें मनोवैज्ञानिक, अभिनेता, कलाकार, निदेशक, तकनीक विशेषज्ञ, कार्टूनिस्ट, मार्केटिंग के लोग शामिल रहते हैं। ऐसे कई खेलों का प्रारूप सिनेमा और किसी धारावाहिक की तरह का होने लगा है। कुछ में चरित्रों के माध्यम से एक आभासी दुनिया बनाई जाती है, जिसमें नए शब्द और नई भाषा भी गढ़ी जा रही है।
मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार खेल और मंच पर आकर्षित होते ही मनोरंजन का समंदर दिखने लगता है, लेकिन जब एक बार बच्चों को इस तरह के खेलों की आदत पड़ जाती है, तब वे सही मायने में एक खिलाड़ी नहीं रह जाते हैं और उपभोक्ता बन जाते हैं। 'कैंडी क्रश' से लेकर 'रोब्लोक्स' तक के जितने भी लोकप्रिय खेल हैं, सभी में कई ऐसे तरीके शामिल हैं, जिनसे इन्हें बनाने वाली कंपनियां अपना मुनाफा कमाती हैं। ऐसे खेलों के भीतर अतिरिक्त समय या खिलाड़ी, मनपसंद वस्त्र आदि खरीदने के विकल्प तो रहते ही हैं, आनलाइन गेम से जुड़े चरित्र, उनके पोशाक, सौंदर्य प्रसाधन से लेकर चरित्रों के पोस्टर-कैलेंडर और कार्ड तक वास्तविक बाजार में उपलब्ध होते हैं। इन्हें खरीदने के लिए बच्चे अपने मां-बाप से जिद भी करते हैं।
भारी संख्या में मुफ्त वीडियो और वीडियो गेम मौजूद हैं, जिनका आकर्षण बच्चों को घर से बाहर जाकर खेलने और सामाजिक मेल-मिलाप करने से रोकता हैं। कई आनलाइन खेल हिंसा और हथियार पर आधारित हैं जो बच्चों को 'जीत' की खुशी देते हैं और मनोभावों को उद्वेलित करते हैं। खेलने वालों को गेम की रचना में शामिल ईर्ष्या, शत्रुता, जय-पराजय, दया, क्रूरता आदि का भाव घंटों आनलाइन बनाए रखता है। लंबे समय तक इन खेलों प्रभाव आंखों के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है। ये गेम बच्चों के खान-पान ,पहनावे और व्यवहार को भी प्रभावित कर रहे हैं और ऐसे में उनके साथ साइबर अपराध की घटनाओं की आशंका भी रहती हैं।
भारत में पहले ही कई आनलाइन खेलों की बहुत मांग थी। महामारी के कारण स्कूल-कालेज बंदी ने आनलाइन खेलों में लगभग तीस फीसद की बढ़ोतरी की है। यह अजीब विडंबना है कि कोरोना के कारण दुनिया के बहुत से देशों की अर्थव्यवस्था बर्बाद हुई, उसी दौर में आनलाइन खेल सबसे तेजी से बढ़ते व्यापार में शामिल हो गया है। गांव और छोटे शहरों से महानगरों में आए उम्रदराज लोगों के लिए आनलाइन खेलों की यह दुनिया अनजानी है। अभी उनको क्रिकेट-फुटबाल से आगे बढ़ कर गोल्फ-लान टेनिस की समझ बनानी थी, तब तक तकनीक ने आनलाइन खेलों का संसार खड़ा कर दिया है। ऐसा लगता है कि अब किसी त्योहार के मौके पर कबड्डी-कुश्ती की स्मृतियों पर धूल जमती जाएगी, क्योंकि अब लूडो-कैरम भी मोबाइल और कंप्यूटर पर उपलब्ध हैं!