जिम्मेदारियों के अभाव में हार्दिक, जिग्नेश और कन्हैया जैसे युवा नेताओं ने कांग्रेस में आकर अपनी चमक खो दी है
हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी तीनों युवा नेता हैं
राकेश दीक्षित
हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी तीनों युवा नेता हैं, जिन्हें कांग्रेस बड़ी धूमधाम से अपने पाले में लेकर आई, लेकिन पार्टी को मजबूत करने के लिए उनका सही उपयोग कैसे किया जाए, इस बात को लेकर असमंजस बरक़रार है. पटेल 2017 में कांग्रेस में शामिल हुए, जबकि मेवाणी और कन्हैया कुमार चार साल बाद कांग्रेस में शामिल हुए. तीनों युवा नेता अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हैं, लेकिन उनमें एक समानता है: वे विभिन्न आंदोलनों का नेतृत्व करने की वजह से राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आए. हार्दिक पटेल (Hardik Patel) 2015 में गुजरात में पाटीदार आंदोलन की अगुआई कर रहे थे. जेएनयू छात्र संघ (JNUSU) के अध्यक्ष के तौर पर कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) कथित रूप से आतंकवादी अफजल गुरु की स्मृति में कार्यक्रम आयोजित किए जाने के विवाद के बाद प्रमुखता से उभरे. गुजरात में ऊना की घटना को राष्ट्रीय पटल पर लाने का श्रेय जिग्नेश मेवाणी (Jignesh Mevani) को जाता है, जिसमें चार दलित युवकों की पिटाई का वीडियो वायरल हुआ था.
कन्हैया के प्रशंसकों की तादाद बहुत बड़ी है, लेकिन उनके पास कोई निर्वाचन क्षेत्र नहीं है, जबकि जिग्नेश मेवाणी (Jignesh Mevani) गुजरात के दलित नेता की भूमिका में हैं. हार्दिक तीनों में सबसे महत्वाकांक्षी हैं और वह भी किसी वजह के बिना. कांग्रेस कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) की भूमिका को बीजेपी के खिलाफ चुनाव प्रचार में उग्र भाषण देने तक सीमित रखने का जोखिम उठा सकती है. मेवाणी ने भी पार्टी में अपनी भूमिका से बड़ी भूमिका के लिए अपनी इच्छा जाहिर नहीं की है. लेकिन हार्दिक पटेल (Hardik Patel) अपने दो अन्य साथियों से बिल्कुल अलग हैं. पाटीदार नेता पिछले काफी समय से पार्टी में विवादित बयान दे रहे हैं. इस बात की संभावना है कि पटेल अपना पक्ष इसी तरह रखते रहेंगे, जब तक उनकी शिकायतों का संतोषजनक समाधान नहीं हो जाता. कांग्रेस अपने जोखिम पर अन्याय की उनकी कथित भावना को नजरअंदाज करेगी, खासकर जब गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Assembly Election) बहुत दूर नहीं है.
आप में जा सकते हैं हार्दिक?
यदि कांग्रेस और बीजेपी के बीच गुजरात की राजनीति बाइपोलर बनी रहती है, जैसा कि पहले हुआ करता था, तो कांग्रेस को शायद इस नतीजे पर पहुंचना होगा कि हार्दिक पटेल के पार्टी छोड़ने का विकल्प लगभग समाप्त हो गया है. पाटीदार आंदोलन, जिसके कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल (Anandiben Patel) को इस्तीफा देना पड़ा था, के बाद पार्टी में उन्होंने अपने लिए जो दुश्मनी पैदा की थी, उसे देखते हुए बीजेपी में उनके आने की संभावना नहीं है. लेकिन गुजरात की राजनीति में एक नए दल की एंट्री हुई है. आम आदमी पार्टी (AAP) ने बीजेपी से सत्ता छीनने के कांग्रेस के गेम प्लान को इतना उलट-पुलट दिया है कि राजनीतिक पर्यवेक्षक आगामी विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना जता रहे हैं.
गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी ने गुजरात के लिए हार्दिक पटेल के समुदाय को अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखा है. अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की पार्टी ने पहले ही सूरत स्थानीय निकाय चुनाव में अपनी पहली सफलता का परीक्षण कर लिया है. कांग्रेस को पछाड़कर, उनकी पार्टी बीजेपी के विकल्प के तौर पर उभर कर सामने आई. इसकी बड़ी वजह थी, आम आदमी पार्टी के पक्ष में पाटीदार वोट का जाना. जहां पाटीदारों पर आप (AAP) का जादू चल रहा है, वहीं कांग्रेस इस समुदाय के महत्वपूर्ण नेताओं में से एक नरेश पटेल (Naresh Patel) को गले लगाने से कतरा रही है. कांग्रेस में हार्दिक पटेल के हालिया आक्रोश का कारण नरेश पटेल को पार्टी में शामिल करने पर निर्णय नहीं ले पाना है.
हार्दिक कहते हैं, 'नरेश पटेल के पार्टी में शामिल होने की बात करते हुए दो महीने हो गए हैं, लेकिन कांग्रेस किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाई है. यदि आप किसी समुदाय का सम्मान नहीं कर सकते, तो आपको उसका अपमान करने का भी कोई अधिकार नहीं है.'हालांकि, गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी (GPCC) के अध्यक्ष जगदीश ठाकोर ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति या समुदाय का कोई अपमान नहीं हुआ है. उनके अनुसार, 'नरेश पटेल ने खुद कहा है कि अगर उनका समुदाय उन्हें अनुमति देता है तो वे राजनीति में प्रवेश करेंगे. वह विभिन्न समूहों के साथ चर्चा कर रहे हैं और कांग्रेस में शामिल होने का फैसला पूरी तरह से उन पर निर्भर है.'
गुजरात विधानसभा में जाने को तैयार हैं हार्दिक
हार्दिक पटेल के कांग्रेस में आगे बढ़ने का एक और कारण सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में दिया गया वह फैसला है जिसने उनकी सजा पर रोक लगा दी और इस तरह उनके लिए विधानसभा चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया है. जुलाई 2018 में, विसनगर की एक सत्र अदालत (Sessions Court) ने हार्दिक को 2015 के पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान दंगा और आगजनी के लिए दो साल कारावास की सजा सुनाई थी. अगस्त 2018 में गुजरात हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उनकी सजा पर रोक लगा दी है. आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर करते हुए हार्दिक, जो 2017 के चुनावों के दौरान 25 साल की आयु सीमा से कम थे, ने कहा, 'अगर मैं सत्ता में रहे बिना लोगों के भलाई के लिए काम कर सकता हूं, तो लोगों के प्यार की बदौलत मैं विधानसभा जा सकता हूं और बेहतर काम कर सकता हूं'.