सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- सिर्फ एक फोन कॉल पर सरकार किसानों के साथ वार्ता को तैयार

आम तौर पर संसद सत्र के पहले बुलाई जाने वाली सर्वदलीय बैठकों में बनी सहमति संसद की कार्यवाही के दौरान मुश्किल से ही नजर आती है

Update: 2021-01-31 02:02 GMT

आम तौर पर संसद सत्र के पहले बुलाई जाने वाली सर्वदलीय बैठकों में बनी सहमति संसद की कार्यवाही के दौरान मुश्किल से ही नजर आती है, फिर भी ऐसा होने की ही अपेक्षा की जाती है। यह वक्त बताएगा कि संसद के बजट सत्र में क्या होगा, लेकिन उचित यही है कि संसदीय कार्यवाही हंगामे का शिकार न बने। इसके लिए जहां यह आवश्यक है कि सत्तापक्ष सभी जरूरी मसलों पर चर्चा के लिए तैयार रहे, वहीं विपक्ष अपनी बात कहने के नाम पर हंगामा करने को तत्पर न दिखे। संसद के इस सत्र में किसान आंदोलन का मसला उठना स्वाभाविक है। यह उठना भी चाहिए, लेकिन इससे ज्यादा जरूरी है इस मसले का समाधान। यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने इस दिशा में पहल करते हुए कहा कि किसान संगठनों के लिए वह प्रस्ताव अभी भी हाजिर है, जिसके तहत यह कहा गया था कि सरकार डेढ़ साल के लिए कृषि कानूनों पर अमल रोकने को तैयार है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि बातचीत फिर से शुरू करने के लिए किसान नेताओं को कृषि मंत्री को बस एक फोन करना है। पता नहीं किसान नेता क्या करेंगे, लेकिन यदि वे सरकार को नीचा दिखाकर अपनी मांग मनवाना चाहेंगे तो फिर कुछ होने वाला नहीं है। अगर वे वास्तव में समाधान के पक्ष में हैं तो उन्हें यह जिद छोड़नी होगी कि तीनों कृषि कानून वापस हों।

विपक्ष की यह मांग है कि कृषि कानूनों पर नए सिरे से बहस हो। इस पर सत्तापक्ष की ओर से यह कहा गया है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण संबंधी धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान इस मसले को उठाया जा सकता है। कृषि कानूनों पर बहस में कोई हर्ज नहीं, लेकिन यदि इस बहस के दौरान विपक्षी नेता किसान नेताओं की तरह कृषि कानूनों को खत्म करने की बात करते हैं तो फिर उसका कोई मतलब नहीं होगा। यदि विपक्ष कृषि कानूनों पर कोई सार्थक बहस करना चाहता है तो उचित यही होगा कि वह इन कानूनों के गुण-दोष पर चर्चा करे। यह उल्लेखनीय है कि किसान नेताओं से बातचीत के समय सरकार उनकी आपत्तियों वाले कुछ प्रविधानों पर संशोधन करने को तैयार थी। विपक्ष को यह विस्मृत नहीं करना चाहिए कि कृषि कानूनों की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित एक समिति भी कर रही है। इसी के साथ उसे यह भी याद रखना चाहिए कि विपक्ष के रचनात्मक सहयोग के बिना संसद की कार्यवाही सही तरह नहीं चल सकती। सत्तापक्ष को सहयोग देने के मामले में विपक्ष का दावा कुछ भी हो, उसने राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करके यही संकेत दिया है कि उसने हंगामा करने की ठानी है।


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